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खूंखार आतंकवादियों को प्रश्रय देता एक आत्मघाती देश

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शरद सिंगी

पाकिस्तान अब एक ऐसा धृष्ट देश बन चुका है जिसे अपने आपको बेनकाब होते देखने में भी कोई शर्मिंदगी नहीं होती। उसकी नापाक करतूतों के सबूत प्याज के छिलकों की तरह परत-दर-परत उघड़ते जा रहे हैं किंतु उसे न तो कोई लाज है और न ही कोई शर्म। 
 
हाल ही की प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान सैयद सलाहुद्दीन को अमेरिका द्वारा वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के पश्चात भी पाकिस्तान को रत्तीभर अफसोस नहीं है कि उसने इंसानियत के ऐसे दुश्मनों को शरण देकर पोषित किया है। वह विश्व के सामने निरंतर निर्वस्त्र हो रहा है किंतु भारत के विरुद्ध आतंकियों को पोषित करने की राजनीतिक मजबूरी उसे अविराम हैवानियत के मार्ग पर धकेल रही है। 
 
अपनी इन हरकतों को न्यायसंगत बताने के लिए जो बेसिरपैर के कुतर्क उसे गढ़ना पड़ते हैं, वे उसे विश्व के सामने और अधिक नंगा करते हैं। आज विश्व का प्रत्येक देश आतंकवाद के नाम पर अतिसंवेदनशील हो चुका है। उनमें वे देश भी शामिल हैं, जो कभी उग्रवादियों के साथ हमदर्दी रखते थे अथवा उन्हें सहायता देते थे। सबको सीख मिल चुकी है। मध्य-पूर्व के देश कतर का अरब क्षेत्र के अन्य देशों द्वारा बहिष्कार इसका ताजातरीन उदाहरण है। 
 
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा में भी मुख्य मुद्दा आतंकवाद और उनके आकाओं तक सिमटा रहा। पाकिस्तान के पापों की गठरी से सलाहुद्दीन के रूप में एक और छिलका उतरा और वह संसार के सामने एक बार फिर बेनकाब हुआ।
 
अपनी नाजायज हरकतों को जायज ठहराने पर तुले उस देश के बारे में और अधिक क्या कहें जिसके प्रधानमंत्री स्वयं अपने चुनावी भाषणों में कहते नहीं थकते कि हमारे यहां बिजली नहीं है, पीने का पानी नहीं है, रोजगार नहीं है, अस्पताल नहीं है। बमों का फूटना सामान्य घटना हो चुकी है। अपनी उपलब्धियां बताने के लिए उनके पास कुछ नहीं है। 
 
इधर भ्रष्टाचार इस सीमा तक पहुंच चुका है कि एक पाकिस्तानी समीक्षक के अनुसार वहां हर आदमी और हर वस्तु बिकाऊ है। नेता, अधिकारी, कमांडर, न्याय हर चीज की कीमत है। नवाज शरीफ पर वित्तीय अनियमितताओं के सनसनीखेज आरोप हैं। उनके अधिकारों पर भी सेना ने अंकुश लगा रखा है इसलिए वे भी अपना समय गिन रहे हैं। सेना के लिए जरूरी है सिविल प्रजातांत्रिक सरकार को शोकेस में सजाए रखना ताकि विदेशों से दानराशि मिल सके। लेकिन जिस तरह से प्याज पर से छिल्के उतरते जा रहे हैं, कब तक विश्व शक्तियां उसे दान देती रहेंगी? 
 
धर्म के नाम पर अपढ़ और गरीब जनता में चंद दिनों के लिए लड़ने का जज्बा तो पैदा किया जा सकता है किंतु राष्ट्र के नाम पर जज्बा पैदा करने के लिए राष्ट्र का चरित्र मजबूत चाहिए। सच कहिए तो पाकिस्तान आज तक एक राष्ट्र बन ही नहीं पाया। कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा जोड़कर वह भानुमति के कुनबे से अधिक कुछ नहीं बन पाया। धर्म को राजनीति से जोड़कर देश को टिकाने की कोशिश की। धर्म के नाम पर अपढ़ जनता को मूर्ख बनाना तो आसान है किंतु पेट भरने के लिए धर्म नहीं, कर्म चाहिए। राष्ट्र का निर्माण सत्कर्मों से ही हो सकता है। 
 
ओ पाकिस्तान! तुम अपने स्वयं संचालित चीरहरण पर अब तो कुछ शर्म करो। धर्म की दुहाई देकर अधर्म के मार्ग पर चलना छोड़ो। विदेशी सहायता राशि से अपने घर में नरभक्षियों को पोषित मत करो। लुटेरों को पालकर लुटने का रोना कब तक रो सकोगे। धोखा देकर कब तक सहायता की भीख मांग सकोगे। 
 
सऊदी अरब में राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण में जिस तरह आतंकवाद से पीड़ित देशों में पाकिस्तान के नाम का जिक्र तक नहीं किया, उसी से संकेत मिल जाना चाहिए था कि तुम्हें अब अपने पीड़ित होने के विलाप को बंद कर देना होगा। दुनिया तुम्हारे खेल को भली-भांति भांप चुकी है अत: या तो तुरंत पीछे की ओर रुख करो अन्यथा जिस मार्ग पर तुम गर्व से लुढ़क रहे हो उसके भाग्य की इबारत विधाता नहीं, आदमखोर इंसान लिख रहे हैं। 
 
संक्षेप में, आत्मघाती आतंकवादी तो हमने सुने हैं किंतु तुम अपने दुर्भाग्य से स्वयं एक आत्मघाती राष्ट्र बन रहे हो जिसकी परिणति सर्व सर्वनाश ही है। आज तुम आग से खेल रहे हो, कल आग तुमसे खेलेगी। 
 

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