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गंगा के बहाने नदियों को बचाने का भागीरथी प्रयास

सिर्फ शुद्धिकरण नहीं, सेवा और संरक्षण को बढ़ावा

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अनिल सौमित्र

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नई दिल्ली। आयोजन सरकारी था, लेकिन असरकारी, अर्थात् प्रभावी रहा। 7 जुलाई को दिल्ली के विज्ञान भवन में गंगा मंथन’ का आयोजन हुआ। नदियों, विशेषकर गंगा से संबंधित विशेषज्ञों, जनप्रतिनिधियों, स्वैच्छिक संस्थाओं और प्रशासनिक प्रतिनिधियों के बीच साधु-संतों की उपस्थिति ने मंथन को खास बना दिया।

समापन सत्र में केन्द्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि आज का दिन हमारे देश के इतिहास में एक अति महत्वपूर्ण दिन है। गंगा के संरक्षण के साथ ही एक पूरी सभ्यता के प्रति हम अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गंगा नदी के विकास के पहले चरण में गंगा को वाराणसी से हुगली के बीच छोटे जहाजों को चलाने योग्य बनाने के लिए इसकी चैड़ाई 45 मीटर और गहराई पांच मीटर करने के लिए खुदाई करने का प्रस्ताव किया गया है। गंगा पर हर सौ किलोमीटर के बाद बांध बनाए जाएंगे। उनके मंत्रालय ने इलाहाबाद-हल्दिया कॉरिडोर के विकास के लिए विश्व बैंक को प्रस्ताव भेजा है। गडकरी ने कहा कि समन्वय, सहयोग और संवाद के आधार पर हम गंगा संरक्षण के लक्ष्य को पूरा करेंगे।

जल संसाधन और नदी विकास के साथ ही नए मंत्रालय गंगा पुनर्जीवन की मंत्री उमा भारती ने गंगा पर राष्ट्रीय संवाद में कहा कि पूरा देश गंगोत्री से गंगा सागर तक गंगा के अविरल और निर्मल प्रवाह के लिए वचनबद्ध है। इस संवाद के निष्कर्षों को सरकार ईमानदारी से पूरा करेगी। गंगा पुनरुद्धार के लिए धन की कोई कमी नहीं रहेगी। वे समाज को संवेदनशील और जागरूक बनाने के साथ ही गंगा संरक्षण के लिए कानून बनाने की पक्षधर भी रही हैं। अपने गंगा यात्रा के दौरान उन्होंने गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण को विफल बताया था। उमा भारती नदियों के संरक्षण के लिए लोगों का सहयोग चाहती हैं। इसके लिए आम लोगों में नदियों के प्रति श्रद्धा, आस्था और विश्वास को पुनर्जीवित करना जरूरी होगा।

भारती ने कहा कि आने वाले समय में नदियां और जल ही लोगों का जीवन बचा सकेंगीं। हालांकि सरकार के स्तर पर बहुत बड़ा बदलाव फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा। सबसे बड़ा परिवर्तन यही दिखाई देता है कि गंगा की स्वच्छता से आगे बढ़कर गंगा संरक्षण की बात शुरू हो गई है। इस सरकार की दूसरी सबसे बड़ी बात है- गंगा के मिशन को विश्व बैंक और भारत सरकार से आगे ले जाकर देश का मिशन बनाने का प्रयास। पूर्ववर्ती सरकारें गंगा के संरक्षण की बजाए स्वच्‍छता पर ज्यादा जोर देती रही हैं। वर्ष 2012 में यूपीए सरकार ने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण द्वारा विभिन्न परियोजनाओं के लिए लगभग 2600 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी। इन परियोजनाओं में सीवर नेटवर्क, जलमल शोधन संयंत्र, जलमल पम्पिंग स्टेशन, विद्युत शवदाहगृहों के निर्माण, सामुदायिक शौचालयों का विकास और नदियों के मुहानों के विकास की परियोजनाएं शामिल हैं। यूपीए सरकार ने इन कार्यों के लिए विश्व बैंक से एक बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता ली थी।

