मध्यप्रदेश में आज भी गलत धारणाओं और अधंविश्वास के चलते कई बच्चे टीका लगने से वंचित रहने के कारण या तो गंभीर बीमारियों से ग्रस्त हैं या असमय मौत के शिकार हो रहे हैं। जागरूकता के अभाव में मां बाप ऐसे ऐसे कारणों से बच्चों को टीके नहीं लगवाते जिनका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है। इन गलत धारणाओं ने मध्यप्रदेश को पांच साल से कम उम्र के बच्चों की असमय मौत के मामले में देश के अग्रणी राज्यों में बनाए रखा है।
यूनीसेफ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य में पांच साल से कम उम्र के एक हजार बच्चों में से 83 बच्चे असमय की मौत के मुंह में चले जाते हैं। जीवित जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों में से 62 नवजात भी इसी तरह जिंदा नहीं रह पाते। बच्चों की इन असमय मौतों का एक प्रमुख कारण गर्भवती माताओं और नवजात शिशुओं को समय समय पर जरूरी टीकों का न लगवाया जाना है। ये टीके बच्चों को ऐसी गंभीर बीमारियों से बचाने का काम करते हैं जो या तो जानलेवा साबित होती हैं या फिर आगे चलकर बच्चों में गंभीर शारीरिक विकृतियां पैदा कर देती हैं।
वर्ष 2012-13 का राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एएचएस) कहता है कि मध्यप्रदेश में केवल 66.4 प्रतिशत बच्चों का ही संपूर्ण टीकाकरण हो पाया था। सवा सात करोड़ की आबादी वाले देश के इस दूसरे सबसे बड़े राज्य में प्रतिवर्ष 18.9 लाख बच्चों और करीब 20 लाख गर्भवती माताओं के टीकाकरण का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है। लेकिन यह लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता।
राज्य के शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी टीकाकरण की दर में भारी अंतर है। शहरी क्षेत्रों में जहां टीकाकरण की दर 73.8 प्रतिशत है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह 63.5 प्रतिशत है। प्रदेश में कुल 3.6 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिन्हें किसी भी प्रकार का टीका नहीं लगा।
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चों को लगने वाले टीके उन्हें सात जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं। इनमें खसरा, टिटेनस, पोलियो, टीबी, गलघोंटू, काली खांसी और हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियां शामिल हैं। इनमें से पोलियो को छोड़कर बाकी टीके इंजेक्शन के जरिए दिए जाते हैं जबकि पोलियो की दवा बच्चों को बूंदों के रूप में पिलाई जाती है। बच्चों के अलावा गर्भवती महिलाओं को भी टिटेनस का टीका लगाकर खुद गर्भवती मां और उसके होने वाले बच्चें को टिटेनस जैसे घातक रोग से बचाया जा सकता है।
मध्यप्रदेश में यूनीसेफ की स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. वंदना भाटिया कहती हैं कि टीकाकरण बच्चों के स्वास्थ्य की बुनियाद है। बच्चों के स्वास्थ्य और भविष्य की मजबूती भी जीवनरक्षक टीकों पर निर्भर करती है। ये टीके न सिर्फ बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाते हैं बल्कि उनकी रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाते हैं।
आमतौर पर जब भी चिकित्सा सुविधाओं की बात होती है तो यह तर्क दिया जाता है कि गरीब परिवार पैसों की कमी के कारण इलाज पर ध्यान नहीं देते लेकिन टीकों का मामला तो बिलकुल ही अलग है। ये सारी टीके सरकारी अस्पतालों में मुफ्त लगाए जाते हैं। इसका सीधा मतलब है कि जो बच्चे टीका लगने से वंचित रह जाते हैं उनके पीछे पैसों की कमी नहीं बल्कि जागरूकता की कमी या अभिभावकों की लापरवाही अधिक जिम्मेदार है।
इसके अलावा भी कुछ ऐसी गलत धारणाएं हैं जिनके चलते बच्चों को टीके नहीं लग पाते। मसलन बच्चे को बुखार आने या उसे खांसी जुकाम होने पर माता पिता टीका लगवाने नहीं ले जाते। चिकित्सा विशेषज्ञ कहते हैं कि खांसी-जुकाम, दस्त और कुपोषण जैसी स्थिति टीकाकरण में कोई बाधा नहीं बनती। यदि बच्चे को ये शिकायतें हैं तो भी उसे टीका लगवाया जा सकता है। उससे कोई नुकसान नहीं होता, हां लेकिन यदि टीका नहीं लगवाया जाता तो बच्चे के स्वास्थ्य को स्थायी नुकसान होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है और कभी कभी तो यह स्थिति जानलेवा भी साबित होती है। बच्चे देश का भविष्य कहे जाते हैं, जाहिर है इस भविष्य को सुरक्षित रखना है तो टीकाकरण जैसे अभियानों पर बहुत अधिक ध्यान देना होगा।