Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

डॉटर ऑफ ईस्ट नहीं रहीं...

एक शानदार शख्सियत का दर्दनाक अंत...

हमें फॉलो करें डॉटर ऑफ ईस्ट नहीं रहीं...

श्रुति अग्रवाल

हलके रंग की सलवार कमीज, लंबा कोट, सिर पर अदा से ओढ़ा गया दुपट्टा और सुर्ख लाल लिपस्टिक, आत्मविश्वास से लबरेज नवयौवना जिसकी आँखों में भविष्य के सुनहरे सपने थे, जिसने ऑक्सफोर्ड जैसे उच्च शिक्षा संस्थान से अपनी पढ़ाई की थी। अपने पिता के दुःखद अंत के बाद राजनीति में खिंचती चली आईं और जल्द ही अपने नाम की तरह बेनजीर साबित हुईं। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की लाड़ली और महत्वाकांक्षी बेटी बेनजीर भुट्टो की।
  लंदन की सुरक्षित दरो-दीवारों में मुझे वो सुकून नही मिलता जो मेरे पाकिस्तान में है, मैं मिट्टी की बेटी हूँ। जीना-मरना अल्लाह की रजा पर है, हर किसी की मौत का दिन और वक्त्त मुकर्रर है      

यथा नाम तथा गुण : बेनजीर का जन्म 1953 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हुआ था। अपनी संतान की शिक्षा-दीक्षा में कोई कमी न रहे, इसलिए जुल्फिकार अली भुट्टो ने बेनजीर की शिक्षा आक्सफोर्ड और हावर्ड जैसे संस्थानों से करवाई। पिता ने अपने राजनीतिक कार्यों को गति देने के लिए अपनी बेटी को घुट्टी की तरह राजनीति का भी ज्ञान दिया। बेनजीर अपने पिता से खासी प्रभावित थीं, लेकिन राजनीति से अलग अपना मुकाम बनाना चाहती थीं। इसी बीच एक घटना घटी। उनके पिता को फाँसी दे दी गई। इस घटना ने बेनजीर की जिंदगी और जिंदगी का मकसद बदल दिया।

लोकतंत्र के लिए कुर्बान: गौरतलब है कि बेनजीर के पिता पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान में लोकतंत्र का जनक भी माना जाता है। वे 1973 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन वे ज्यादा दिनों तक इस पद पर आसीन नहीं रह सके।

1977 में तख्तापलट हुआ और पाकिस्तान की सत्ता सैनिक तानाशाह जनरल जिया-उल-हक के हाथ में आ गई। भुट्टो पर अपने राजनीतिक विरोधी की हत्या का आरोप लगा और उन्हें फाँसी की सजा सुनाई गई। तमाम अंतरराष्ट्रीय दवाब के बावजूद 4 अप्रैल 1979 को जुल्फिकार अली भुट्टो को फाँसी दे दी गई। यहाँ तक क‍ि जुल्फिकार अली भुट्टो की पत्नी नुसरत भुट्टो और बेटी बेनजीर भुट्टो को जनाजे में शामिल होने की इजाजत नहीं दी गई।

नाजुक बेनजीर के बुलंद इरादे: बेनजीर के पक्के इरादों की झलक तब मिली, जब उनके पिता को फाँसी दिए जाने से कुछ समय पहले बेनजीर को गिरफ्तार किया गया और उन्हें लगभग पाँच साल जेल में बिताना पड़े। अब बेनजीर अपनी आजादी का मौका तलाश रही थीं। उन्हें मौका मिला भी, चिकित्सा के लिए जेल से बाहर आने-जाने के दौरान उन्होंने लंदन में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) का पुनर्गठन किया और जनरल जिया के खिलाफ अभियान शुरू किया। वे 1986 में पाकिस्तान वापस आईं, जहाँ लोगों ने उन्हें हाथोहाथ लिया।

  कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है लेकिन इतिहास को महसूस नहीं होता कि वर्तमान भी उसी की तरह होगा। बेनजीर के मामले में यह बात बिलकुल सच लगती है। अमीर खानदान की बेटी जिसकी परवरिश शहजादियों की तरह हुई हो वह भी अपने पिता की ही तरह अकाल मौत का शिकार हुई।      
1988 में एक बम धमाके में जिया-उल-हक की मौत के बाद वे पाकिस्तान में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं। वे दो बार, 1988 से 1990 और फिर 1993 से 1996 तक पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं। दोनों ही बार उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण पद से हटाया गया।

वतन वापसी पर धमाकों से स्वागत: 1999 में बेनजीर पाकिस्तान छोड़कर चली गईं। उन्होंने अपने जीवन के आठ साल दुबई और लंदन में अपने परिवार के साथ बिताए, लेकिन राजनीति और देशप्रेम उन्हें वापस पाकिस्तान खींच लाया। इस साल अक्टूबर के महीने में बेनजीर वापस पाकिस्तान लौटीं, चुनाव में भाग लेने के लिए। और यही चुनावी रैली उनका आखिरी सफर साबित हुई। वतन वापसी की स्वागत रैली पर हुए आत्मघाती हमले के बाद जब उनसे पूछा गया कि पाकिस्तान में आपकी जान को खतरा है, फिर भी आप वापस क्यों आईं, तब उनका जवाब था "लंदन की सुरक्षित दरो-दीवारों में मुझे वो सुकून नही मिलता, जो मेरे पाकिस्तान में है, मैं मिट्टी की बेटी हूँ। जीना-मरना अल्लाह की रजा पर है, हर किसी की मौत का दिन और वक्त्त मुकर्रर है"।

इतिहास को क्या मालूम कि वर्तमान भी उसके जैसा होगा- कहते हैं इतिहास खुद को दोहराता है, लेकिन इतिहास को कभी भी महसूस नहीं होता कि वर्तमान भी उसी की तरह होगा। बेनजीर के मामले में यह बात बिलकुल सच लगती है। एक अमीर खानदान की बेटी, जिसकी परवरिश शहजादियों की तरह हुई हो, उसे पिता राजनीति का पाठ पढ़ाता है, ताकि वह एक मुकाम हासिल कर ले। शहजादी वह मुकाम हासिल भी करती है, लेकिन राजा की तरह उसका हश्र भी एक दर्दनाक अंत से होता है। शहजादी भी अपने पिता की ही तरह अकाल मौत का शिकार हुई और इस तरह ईस्ट की बेटी ईस्ट में ही दफन हुई।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi