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टर्निंग पाइंट : विकास सब पर भारी

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उमेश त्रिवेदी

गुजरात में नरेंद्र मोदी की जीत ने सब लोगों को चौंकाया है। चौंकाया इस मायने में नहीं कि उन्हें अनपेक्षित जीत मिली है। ज्यादातर पर्यवेक्षकों का मत था कि वो जीतेंगे, भले ही वह मामूली अंतर वाली जीत हो।

यहाँ चौंकाने का संदर्भ यह है कि उन्होंने राजनीति और सत्ता के गलियारों के कई 'मिथ' तोड़े हैं। राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया के दिग्गजों की कई धारणाओं और अवधारणाओं को धूल चटाई है। मतगणना शुरू होने के पहले तक कतिपय तत्व उम्मीदों के झीने तारों से मोदी की हार का ताना-बाना बुन रहे थे।

संभवतः यही कारण था कि नतीजे घोषित होने के एक दिन पहले सट्टा बाजार में कांग्रेस की आशाएँ सुर्ख हो उठी थीं, लेकिन अब सब साफ है। गुजरात विधानसभा में भाजपा की तीसरी लगातार विजय और उसके शिल्पकार नरेंद्र मोदी के करिश्मे से समूचा समीक्षा जगत पुनर्विचार की मुद्रा में है।

मोदी की सफलताओं ने जहाँ उनके इर्द-गिर्द खड़े बड़े-बड़े सवालों को पछाड़ा है, तो राजनीति की दुनिया में कुछ नए सवाल भी खड़े कर दिए हैं। गुजरात का यह चुनाव देश की राजनीति का 'टर्निंग पॉइंट' भी सिद्ध हो सकता है।

अब राजनेताओं को सबसे पहले उनके द्वारा उठाए गए सवालों के उन उत्तरों की समीक्षा करना होगी, जो मोदी शैली में उन्हें मिले हैं। फिर उन सवालों के हल भी ढूँढना होंगे, जो मोदी ने अपनी जीत से खड़े किए हैं। संभवतः इसके बाद ही देश में स्थिर राजनीति का सिलसिला गति पकड़ पाएगा।

इन नतीजों ने इस अवधारणा और अन्तर्प्रवाहों को अविचारणीय बना दिया है कि चुनाव में विकास का महत्व नगण्य है। ज्यादातर चुनाव भावनात्मक मुद्दों पर ही जीते जाते हैं। इस विचारधारा को भी गहरा झटका लगा है कि भ्रष्टाचार अब सार्वजनिक जीवन की अनिवार्य परिणति है और समाज ने इसे स्वीकार कर लिया है।

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