हालांकि एनडीए की सरकार भी विश्व बैंक से सहायता लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस सरकार का जोर नदियों के संरक्षण पर रहेगा। वर्ष 2014-15 के आम बजट में मोदी सरकार ने गंगा नदी के लिए प्रवासी भारतीय निधि बनाने की घोषणा की है। गंगा को परिवहन का माध्यम बनाने के लिए मोदी सरकार ने नए बजट में 4200 करोड़ का प्रावधान किया है। इसके अतिरिक्त 'नमामि गंगे विशेष परियोजना' के लिए 2037 करोड़ पृथक से आवंटित किया गया है। केन्द्रीय पर्यटन और संस्कृति मंत्री श्रीपाद नाईक ने कहा कि गंगा के किनारे पर्यटक स्थलों का विकास किया जाएगा।

संबंधित विभाग की मंत्री भी मानती हैं कि पहले सरकारों की घोषणाओं में नेकनीयती तो थी, लेकिन उनमें एकजुटता, एकरूपता और समन्वय की कमी थी। उन्होंने कहा, अब मोदी सरकार में यह सब नहीं होगा। अब सरकार में शीघ्रता भी है और तीव्रता भी। वे इस बात से आश्वस्त हैं कि निर्णय में कोई बाधा नहीं है, इसलिए उन्हें भरोसा है, वे देश को भी भरोसा दिला रहीं हैं कि विकास जनांदोलन बनेगा। उमा भारती विरोधियों से परेशान नहीं, लेकिन सतर्क हैं। उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्षा और अन्य नेताओं से गंगा को सांप्रदायिक राजनीति से मुक्त रखने की अपील की। उमा भारती ने कहा कि गंगा जल हिन्दू और मुसलमान दोनों को चाहिए। पंडित को पूजा करने के लिए तो इमाम को वुजू के लिए। उन्होंने कड़े लहजे में कहा, हमें सर्वपंथ समभाव का दिखावा नहीं करना है, इसमें हमारी आस्था है।

नौकरशाह भले ही गंगा को सिर्फ पानी को स्रोत समझते हों, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओं और गंगा में आस्था रखने वाले विशेषज्ञ उनसे अलहदा विचार रखते हैं। इस मामले में पंडित मदनमोहन मालवीय के प्रपौत्र और सेवानिवृत्‍त न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय, यमुना आंदोलन से जुड़े मनोज मिश्र और उनके जैसे ही कई और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नदी को सिर्फ जल स्रोत समझने के खतरे के प्रति आगाह किया। मंथन के दौरान वे बार-बार नदी को संपूर्णता में देखने-समझने पर जोर देते रहे। मनोज मिश्र ने कहा कि जैसे हमारे शरीर में रक्त प्रवाह होता है, वैसे ही नदी के शरीर में जल प्रवाह, लेकिन जैसे हम रक्त प्रवाह को पूरा शरीर नहीं मान लेता, वैसे ही हमें जल प्रवाह को नदी नहीं मान लेना चाहिए।

हमें नदियों के स्वभाव, प्रकृति, जीवन प्रक्रिया और उनके वैशिष्ट को गहराई से समझना होगा। इंडिया वॉटर पोर्टल के संचालक और नदियों पर वर्षों से कार्यरत केसर सिंह कहते हैं- हमें सिर्फ गंगा की ही नहीं, बल्कि गंगा को नदियों का प्रतिनिधि मानकर देश की सभी नदियों, खासकर छोटी-छोटी नदियों के बारे में चिंता करनी होगी। भारतीय सभ्यता का अस्तित्व ही नदियों से जुड़ा है। गंगा समग्र अभियान के आशीष गौतम गंगा के प्रति आस्था, श्रद्धा और समर्पण पक्ष पर जोर देते हुए कहते हैं, आज तक हमने गंगा से बहुत कुछ लिया है। हम गंगा को मां मानते हैं, अब मां को कुछ देने का समय आया है।

