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गनीमत है बम धमाकों से पहले हुई दुर्घटना

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आलोक मेहता

तालिबानी मुजाहिदीनों की तरह बम धमाकों की तैयारी कर रहे बजरंग दल के दो नेता बम बनाते हुए सोमवार को कानपुर में मारे गए। उनके दो अन्य साथी बुरी तरह घायल हुए। दूसरी तरफ सोमवार को ही विश्व हिन्दू परिषद के 'पराक्रमी' कार्यकर्ताओं ने उड़ीसा में चर्च के एक अनाथालय की 20 वर्षीय युवती को जिंदा जला दिया।

इन घटनाओं से आरएसएस के सरसंघचालक तथा सरकार्यवाह अथवा भाजपा के अध्यक्ष राजनाथसिंह तथा प्रधानमंत्री के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी संभवतः विचलित हुए हों, लेकिन 'हिन्दुत्व' के नाम पर 20 वर्षों से हिंसक गतिविधियों की तैयारी कर रहे कट्टरपंथी तत्वों पर नजर रखने वालों को कोई आश्चर्य नहीं हो सकता।

  बिन लादेन से एक हजार गुना बड़ी विनाशकारी योजना के सर्जक इस कट्टरपंथी 'हिन्दुत्ववादी' ने भारत के कथित 'हिन्दू परमाणु बम' के बल पर एशिया, योरप, अमेरिका, अफ्रीका के अनेक देशों पर विजय के साथ भगवा झंडा फहराने का अपना पूरा ताना-बाना लिख रखा था।      
कम से कम मुझे यह घटना अप्रत्याशित नहीं लगी, क्योंकि सन्‌ 2000 में न्यूयॉर्क में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को एक सीडी तथा पुस्तक भेंट करने वाले कालकी गौड़ से मेरी भी मुलाकात हुई थी।

बिन लादेन से एक हजार गुना बड़ी विनाशकारी योजना के सर्जक इस कट्टरपंथी 'हिन्दुत्ववादी' ने भारत के कथित 'हिन्दू परमाणु बम' के बल पर एशिया, योरप, अमेरिका, अफ्रीका के अनेक देशों पर विजय के साथ भगवा झंडा फहराने का अपना पूरा ताना-बाना लिख रखा था।

जब बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद की घोषणाओं से सौ कदम आगे चलने वाले कट्टरपंथी देश-विदेश तक फैले हों, तब कानपुर, मुंबई, अहमदाबाद में बैठे कुछ कट्टरपंथियों का बम-बंदूक बनाना स्वाभाविक है।

यदि कानपुर में बम बनाते बजरंगी दुर्घटना के शिकार नहीं होते तो अगले कुछ हफ्तों में जाने कितने मासूम लोग इन बम विस्फोटों से मारे जाते तथा सांप्रदायिक दानव गुप्त ठिकानों पर अट्टहास कर रहे होते।

विडंबना यह है कि भारत की सत्ता-व्यवस्था चला रहे रिटायर्ड या सेवारत महा जासूस बम-धमाकों या बम-निर्माण दुर्घटना से पहले ऐसे कट्टरपंथियों को दबोचकर जेल में क्यों नहीं ठूँसते? गोली का जवाब गोली, बम का जवाब बम, 50 की हत्या के जवाब में 500 की हत्या वाली मानसिकता वाले कट्टरपंथियों को पुलिस, राजनीतिक दल और दुनिया को भारत का आध्यात्मिक-सांस्कृतिक ज्ञान बाँट रहे संतों-बाबाओं के संगठन सही रास्ते पर क्यों नहीं लाते?

केंद्र में 4 साल से कांगे्रस-सोशलिस्ट-कम्युनिस्ट विचारों की छतरी वाली सरकार है, लेकिन बाबरी मस्जिद विध्वंस, गुजरात दंगों, 1984 के उपद्रवों, संसद पर हमला करने वाले आतंकवादियों और हाल के वर्षों में पनपे सांप्रदायिक तत्वों को कठोर दंड दिलाने की कोई ठोस कार्रवाई दिखाई नहीं दी।

दूसरी तरफ कट्टरपंथियों के दबाव में भाजपा के सत्ताधारी स्वयंसेवक अपने संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के इस मूल दर्शन को कैसे भूल रहे हैं कि 'विभेदकारी संकीर्ण भावनाओं के कारण ही हिन्दू समाज और राष्ट्र कमजोर हुआ था।' उनके बाद सरसंघचालक गुरु गोलवलकर ने सार्वजनिक बैठकों में माना था- 'सभी धर्म वस्तुतः ईश्वर की ही ओर उन्मुख करते हैं।' अतः यह सत्य आप क्यों नहीं स्वीकारते कि मुसलमान, ईसाई और हिन्दुओं का परमात्मा एक ही है।'

आखिरकार भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल जैसी संस्थाएँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले अधिकांश स्वयंसेवकों द्वारा नियंत्रित हैं, लेकिन नैतिकता, अनुशासन और राष्ट्र पे्रम की अपेक्षा क्या उन्हें सत्ता और हिंसक तरीकों से मोह हो गया है? आतंकवादी अथवा हिंसा में विश्वास रखने वाले संगठनों की गतिविधियाँ निरंतर बढ़ने से गाँधी या गोलवलकर के अनुयायियों का ही नहीं, हर भारतवासी का नुकसान होने वाला है।

ऐसी स्थिति में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच राजनीतिक कटुता से हटकर बेहतर तालमेल क्यों नहीं होता? छत्तीसगढ़ या झारखंड की नक्सली हिंसा हो अथवा सिमी या बजरंग दल के बम धमाकों से होने वाली नृशंस हत्याएँ, अपराधियों की समय रहते छानबीन कर उन्हें 'स्पीडी ट्रायल कोर्ट' के जरिए शीघ्रातिशीघ्र दंडित क्यों नहीं करवाया जा रहा है?

संस्थाओं के प्रतिबंध की कागजी घोषणाओं से कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि अब हर धर्म के कट्टरपंथी नाम, चोगे बदलकर हिंसा कर रहे हैं। हाल में भारत से भागा या भगवाया गया अमेरिकी कागजी कार्पोरेट कंपनी और धर्म प्रचार के खेल के साथ पता नहीं कहाँ-कहाँ से तार जोड़े हुए था? सरकार और समाज को ऐसे ही खतरनाक तारों का जाल तोड़ना है।

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