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एक चित्रकार की निगाह से दुनिया देखने की कोशिश

इस बार सीरज सक्सेना का ब्लॉग ' इधर से देखो'

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रवींद्र व्यास

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सीरज सक्सेना युवा चित्रकार औऱ शिल्पकार हैं। हाल ही में उन्होंने अपना ब्लॉग बनाया है, जिस पर उनके कुछ लेख औऱ कविताएँ हैं। कई शहरों में उनकी चित्र प्रदर्शनियाँ लग चुकी हैं। इंदौर में जब उन्होंने नुमाइश की थी तो उनकी पेंटिंग्स को देखने का मौका मिला था। वे तमाम पेंटिंग्स नीले रंगों के अलग शेड्स में थीं। वे प्रयोगधर्मी हैं। कई माध्यमों में काम करते हैं। जनवरी-२००८ में उज्जैन में ख्यात कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी पर केंद्रित एक कार्यक्रम में सीरज ने वाजपेयीजी की कुछ काव्य पंक्तियों को लेकर खूबसूरत आईने बनाए थे। जाहिर है अपनी अभिव्यक्ति के लिए वे भिन्न-भिन्न माध्यमों में खुलते-खिलते रहते हैं। उनके प्रयोग सिर्फ प्रयोग के लिए नहीं हैं, ये कुछ सार्थक करने की भूख का परिणाम है।

  सीरज सक्सेना युवा चित्रकार औऱ शिल्पकार हैं। हाल ही में उन्होंने अपना ब्लॉग बनाया है, जिस पर उनके कुछ लेख औऱ कविताएँ हैं। कई शहरों में उनकी चित्र प्रदर्शनियाँ लग चुकी हैं। इंदौर में जब उन्होंने नुमाइश की थी तो उनकी पेंटिंग्स को देखने का मौका मिला था।      

उनके ब्लॉग की सादगी औऱ खूबसूरती पहली नजर में ध्यान खींचती है। अपने ब्लॉग के मुख पर उन्होंने अपनी एक नीली पेंटिंग चस्पा की है। इसमें नीला रंग अलग-अलग शेड्स में है। यह पेटिंग अपने टोन औऱ टेक्सचर की वजह से ध्यान खींचती है जैसे दूर कहीं कोई पर्वत है, पगडंडी है, नदी है, ऊपर खुलता हुआ आसमान है। उन्होंने अपने ब्लॉग का नाम दिया है-इधर से देखो।

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सालों पहले हिंदी के अप्रतिम कवि केदारनाथ सिंह का एक कविता संग्रह आया था- यहाँ से देखो। एक कवि अपनी खास निगाह से दुनिया को देखने की कोशिश करता है और बताता है कि वह जहाँ से देख रहा, वहाँ से देखने की कोशिश की जाएगी तो दुनिया शायद कुछ बेहतर दिखाई देगी। हो सकता है सीरज ने अपने ब्लॉग का नाम इसी संग्रह से प्रेरित होकर तय किया हो। वे भी शायद कहना चाहते हों दुनिया को, उसके सुख-दुःख को, एक चित्रकार की निगाह से देखने की कोशिश भी की जाए।

हाल-फिलहाल सीरज ने इस पर अपने कुछ लेख औऱ कविताएँ पोस्ट की हैं। पहला लेख ' झील औऱ झोंके' शीर्षक से है, जिसमें उन्होंने कश्मीर घाटी, गुलमर्ग औऱ पहलगाम की अपनी स्मृतियों को पूरी सादगी औऱ संवेदनशीलता के साथ लिखा है। इसमें उनके चित्रकार की आँख को साफ महसूस किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने सुंदरता में नहाती प्रकृति का चित्रमय वर्णन किया है। उनकी नजर रंग से लेकर दृश्य, बोलियों से लेकर जीवन की किसी जीवंत हरकत पर टिकी रहती है और उसे किसी चित्रकार की तूलिका की तरह रचती रहती है। उन्हें यहाँ डल झील का जादू मोहित करता है औऱ ट्यूलिप का बाग भी लेकिन वे एक मार्मिक टिप्पणी भी करते चलते हैं।