दरअसल गंगा विचारधारा का प्रश्न भी बन गई हैं। चुनाव के पहले गंगा समग्र अभियान चला। साध्वी उमा भारती के नेतृत्व में देश के अधिकांश हिस्सों में यात्रा निकाली गई। गंगा अभियान का राजनीतिक लाभ भाजपा को मिला भी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव के दौरान काशी में कहा था, मुझे गंगा मां ने बुलाया है। गंगा के अनेक पक्ष और आयाम हैं। इसमें आस्था, श्रद्धा और पवित्रता तो है ही, गंगा भारत की अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, परंपरा और संस्कृति के साथ ही राजनीति को भी प्रभावित करती हैं। वर्षों से गौ और गंगा माता की बातें होती रही हैं। इसलिए वर्तमान सरकार के सामने बड़ी चुनौती है। गौ और गंगा को लेकर लोगों की अपेक्षाएं पहाड़ जैसी हैं। मोदी सरकार ने नदियों, विशेष रूप से गंगा के लिए पृथक मंत्रालय बनाकर गंभीर प्रयास का संकेत दिया है।

दूसरी तरफ बाजारवादी सोच के लोग भी हैं। ये वे लोग हैं जो तंत्र और व्यवस्था पर हावी हैं। एक सोच गंगा के दोहन की है, दूसरी गंगा के संरक्षण और पोषण की। गंगा के बहाने नदियों की बात करने वाले नदियों की आवश्यकता समझकर उसके अनुसार प्रयास चाहते हैं, जबकि नदी को महज जल स्रोत मानने वाले नदी की स्वच्छता, सौंदर्य और प्रवाह को देाहन के नजरिण्‍ से देख रहे हैं। देखना यही है कि गंगा को प्रकृति केन्द्रित विकास के परिपेक्ष्य में देखा जाता है कि मनुष्य केन्द्रित विकास दृष्टि से।

गंगा मंथन देश के सांस्कृतिक इतिहास में मील का पत्थर सिद्ध हो सकता है, लेकिन इसके लिए आवश्यकता यही है कि गंगा के बहाने देश की नदियों के स्वास्थ्य की चिंता पैदा हो। उमा भारती ने कहा कि नरेन्द्र मोदी आधुनिक युग के भागीरथ बने हैं, लेकिन जरूरत ऐसे हजारों भागीरथ-प्रयासों की होगी जो गंगा को अविरल और निर्मल बनाने की दिशा में हो। यह प्रयास करते हुए इतिहास, संस्कृति, विरासत, श्रद्धा, परंपरा और आस्था भी अक्षुण्ण रहे। सरकार और समाज दृढ़ इच्छाशक्ति से समयबद्ध और पारदर्शी तरीके से प्रयास करेगी तो सार्थक परिणाम मिल सकता है।

गंगा मंथन के सुझावों पर सरकार का मंथन जारी है। साधु-संतों ने भी हिन्दू समाज की दृष्टि से कुछ कठोर और सुधारात्मक प्रयास करने का सुझाव दिया, वादा किया। नदी किनारे शवदाह और शवप्रवाह पर भी चिंता व्यक्त की गई। कल-कारखानों सहित रहवासी क्षेत्रों से गंदे जल के नदी में मिलने पर भी चिंता व्यक्त की गई। यह भी कहा गया कि भारत का व्यक्ति कानून व्यवस्था से अधिक समाज व्यवस्था से डरता है। इसलिए नदी की सुरक्षा और संरक्षण में समाज-व्यवस्था कारगर हो सकती है।

साध्वी उमा भारती ने कहा, हम सभी के मन में सिर्फ गंगा शुद्धिकरण का भाव नहीं, मां को दुखः पहुंचाने का प्रायश्चित भाव है। इस बात की पूरी गुंजाइश है कि आने वाले दिनों में गंगा अभियान जनांदोलन बन जाए। फिलहाल तो गंगा की स्वच्छता का काम सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के मातहत काम करने वाले 14 एजेंसियों के जिम्मे है। अब इसे समाज का आंदोलन बनने की दरकार है।

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