-श्याम नारायण रंगा 'अभिमन्यु'
वर्तमान में पूरा विश्व जल संकट के भंयकर दौर से गुजर रहा है। विश्व के विचारकों का मानना है कि आने वाले समय वर्तमान समय से भी बड़ा संकट बनकर दुनिया के सामने प्रस्तुत होने वाला है। ऐसी स्थिति में किसी की कही बात याद आती है कि दुनिया में चौथा विश्व युद्ध जल के कारण होगा।
यदि हम भारत के संदर्भ में बात करें तो भी हालात चिंताजनक है कि हमारे देश में जल संकट की भयावह स्थिति है और इसके बावजूद हम लोगों में जल के प्रति चेतना जागृत नहीं हुई है। अगर समय रहते देश में जल के प्रति अपनत्व व चेतना की भावना पैदा नहीं हुई तो आने वाली पीढ़िया जल के अभाव में नष्ट हो जाएगी।
विकसित देशों में जल रिसाव मतलब पानी की छिजत सात से पंद्रह प्रतिशत तक होती है जबकि भारत में जल रिसाव 20 से 25 प्रतिशत तक होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि अगर मोनिटरिंग उचित तरीके से हो और जनता की शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही हो साथ ही उपलब्ध संसाधनों का समुचित प्रकार से प्रबंधन व उपयोग किया जाए तो हम बड़ी मात्रा में होने वाले जल रिसाव को रोक सकते हैं।
विकसित देशों में जल राजस्व का रिसाव दो से आठ प्रतिशत तक है, जबकि भारत में जल राजस्व का रिसाव दस से बीस प्रतिशत तक है यानी कि इस देश में पानी का बिल भरने की मनोवृत्ति आमजन में नहीं है और साथ ही सरकारी स्तर पर भी प्रतिबंधात्मक या कठोर कानून के अभाव के कारण या यूं कहें कि प्रशासनिक शिथिलता के कारण बहुत बड़ी राशि का रिसाव पानी के मामले में हो रहा है। अगर देश का नागरिक अपने राष्ट्र के प्रति भक्ति व कर्तव्य की भावना रखते हुए समय पर बिल का भुगतान कर दे तो इस स्थिति से निपटा जा सकता है साथ ही संस्थागत स्तर पर प्रखर व प्रबल प्रयास हो तो भी इस स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
हम छोटी छोटी बातों पर गौर करें और विचार करें तो हम जल संकट की इस स्थिति से निपट सकते हैं। ऐसी ही कुछ महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख मैं यहां करना चाहूंगा। कुछ सूक्ष्म दैनिक उपयोग की बातें है जिन पर ध्यान देकर जल की बर्बादी को रोका जा सकता है। आइए जानें...
* दंत मंजन करते वक्त जल खोलकर रखने की आदत से 33 लीटर पानी व्यर्थ बहता है जबकि एक मग में पानी लेकर दंत मंजन किया जाए तो सिर्फ 1 लीटर पानी ही खर्च होता है और प्रति व्यक्ति 32 लीटर पानी की बचत प्रतिदिन की जा सकती है।
* काफी लोगों की आदत होती है कि दाढ़ी बनाते वक्त नल को खुला रखते हैं तो ऐसा करके ऐसे लोग 11 लीटर पानी बर्बाद करते हैं जबकि वे यह काम एक मग लेकर करें तो सिर्फ 1 लीटर में हो सकता है और प्रतिव्यक्ति 10 लीटर पानी की बचत हो सकती है।
* शौचालय में फ्लश टेंक का उपयोग करने में एक बार में 13 लीटर पानी का प्रयोग होता है जबकि यही काम छोटी बाल्टी से किया जाए तो सिर्फ चार लीटर पानी से यह काम हो जाता है ऐसा करके हम हर बार 9 लीटर पानी की बचत कर सकते हैं।
* फव्वारे से या नल से सीधा स्नान करने पर लगभग 180 लीटर पानी का प्रयोग होता है जबकि बाल्टी से स्नान करने पर सिर्फ 18 लीटर पानी प्रयोग में आता है तो हम बाल्टी से स्नान करके प्रतिदिन 162 लीटर पानी की बचत प्रति व्यक्ति के हिसाब से कर सकते हैं।
* महिलाएं जब घरों में कपड़े धोती हैं तो नल खुला रखना आम बात है ऐसा करते वक्त 166 लीटर पानी बर्बाद होता है जबकि एक बाल्टी में पानी लेकर कपड़े धोने पर 18 लीटर पानी में ही यह काम हो जाता है तो सिर्फ थोड़ी सी सावधानी जिम्मेदारी के साथ रखकर प्रति दिन 148 लीटर पानी प्रतिघर के हिसाब से बचाया जा सकता है।
* प्रत्येक घर में चाहे गांव हो या शहर पानी के लिए टोंटी जरूर होती है और प्रायः यह देखा गया है कि इस टोंटी या नल या टेप के प्रति लोगों में अनदेखा भाव होता है। यह टोंटी अधिकांशत: टपकती रहती है और किसी भी व्यक्ति का ध्यान इस ओर नहीं जाता है। प्रति सेकंड नल से टपकती जल बूंद से एक दिन में 17 लीटर जल का अपव्यय होता है और इस तरह एक क्षेत्र विशेष में 200 से 500 लीटर प्रतिदिन जल का रिसाव होता है और यह आंकड़ा देश के संदर्भ में देखा जाए तो हजारों लीटर जल सिर्फ टपकते नल से बर्बाद हो जाता है। अब अगर इस टपकते नल के प्रति संवेदना उत्पन्न हो जाए और जल के प्रति अपनत्व का भाव आ जाए तो हम हजारों लीटर जल की बर्बादी को रोक सकते हैं।
* एक लॉन में बेहिसाब पानी देने में 10 से 12 किलो लीटर पानी काम आता है और इतने पानी से एक छोटे परिवार हेतु एक माह का जल उपलब्ध हो सकता है।
तो अब राष्ट्र के प्रति और मानव सभ्यता के प्रति जिम्मेदारी के साथ सोचना आम आदमी को है कि वो कैसे जल बचत में अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकता है। पानी की बूंद-बूंद बचाना समय की मांग है और हमारी वर्तमान सभ्यता की जरूरत भी। हम और आप क्या कर सकते हैं ये आपके और हमारे हाथ में है। समय है कि निकला जा रहा है। सावधान!!
याद रखें पानी पैदा नहीं किया जा सकता है यह प्राकृतिक संसाधन है जिसकी उत्पत्ति मानव के हाथ में नहीं है।