Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

फकीरी छोड़ रुपया दुबई की माँद में

Advertiesment
हमें फॉलो करें आर्थिक मंच

विष्णुदत्त नागर

प्रसंग है रणक्षेत्र का, जहाँ रानी कैकेयी को राजा दशरथ ने प्रसन्न होकर दो वरदान दिए थे, जिन्हें बाद में कैकेयी ने दशरथ से भगवान राम को वनवास और भरत को राजगद्दी मिलने के रूप में भुनाया। विश्व के वायदा बाजारों में यही कहानी दोहराई जा रही है।

जब तक रुपया कमजोर था भारतीय रुपए की ज्यादा पूछ नहीं होती थी, लेकिन जैसे-जैसे रुपया मजबूत हुआ, वह विश्व, विशेषकर दुबई के करेंसी वायदा बाजार और अन्य करेंसी वायदा बाजारों का प्रमुख अंग बन गया। देश की निर्यातक कंपनियों ने दशरथ-कैकेयी के प्रसंग की घटना के समान आज सौदे कर भविष्य में रुपए की मजबूती से निर्यातों के जोखिम कवच के वर माँगने शुरू कर दिए।

डॉलर के मुकाबले रुपए की मजबूती से चिदंबरम ही नहीं, बल्कि निर्यातक सबसे अधिक चिंतित हैं, क्योंकि डॉलर में हुए करार से जब एक डॉलर 45 रुपए का था तथा उन्हें 100 डॉलर के बदले में 4500 रुपए मिलते थे, जबकि अब डॉलर का भाव 40 से भी नीचे आ गया है तो उन्हें 4,000 रुपए से भी कम मिलेंगे।

इस साल डॉलर के मुकाबले रुपए के 11 फीसदी मजबूत होने से निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में विषम परिस्थिति और कड़ी स्पर्धा का सामना करना पड़ा है, इसलिए निर्यातकों ने करेंसी जोखिम कम करने के लिए दुबई के वायदा बाजार में आश्रय लिया, ताकि इस वर्ष के अंत तक डॉलर के मुकाबले में रुपया 38.50 होने की आशंका से कवच ओढ़ लिया जाए।

इसके अलावा इंफोसिस जैसी कुछ कंपनियाँ अपनी रणनीति में परिवर्तन कर डॉलर की बजाय यूरो जैसी स्थिर मुद्रा के माध्यम से करार कर रही हैं, क्योंकि आईटी और परिधान कारोबार आदि क्षेत्रों की कंपनियों को रुपए के प्रभाव में सर्वाधिक नुकसान पहुँचा है। उनके सामने यह विकल्प भी मौजूद है कि रुपए की मजबूती को देखते हुए बेहतर दाम के अनुबंध करें।

उन्हें इस प्रकार के अनुबंध में विशेष रूप से दिक्कत इसलिए नहीं आएगी, क्योंकि डॉलर उनकी प्रतिद्वंद्विता के मुकाबले में गिर रहा है। उल्लेखनीय है कि यूरो के मुकाबले डॉलर 9 प्रतिशत गिरा है। इन संदर्भों में करेंसी वायदा बाजार रुपए का कायाकल्प करते हुए उसे नया रूप प्रदान करेंगे।

शास्त्रीय परिभाषा में रुपया विनिमय का माध्यम होने तथा संग्रह और लेन-देन का माध्यम होने के अतिरिक्त मूल्य हस्तांतरण का साधन भी है। इसे संपत्ति के तरल रूप में भी समझा जाता है, लेकिन अब रुपया स्वयं वायदा बाजार में एक कारोबारी वस्तु बन गया है।

विचित्र बात तो यह है कि एक ओर मुद्रास्फीति घटने के सरकारी दावों के बावजूद महँगाई के कारण रुपया अपनी क्रयशक्ति खो कर फकीर बन गया है, लेकिन दूसरी ओर वह डॉलर के मुकाबले मजबूत होकर सोने के सबसे अधिक वायदा बाजार में अपनी ताजपोशी करा रहा है। गौरतलब है कि भारत में करेंसी वायदा बाजार नहीं है।

ज्ञातव्य है कि गत सप्ताह वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने स्पष्ट किया था कि न तो भारत सरकार का और न ही रिजर्व बैंक का रुपए-डॉलर की विनिमय दर के बारे में कोई कदम उठाने का इरादा है। उनके अनुसार बाजार खुद ही रुपए का मूल्य निर्धारित करेगा, लेकिन रिजर्व बैंक ने अपने विवेक के अनुसार रुपए की अधिक मजबूती रोकने के लिए पिछले सप्ताह ही डॉलर खरीदे।

वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक दोनों ही चिंतित हैं कि जुलाई 2007 तक विदेशी संस्थागत निवेशकों की अस्सी अरब, विदेशी निवेश की 72 अरब और भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशों से 22 अरब डॉलर ऋण लेने के कारण देश में डॉलर की बाढ़ जैसी स्थिति बन गई है। इसलिए रिजर्व बैंक ने रुपए की मजबूती पर अंकुश लगाने के लिए सीधे बाजार में हस्तक्षेप करने की बजाय देश से बाहर डॉलर ले जाने के दरवाजे खोल दिए हैं।

रिजर्व बैंक ने व्यक्तियों, कंपनियों और विदेशी फर्मों के लिए विदेशों में निवेश नियमों को और उदार बनाते हुए विदेशी मुद्रा देश से बाहर ले जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है, ताकि बाजार में डॉलर का दबाव कम हो और रुपए की मजबूती पर कुछ हद तक अंकुशा लग सके।

उदारीकृत योजना के तहत व्यक्तियों को एक लाख की बजाय दो लाख डॉलर तक विदेशी मुद्रा ले जाने की अनुमति दे दी है तथा म्यूच्युअल फंडों के लिए विदेशों में विनिवेश करने की वर्तमान 4 अरब डॉलर की सीमा को बढ़ाकर 5 अरब डॉलर कर दिया गया है।

लेकिन यह विचारणीय है कि जब विदेशी निवेशक भारी मात्रा में भारत में डॉलर उँडेल रहे हैं तब भला म्यूच्युअल फंड किस प्रकार से और कितना, भारत के बढ़ते डॉलर प्रवाह को उलीच सकेंगे। रिजर्व बैंक विदेशी पूँजी की आवक रोकने के लिए ब्याज दरों में कटौती पर भी विचार कर सकती है, ताकि यहाँ निवेशक ब्याज भिन्नता (भारत में अधिक ब्याज की दर और विदेशों में कम) का अधिक लाभ कमाने के लिए भागे-भागे न आएँ।

विचित्र बात यह है कि जहाँ चिदंबरम रुपए की मजबूती के संबंध में तटस्थ रवैया अपनाए हुए हैं, वहीं वाणिज्य मंत्री कमलनाथ निर्यातकों के समर्थन में रुपए के अवमूल्यन की ओर संकेत दे रहे हैं। वास्तविकता यह है कि निर्यात के मोर्च पर देश को नुकसान अवश्य होता है, लेकिन आयात के संबंध में अधिक लाभ होता है।

सस्ते आयातों से उत्पादों की लागत घटती है और भारतीय उत्पाद बाजार में प्रतिद्वंद्वी होने की क्षमता रखते हैं। साथ ही, मुद्रास्फीति पर भी दबाव कम होता है। ज्ञातव्य है कि ऊँची कीमतों में कच्चे तेल के भारी आयात के कारण हमारी अर्थव्यवस्था पर सदैव खतरा मँडराता रहता है।

दूरगामी नजरिए से मजबूत मुद्रा का एक लाभ यह भी होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव का सामना कर सकेगी। ऐसी विदेशी मुद्र्रा बाहर जाने के दरवाजे खोलने के संबंध में वित्तीय रणनीतिकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार को सुरक्षित रखा जाए।

उल्लेखनीय है कि रिजर्व बैंक ने पूँजीगत खाते में रुपए को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने वाली तारापोर समिति की सिफारिशों पर अमल और तेज कर दिया। सिफारिशों के अनुरूप ही रिजर्व बैंक ने रुपए की मजबूती पर अंकुश लगाने के लिए सीधे बाजारों में हस्तक्षेप करने की बजाय दूसरे विकल्प अपनाते हुए देश से बाहर डॉलर ले जाने के दरवाजे खोल दिए।

लेकिन जैसा कि तारापोर समिति ने कहा है कि रुपए के पूँजी खाते में परिवर्तनीय बनने के पूर्व मुद्र्रास्फीति (महँगाई) और बजटीय घाटे का दबाव कम करना होगा। इस कटु सबक को भी नहीं भुुलाया जाना चाहिए कि नब्बे के दशक में जिन-जिन देशों ने पूँजी खाते में अपनी मुद्रा को परिवर्तनीय बनाया, उन्हें भारी वित्तीय संकट से गुजरना पड़ा।

इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय सटोरिए भी रुपए की विनिमय दर के उतार-चढ़ाव में नाना प्रकार से दृश्य और अदृश्य खेल खेलेंगे। जब मुद्रा सटोरिए के हाथों में लेन-देन का खिलौना बन जाएगी तब वित्तीय संकट का सामना भी करना पड़ सकता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi