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कस्बों से कम्प्यूटर क्रांति के मीठे फल

भारतीय भाषाओं के साथ विदेशों में स्वदेशी डंके

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आलोक मेहता

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बात 1985 की है। राजीव गाँधी के कम्प्यूटर प्रेम की आलोचना होने पर हम जैसे पत्रकारों को भी लगता था कि भारत जैसे गरीब पिछड़े देश में कम्प्यूटर क्रांति से कितना लाभ होगा। फ्रांस और अमेरिका की यात्रा के दौरान अमेरिका ने उन्नत कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी (सुपर कम्प्यूटर) के लिए राजीव गाँधी को साफ कह दिया, लेकिन राजीव गाँधी ने भारत के हजारों युवाओं की आँखों में आधुनिक 'कम्प्यूटर क्रांति का सपना भर दिया। वह सपना न केवल पूरा हुआ, अब जॉर्ज बुश और बिल गेट्स भी कम्प्यूटर क्रांति और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सॉफ्टवेयर की सफलता के लिए भारतीय युवाओं की मेहरबानी पाने को तरसने लगे हैं।

  वेबदुनिया ने सबसे पहले ऐसी तकनीक उपलब्ध कराई, जिससे अंग्रेजी को रोमन लिपि में टाइप करते हुए स्क्रीन पर हिन्दी लिखी हुई पढ़ने को मिले। पंजाबी, मराठी, गुजराती, मलयालम, असमिया, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, तथा उड़िया में बाकायदा ई-मेल किया जा सकता है      
राजीव गाँधी की तरह ही इंदौर जैसे शहर के प्रतिभाशाली युवा विनय छजलानी ने एक सपना बुना था। पिलानी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई में टॉप करने के बाद विनय छजलानी ने 1985-86 में अमेरिका जाकर प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी तथा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के जरिए भाषायी कम्प्यूटर क्रांति का दृढ़ निश्चय किया। पहले अमेरिका में ही कंपनी बनाई और फिर 1999 में विश्व का पहला बहुभाषी पोर्टल तथा भाषाई टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराने वाली कंपनी वेबदुनिया डॉट कॉम (इंडिया) स्थापित की। इंदौर के नईदुनिया अखबार में रहने के कारण मैंने विनय को बचपन में देखा था फिर दिल्ली में पिलानी से आते-जाते कभी-कभार मिलने के अवसर आए।

पारिवारिक स्नेह के कारण 1986 से 1999-2000 के बीच भी यही लगता रहा कि पता नहीं विनय कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी से हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के लोगों को कैसे लाभान्वित कर सकेंगे, लेकिन वह तो धुन के पक्के थे, अपने मार्ग पर बढ़ते रहे। पिछले दिनों उज्जैन यात्रा के समय उन्होंने समय निकालकर इंदौर आने का निमंत्रण दिया। संयोग से समय मिला। हम इंदौर पहुँचे, थोड़ी देर गपशप के बाद विनय ने जानना चाहा कि क्या हम वेबदुनिया का कामकाज देखना चाहेंगे। मेरी पहली प्रतिक्रिया थी कि देख सकते हैं, लेकिन देखना क्या है- आजकल 5 कम्प्यूटर रखकर अखबार और पोर्टल के काम चल जाते हैं। लेकिन चलते समय दोबारा पूछने पर हमने दूसरी बिल्डिंग तक जाने की हाँ कर दी।

तब पता चला कि वेबदुनिया कंपनी का काम तो तीन इमारतों में चल रहा है। अंदाजा था कि 15-20 मिनट से अधिक समय नहीं लगेगा लेकिन कम्प्यूटर और सॉफ्टवेयर के इस भारतीय साम्राज्य को देखने-समझने में दो घंटे से अधिक समय लग गया। सुखद आश्चर्य यह था कि विनय छजलानी की इस कंपनी में लगभग 700 ऐसे युवाओं को रोजगार मिला हुआ है जो तकनीकी ज्ञान के साथ हिन्दी तथा 11 से अधिक भारतीय भाषाओं एवं विदेशी भाषाओं पर अच्छा अधिकार रखते हैं। इंदौर जैसे शहर में कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर की ऐसी अंतराष्ट्रीय कंपनी का मुख्यालय है, जिसकी एक शाखा न्यूयॉर्क में है और जो वहाँ भी 300 युवाओं को रोजगार दे रही है।

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वेबदुनिया के प्रबंध निदेशक के नाते विनय छजलानी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तथा कम्प्यूटर टर्मिनल से ही न्यूयॉर्क शाखा का कामकाज भी संभालते हैं। मध्यप्रदेश वालों को ही नहीं, हर भारतवासी को यह गौरव हो सकता है कि माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के प्रमुख बिल गेट्स ने भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए स्वयं विनय छजलानी को सम्मानित किया। आखिरकार भारत के हर कोने को कम्प्यूटर सुविधा से जोड़ने के लिए अंग्रेजी नहीं, भारतीय भाषाओं की जरूरत है। यह काम भारतीय युवा ही कर सकते हैं।

वेबदुनिया ने सबसे पहले ऐसी तकनीक उपलब्ध कराई, जिससे अंग्रेजी को रोमन लिपि में टाइप करते हुए स्क्रीन पर हिन्दी लिखी हुई पढ़ने को मिले। उनके सॉफ्टवेयर से हिन्दी, पंजाबी, मराठी, गुजराती, मलयालम, असमिया, बांग्ला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, तथा उड़िया में बाकायदा ई-मेल किया जा सकता है, शुभकामना कार्ड भेजे जा सकते हैं, उत्तर मँगवाए जा सकते हैं, खबरें लिखी और पढ़ी जा सकती हैं। दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने वेबदुनिया की सहायता से ही ऐसे कुंजी पटल (की-बोर्ड) को विकसित किया तथा विश्व को अधिकाधिक भारतीयों से जोड़ा।

यह सूचना क्रांति निश्चित रूप से कस्बों और गाँवों को अधिक जागरूक बना सकेगी। ऐसे ही युवा इंजीनियर बिजली के बिना बैटरी से चल सकने तथा कम कीमत वाले कम्प्यूटर बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। हम जैसे कई पत्रकार यह आशंका भी व्यक्त करते रहे हैं कि कम्प्यूटर क्रांति से कहीं रोजगार के अवसर तो कम नहीं होंगे, लेकिन अब तो यह साबित हो रहा है कि इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। भारत से लेकर अमेरिका, जर्मनी, जापान, चीन तक सॉफ्टवेयर कंपनियों में भारतीय युवा तकनीकविशेषज्ञों की माँग बढ़ती जा रही है। फिर हमारी धारणाएँ इसलिए भी बदली हैं कि अब ये सॉफ्टवेयर केवल कम्प्यूटर के लिए नहीं, टेलीविजन, वीडियो, रेडियो, मोबाइल, वायरलेस सेवाओं तक के लिए उपयोगी हो गए हैं।
(साभार : 'आउटलुक' हिन्दी साप्ताहिक 3 मार्च 2008 के अंक से)

माइक्रोसॉफ्ट के अलावा रिलायंस कम्यूनिकेशंस, याहू, ओरेकल, टाटा इंडिकॉम, रेडिफ, ऐम्वे, एलजी, आईसीआईसीआई बैंक तक ऐसी सॉफ्टवेयर कंपनियों की सहायता से अपनी सेवाएँ दे रही हैं। स्वाभाविक है कि विभिन्न सेवाओं के लिए भारतीय युवा इंजीनियरों, भाषाई कर्मचारियों की आवश्यकता होगी।

इस बात की पुष्टि अपने छोटे से कस्बे उज्जैन में स्थापित महाकाल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कम्प्यूटर साइंस, फार्मास्युटिकल स्टडीज तथा मैनेजमेंट स्टडीज संस्थान को देखकर हुई। विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में करीब 2,000 छात्रों को शिक्षा-दीक्षा देने वाले इस संस्थान में इस अंचल के अलावा अन्य राज्यों से आने वाले युवाओं को प्रवेश मिल रहा है तथा बाद में तत्काल रोजगार के अवसर भी। इस शहर में दो दशक पहले मात्र सरकारी पोलीटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेज हुआ करते थे।

दिग्विजय सरकार ने गैर सरकारी क्षेत्र में विज्ञान-प्रौद्योगिकी के संस्थान खोलने की छूट दी तो एमआईटी जैसे संस्थान आ गए। पचास एकड़ क्षेत्र में फैला यह संस्थान अमेरिका या यूरोप के किसी विश्वविद्यालय से कम नहीं लगता तथा युवाओं में गजब का आत्मविश्वास देखने को मिलता है। यहाँ भी चौंकाने वाली बात यह लगी कि फीस सरकार द्वारा नियंत्रित है और इंजीनियरिंग कम्प्यूटर विज्ञान की उच्चतम शिक्षा के लिए दिल्ली, मुंबई के किसी अच्छे पब्लिक स्कूल की वार्षिक फीस से कम फीस ली जा रही है।

निश्चित रूप से मध्यप्रदेश या उत्तर भारत के कई अन्य शहरों में संचार क्रांति के दर्शन होने लगे हैं। सांप्रदायिक तूफानों, भ्रष्टाचार और अपराध, राजनीतिक पतन के निराशाजनक दौर में इन कस्बों के उत्साही, प्रतिभाशाली और महत्वाकांक्षी युवा आशा की नई किरण जगाते हैं। संभव है, कमियों, कठिनाइयों और चुनौतियों का अंबार भी हो लेकिन सामाजिक गड़बड़ियों की भर्त्सना करते रहने वाले हम लोगों का एक कर्तव्य अच्छे प्रयासों की सराहना करना भी है। (हिन्दी आउटलुक से)

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