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एक महत्वपूर्ण दिन 'ऑस्ट्रेलिया डे'

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रेखा राजवंशी

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छब्बीस जनवरी को जहां भारत में रिपब्लिक डे गणतंत्र दिवस की धूमधाम रहती है और महीनों पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं, उसी तरह ऑस्ट्रेलिया में भी छब्बीस जनवरी एक महत्वपूर्ण दिन है, और बहुत दिन पहले से ही यहां भी सरकार 'ऑस्ट्रेलिया डे' मनाने की योजना बनाने लगती है। छब्बीस जनवरी ऑस्ट्रेलिया के सभी राज्यों में धूमधाम से मनाई जाती है और इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है।

ऑस्ट्रेलिया डे इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन 1788 में फर्स्ट फ्लीट यानी पहला जहाज़ी बेड़ा सिडनी कोव पहुंचा था और इस नई भूमि पर ब्रिटिश झंडा फहराकर ब्रिटिश राज्य का आधिपत्य होने की घोषणा कर दी गई थी। तब इसे नाम दिया गया था न्यू होलैंड। इस पहले जहाज़ी बेड़े में कुल मिलाकर ग्यारह जहाज़ थे और ये जहाज़ ब्रिटेन के अपराधियों से भरे हुए थे।

ये जहाज़ ब्रिटेन से 13 मई 1787 को रवाना हुए, इनमें 1487 यात्री थे, जिनमें से 778 अपराधी थे। इस फ्लीट के कप्तान आर्थर फिलिप थे। ब्रिटेन की योजना इस भूमि को बसाने की तो थी ही और साथ ही साथ ब्रिटेन की पहले से ही भरी हुई जेलों से अपराधियों को दूर भेजने की भी थी। इस यात्रा के दौरान सात बच्चों ने जन्म लिया, कुछ लोग बीमार होकर मर गए।

इस कठिन यात्रा में जहाज़ों को रोककर ताज़ा पानी और भोजन लिया गया। यात्रा के बीच रिओ डि जिनारियो में रुकने के बाद फ्लीट का आख़िरी पड़ाव 13 अक्टूबर को दक्षिण अफ्रीका का केप टाउन था और वहां से खाने के अतिरिक्त पौधे और जानवर भी लिए गए, जिसमें गाय, बैल, सूअर, बकरी और भेड़ थे। अब सामने था अगाध समुद्र का विस्तार और कठिन यात्रा, जो जनवरी में ऑस्ट्रेलिया पहुंचकर समाप्त हुई। यह समुद्री यात्रा कुल मिलाकर 252 दिनों तक चली और इसे अपने समय की एक ऐतिहासिक यात्रा के रूप में माना जाता है।

ये सभी जहाज़ 18-20 जनवरी के बीच न्यू साउथ वेल्ज़ में ‘बोटनी बे’ पहुंचे परन्तु वहां तेज़ हवाओं, ताज़े पानी की कमी और अच्छी मिट्टी के अभाव में वहां से निकल जाना पड़ा। हालांकि वहीं पर पहली बार ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों से आमना-सामना भी हुआ। इक्कीस जनवरी को नाव में बैठकर कप्तान फिलिप दूसरी जगह ढूँढने निकला, पोर्ट जैकसन उसे ठीक लगा और अंततः छब्बीस जनवरी 1788 को जहाज़ों ने वहाँ लंगर डाल दिया।

कप्तान फिलिप ने इसे नया नाम दिया 'सिडनी कोव' और ब्रिटेन का झंडा फहरा कर औपचारिक रूप से उसे ब्रिटेन की बस्ती के रूप में घोषित कर दिया। तब से लेकर आज तक ऑस्ट्रेलियावासी इस नए राष्ट्र के उदय की खुशी में ऑस्ट्रेलिया डे मनाते हैं। जहां एक ओर ऑस्ट्रेलिया डे का उत्सव मनाया जाता है, वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रलिया के मूल निवासी आदिवासी एबोरीजल्स इसे एक दूसरे रूप में मनाते हैं।

यूरोपीय लोगों के आने के इस दिन को वे मूल आदिवासी संस्कृति और प्रकृति के विनाश के रूप में मनाते हैं और 1938 में इसे शोक दिवस यानी ‘डे ऑफ़ मॉर्निंग’ कहकर पुकारा गया परन्तु लोगों के आपत्ति करने के कारण इसे बाद में आक्रमण दिवस 'इन्वेज़न डे' या ‘सर्वाइवल डे’ के नाम से पुकारा गया। हालांकि अबएबोरीजल्स स्वयं को ऑस्ट्रेलिया का ही एक हिस्सा मानते हैं और ऑस्ट्रलियन सरकार ने उनके हित में विशेष सुविधाएं उपलब्ध कराई हैं, परन्तु इतिहास को याद रखने का ये उनका एक प्रयास है।

ऑस्ट्रेलिया डे पर देश के हर राज्य में विशेष उत्सवों का आयोजन किया जाता है, लोग सुबह से ही किसी भी सार्वजनिक स्थान पर इकट्ठे होने लगते हैं जैसे पार्क आदि में। झंडा फहराया जाता है, भाषण होता है, महत्वपूर्ण स्थानों पर परेड भी होती है, संगीत का आयोजन होता है, सरकार की तरफ से फ्री बार -बी-क्यू नाश्ता भी होता है, जिसमें लोग ब्रेड रोल सौसेज के साथ खाते हैं, बच्चों के लिए क्रिया-कलाप आयोजित किए जाते हैं, गैसभरे गुब्बारों की टोकरी में बैठकर बच्चे बहुत खुश होते हैं, नौका दौड़ होती है और पूरे दिन उत्सव का माहौल बना रहता है। रात को आतिशबाजी भी होती है। नए नागरिकों को शपथ दिलाई जाती है और नागरिकता प्रमाण पत्र दिए जाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में ऑस्ट्रेलिया डे के अवार्ड्स दिए जाते हैं, और पूरा दिन हँसते-हंसाते बीत जाता है। आजकल कुछ भारतीय मूल की संस्थाएं ऑस्ट्रेलिया और रिपब्लिक डे एक साथ मनाती हैं, भारतीय नाच गाने, भाषण के अलावा भारतीय मूल के विद्यार्थियों को हाई स्कूल में उच्च अंकों के लिए उपहार व सम्मान भी दिया जाता है।

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