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क्या यूरोप का साथ छोड़ देगा ब्रिटेन?

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अनवर जमाल अशरफ

, बुधवार, 20 अप्रैल 2016 (13:04 IST)
दो महीने के अंदर ग्रेट ब्रिटेन में जनमत संग्रह होने वाला है। जनता तय करेगी कि उसे यूरोपीय संघ के साथ रहना है या नहीं। जहां एक तरफ कुछ यूरोपीय देश और तुर्की संघ में शामिल होने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं ब्रिटेन में इसे छोड़ने पर रायशुमारी हो रही है। इसे ब्रेक्जिट (ब्रिटेन एक्जिट) भी कहा जा रहा है। तो क्या एकीकृत देशों का तिलिस्म टूटने वाला है? क्या यह जनमत संग्रह यूरोपीय संघ के दूसरे देशों के लिए मिसाल नहीं बन जाएगा?
 
23 जून 2016 को ग्रेट ब्रिटेन के चारों देश यानी इंग्लैंड, उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड के अलावा जिब्राल्टर में मतदान होगा। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने 4 साल पहले ही ऐलान कर दिया था कि अगर वे 2015 में विजयी होते हैं तो 2 साल के अंदर इस पर जनमत संग्रह कराया जाएगा। साल 2009 में पारित यूरोपीय संघ का संविधान इजाजत देता है कि सदस्य देश जनमत संग्रह के जरिए इससे बाहर निकल सकता है।
 
ब्रिटेन पर असर : यूरोपीय संघ का विरोध करने वालों का मानना है कि 28 देशों के समूह में रहने की वजह से ब्रिटेन अपने हितों की रक्षा नहीं कर पा रहा है। उनका कहना है कि यूरोप के अंदर से प्रवासियों की संख्या नहीं रुक पा रही है और स्थानीय लोगों को पर्याप्त नौकरियां नहीं मिल रही हैं। इसके अलावा वे अपनी शर्तों पर व्यापार नहीं कर पा रहे हैं और यूरोपीय संघ की लालफीताशाही उनके तंत्र को धीमा कर रही है।
 
यूरोपीय संघ में शामिल होने के बाद इसके सदस्य देशों को संघ के अंदर किसी भी देश में जाकर रहने और काम करने का अधिकार मिलता है। ब्रिटेन सदियों से शक्तिशाली और संपन्न देश रहा है। इस वजह से संघ के गरीब देशों से वहां पलायन करने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है।
 
रोमानिया, पोलैंड, एस्टोनिया और हंगरी जैसे देशों से लोग रोजगार के लिए ब्रिटेन पहुंचते हैं। समान अधिकार की वजह से जहां उन्हें रोजगार मिलता है, वहीं ब्रिटिश मूल के लोगों की नौकरियां कम हुई हैं। यूरोपीय संघ से बाहर निकलने की तरफदारी करने वाले इसे बड़ा मुद्दा बताते हैं।
 
साथ छोड़ने का नुकसान : लेकिन ब्रिटेन के अंदर एक बड़ा हिस्सा, खासकर अर्थशास्त्रियों की जमात इसे बेहद खतरनाक कदम मान रही है। उनका कहना है कि इससे देश की संपन्नता पर नुकसान होगा और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में इसकी साख घटेगी। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कहा है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने से उनके रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
 
ब्रिटेन लगभग 40 साल से यूरोपीय संघ से जुड़ा है और इस दौरान कई कंपनियों ने वहां अपनी जड़ें जमा ली हैं। फोर्ड और बीएमडब्ल्यू जैसी कार कंपनियों ने चेतावनी दी है कि इससे अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ सकता है।
 
जर्मन कार कंपनी बीएमडब्ल्यू का बहुत बड़ा कारोबार ब्रिटेन में होता है, जबकि एयरबस बनाने वाली यूरोपीय विमानन कंपनी ईएडीएस का भी एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन से चलता है। तेल कंपनी शेल और वोडाफोन ने भी इसके खतरे गिनाए हैं।
 
यूरोपीय संघ पर असर : भले ही यूरोपीय संघ 28 देशों का संगठन है लेकिन इसके ताकतवर देश गिनती के हैं। फ्रांस और जर्मनी के अलावा ब्रिटेन इसके 3 सबसे कद्दावर देशों में गिना जता है। वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समिति के 5 स्थायी राष्ट्रों में भी एक है। उसके बाहर निकलने से संघ में सिर्फ फ्रांस ही इकलौता स्थायी सदस्य रह जाएगा। अर्थव्यवस्था के लिहाज से यूरोपीय संघ को जबरदस्त झटका लगेगा, क्योंकि ब्रिटेन की राजधानी लंदन सबसे प्रभावशाली शहर माना जाता है, जहां दुनियाभर के लोग कारोबार के लिए पहुंचते हैं।
 
जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्योरिटी अफेयर्स के टिम ओलिवर की एक रिसर्च कहती है कि यूनाइटेड किंगडम के साथ छोड़ने से यूरोपीय संघ का बुनियादी ढांचा हिल सकता है। जहां एक तरफ वह विभाजन और अस्थिरता की दिशा में बढ़ सकता है, वहीं दूसरी तरफ वह अपने सबसे मुश्किल सदस्य से निजात पाकर तरक्की का रास्ता भी पा सकता है। लेकिन इतना तय है कि यूरोपीय संघ की शक्ल बदल जाएगी।
 
ओपिनियन पोल : आमतौर पर यूरोप के अंदर ऐसे जनमत संग्रह के बारे में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है। पिछले दिनों जब पूरी तरह कयास लग रहा था कि स्कॉटलैंड रायशुमारी के जरिए ग्रेट ब्रिटेन छोड़ने का फैसला करेगा, उसकी जनता ने यूनाइटेड किंगडम में बने रहने का निर्णय किया।
 
ताजा सर्वे बता रहा है कि यूरोपीय संघ छोड़ने और इसमें बने रहने वालों की संख्या लगभग बराबर (41 फीसदी) है, जबकि 18 फीसदी लोग अभी तय नहीं कर पाए हैं कि वे कहां वोट डालेंगे? लेकिन एक बात तय है कि ब्रिटेन में रहने वाले दूसरे यूरोपीय देशों के नागरिक इस चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे।
 
ब्रिटेन के बाद क्या : अगर ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ को छोड़ने का फैसला किया तो यूरोपीय संघ की परिभाषा ढीली पड़ जाएगी। यह संघ के दूसरे देशों के लिए एक रास्ता खोल देगा। ग्रीस, पुर्तगाल और स्पेन के आर्थिक संकट का असर यूरोपीय संघ के सभी देशों पर पड़ रहा है और कई देश इससे नाखुश हैं। 
 
वे भी रायशुमारी का फैसला कर सकते हैं। चेक गणराज्य ने तो अभी से कह दिया है कि अगर ब्रिटेन ने निकलने का फैसला किया तो उनके देश में भी इस पर चर्चा शुरू की जाएगी।

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