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एक सकारात्मक दिशा के मोड़ पर पाकिस्तान

हमें फॉलो करें एक सकारात्मक दिशा के मोड़ पर पाकिस्तान

शरद सिंगी

, शनिवार, 20 अप्रैल 2013 (20:26 IST)
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भारत जैसे प्रजातान्त्रिक देश के लिए यह खुश खबर से कम नहीं कि पाकिस्तान में अगले माह 11 मई को आम चुनाव होने जा रहे हैं। भारत और अमेरिका दोनों की पैनी नज़रें इन चुनावों पर बनी रहेंगी। भारत की जनता के भी कई हित -अहित इन चुनावों के साथ जुड़े हैं।

उल्लेखनीय बात यहां पर यह है कि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है जब एक चुनी हुई सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया और अब वह आने वाली नई सरकार को शांतिप्रिय तरीके से सत्ता हस्तांतरण करेगी।

अभी तक ऐसा नहीं हुआ क्योंकि या तो सेना ने क्रांति के जरिये चुनी हुई सरकार को उखाड़ फेंका या अपनी मध्यस्थता में सरकार को बदला। प्रजातंत्र के चाहने वाले इन चुनावों को एक उपलब्धि मानते हैं किन्तु इसे उपलब्धि मानने से पहले पाकिस्तान के ताज़ा परिदृश्य पर जरा एक नज़र डालें। इन चुनावों में तीन प्रमुख दल मैदान में हैं।

पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी जो अभी तक सत्ता पक्ष है, जुल्फीकार अली भुट्टो और उनकी पुत्री बेनज़ीर भुट्टो की विरासत है। इसके अध्यक्ष आसिफ अली ज़रदारी पाकिस्तान के राष्ट्रपति होने के नाते खुलकर चुनाव में नहीं आ सकते और बेनजीर के पुत्र बिलावल जिनसे वहां की जनता काफी उम्मीदें लगाकर बैठी है, राजनीति में एक कदम आगे आते हैं और दो कदम पीछे जाते हैं।

आसिफ़ अली ज़रदारी की छवि एक दलाल की रही है। बेनजीर भुट्टो की हत्या के फलस्वरूप उपजी सहानुभूति लहर में वे राष्ट्रपति बने और उनका दल सत्ता में आया किन्तु पांच वर्ष के कार्यकाल में पाकिस्तान के हाल बाद में बद से बद्तर हुए हैं।

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उत्तर पूर्व के हिंसाग्रस्त इलाके को छोड़ भी दें तो अकेले कराची में पिछले वर्ष में दो हज़ार से ज्यादा हत्याएं हुई। अतः यह दल इस बार मुसीबतों का सामना करेगा। दूसरा प्रमुख दल है पूर्व प्रधानमंत्री और उद्योगपति नवाज़ शरीफ का पाकिस्तान मुस्लिम लीग।

इस दल ने प्रमुख विपक्षी पार्टी के बतौर काम किया और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में इस दल की सरकार है। पाकिस्तान में शायद नवाज़ शरीफ से ज्यादा लोकप्रिय नेता अभी कोई नहीं। लाहौर घोषणा पत्र में नवाज़ शरीफ और अटलजी की रचनात्मक भूमिका थी। मुशर्रफ़ सरकार ने इन्हें देश निकाला दे दिया था और कुछ वर्ष सऊदी अरब में बिताकर वापस पाकिस्तान लौटे हैं।

तीसरा प्रमुख दल है पूर्व क्रिकेटर इमरान खान का जो तेजी से लोकप्रियता के ग्राफ में ऊपर जा रहे है। इनकी कमज़ोरी है समर्पित कार्यकर्ताओं की कमी। रेलियों में तो भारी भीड़ जमा हो रही है पर वोटों में कितना परिवर्तित होगी यह तो समय बताएगा। आज के अनुमानों के अनुसार इनके दल को दूसरे नंबर पर जगह मिलने की संभावना है।

पाकिस्तान के संविधान के अनुसार उम्मीदवार को इस्लामिक शिक्षा की जानकारी होना चाहिए और ईमानदार होना चाहिए। इन चुनावों में इस कानून का पालन करने की कोशिश की जा रही है और उम्मीदवारों से पर्चा भरते समय बड़े रोचक सवाल किए जा रहे हैं, किसी से कुरान की आयतें बुलावाई जा रही हैं तो किसी से राष्ट्रगीत। किसी से अंग्रेजी शब्दों की स्पेलिंग लिखवाई जा रही है।

कराची में फार्म भरने गये एक उम्मीदवार से पूछा कि चांद पर पहला कदम रखने वाला कौन था? उम्मीदवार ने जवाब दिया नील आर्मस्ट्रांग। जज का अगला प्रश्न था और दूसरा कदम किसने रखा। उम्मीदवार ने बोला क्योंकि नील आर्मस्ट्रांग लंगड़ा नहीं था इसलिए दूसरा कदम भी उसने ही रखा था। उनका नामांकन मंजूर कर लिया गया।

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मुशर्रफ जो डींगे मारकर पाकिस्तान को डूबने से बचाने के लिए अपना स्वयंभू निर्वासन समाप्त कर पाकिस्तान लौटे तो वहां की जनता और न्यायालय ने उन्हें कूड़े दान में डाल दिया। यही जनरल कुछ दिन पहले तक गर्वोक्ति करते थे कि कारगिल का षड्यंत्र उनके शातिर दिमाग की उपज है और उन्होंने भारत की सीमा में गैरकानूनी प्रवेश भी किया था।

इनके साथ ही भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री राज़ा परवेज़ अशरफ और युसूफ रजा गिलानी के नामांकन भी खारिज हो गए हैं।

कुल मिलाकर रक्षक (सेना और पुलिस ) भक्षक बन चुके है। नेता पथभ्रष्ट, जनता भ्रमित। शासक कुशासक और तंत्र भ्रष्ट। सूत्रों के अनुसार ओसामा बिन लादेन को भी अपने मकान की ज़मीन के लिए पचास हज़ार पाकिस्तानी रुपयों की रिश्वत देनी पड़ी थी।

राजनीति धर्म से प्रेरित न होकर धर्म राजनीति से प्रेरित हो चुका है। धार्मिक नेताओं की राजनैतिक महत्वाकांक्षाए है और अनपढ़ लोग इनके खेल का एक हिस्सा।

राजनीतिक दलों का अमेरिका और भारत विरोध का एक सूत्री घोषणा पत्र कब तक इनको सफलता दिल पाएगा? जनता को बेरोज़गारी, गरीबी, आतंकवाद, कुशासन, भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए और आर्थिक विकास का भरोसा। असंतोष और उग्रवाद में एक बहुत ही महीन पर्दा है। असंतोष राष्ट्र को तरक्की के रास्ते पर ले जाता है तो उग्रवाद गर्त में।

एक सर्वेक्षण के अनुसार पाकिस्तान के 94 प्रतिशत युवा मानते हैं कि देश गलत रास्ते पर जा रहा है, पाकिस्तान की अवाम के सामने मौका है रास्ता चुनने का और आशा है वे सही रास्ता चुनेंगे। भारत जैसे उदारवादी राष्ट्र की सहिष्णु जनता उन्हें शुभेच्छा ही प्रेषित कर सकती है।

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