मिसाल के तौर पर वे लिखते हैं-ट्यूलिप बाग में टहलते हुए मैं सोच रहा था कि फूल तो शांति व प्रेम के प्रतीक हैं, पर क्या इस वादी में सचमुच सुकून के लिए एकांत में समय गुजारा जा सकता है। जाहिर है एक चित्रकार को यह बात गहरी चिंता में डाल देती है कि इतनी सुंदर वादी पर घना पहरा क्यों है?


अन्य लेख 'कालीघाट' में बलि के तहत वे कोलकाता की सुंदर स्त्रियों, ट्रामों का जिक्र करने के साथ ही काली के मंदिर में बलि के दर्दनाक किस्से दर्ज करते हैं कि कैसे बकरे काटे जा रहे हैं, धड़ और गर्दन अलग हो रहे हैं, कैसे उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर प्रसाद बनाने के लिए पकने के लिए भेजा जा रहा है। वे टिप्पणी करते हैं कि क्या धर्म है, क्या उसके कर्मकांड। और अंत में वे टिप्पणी करते हैं कि- देर तक बकरे की गर्दन, धड़ और काली की जीभ और आँखें- मेरी आँखों के सामने घूमती रहीं।

क्रीमची के मंदिर औऱ घर को लेकर भी उनकी यादें एक चित्रकार की यादें ही हैं। वे वहाँ की प्रकृति, नदी, पत्थर, मंदिरों की बनावट, दीवारों का रंग औऱ उन पर बने अलंकार को याद करते हैं औऱ कहते हैं कि हो सकता है इसका असर उनके चित्रों में कभी दिखाई दे। शनि की माया, भय और प्रीति तथा मिट्टी के सहचर जैसे लेख भी वस्तुतः यात्रा संस्मरण ही हैं।

लेखों के अलावा उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ भी पोस्ट की हैं। वृक्ष औऱ तालाब, बत्तख औऱ बच्चा, बाल कितने स्याह, केंचुली, प्रेम, हरा सर्प, पूर्वज, मुक्ति, घर लौटते पक्षी, दयालु माता का मंदिर औऱ जनगढ़सिंह श्याम का गाँव शीर्षक से कविताएँ हैं। इनमें भी प्रकृति औऱ प्रेम का ही स्वर है। भाषा चित्रमयी है। बिम्ब औऱ प्रतीक भी प्रकृति के ही हैं। इन कविताओं में कहीं-कहीं अशोक वाजपेयी की कविताओं की गूँज को भी सुना जा सकता है। एक कविता बहुत सुंदर औऱ मार्मिक है जिसका शीर्षक है मिश्र कल्याण। मैं उसे पूरी यहाँ दे रहा हूँ। पढ़िए और मजा लीजिए।

नर्मदा से कुछ नीर
नौका से कुछ डगमगाहट
धुएँ से कुछ फकीरी
अतीत से कुछ
पीड़ा
देवताओं से
कुछ हसीं
समय से कुछ एकांत
जीवन से कुछ अवकाश
हाथों से कुछ रस
स्त्री से कुछ लय वे अभिनय
माँ से कुछ धैर्य
खुद से कुछ जिद
कली से कुछ मादकता
पैरों से कुछ भ्रमण
पिता के कुछ स्वर
भाषा से कुछ शब्द
अर्थ से कुछ मृत्यु
आदि मिश्र कर
वे गाते हैं
स्वयं का,
ईश्वर का
कल्याण करते हैं।

इस ब्लॉग पर आना दुनिया को एक चित्रकार की निगाह से देखने का अनुभव प्राप्त करना है।

इस ब्लॉग का पता है-
http://idharsedekho.blogspot.com

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