Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

बिल गेट्स का नया पूँजीवाद

हमें फॉलो करें बिल गेट्स का नया पूँजीवाद

दिलीप चिंचालकर

, शुक्रवार, 29 जून 2007 (21:03 IST)
भारत में हो या अमेरिका में, रईस परिवारों के बिगड़ैल बच्चों के लिए अपनी सनक के पीछे अच्छे-भले कॉलेज की पढ़ाई छोड़ देना गैरमामूली नहीं है। यह एक अमेरिकी युवा था।

लंबी सुनहरी लटें जिसकी आँखों पर झूलतीं, मुस्कान सदा चेहरे पर खिलती और भूरे शीशों के पीछे से झाँकती नजर में शरारत के साथ बुद्धिमत्ता भी छलकती- आखिर वह हार्वर्ड विश्वविद्यालय का छात्र जो था।

एक बार देर रात को बिना लाइसेंस अपने मित्र की मोटर कार चलाते पकड़े जाने पर उसने एक रात जेल में भी काटी थी। फिर एक बार जब विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उसे होस्टल से अपना कारोबार चलाते पाया तो उस पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की। तब बगावती बिल गेट्स ने कॉलेज की पढ़ाई से नमस्ते कर ली।

वह बात थी सन्‌ 1977 की, जब कायदे से बिल को 22-23 वर्ष की आयु में कॉलेज की डिग्री ले लेनी चाहिए थी, लेकिन तब उन्होंने डिग्री नहीं ली। 51 वर्ष का हो जाने के बाद अभी इसी महीने के पहले सप्ताह में हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने बिल को न्योता देकर बुलाया और उसे डॉक्टर की मानद् उपाधि दी।

दुनिया जानती है कि बीच के तीन दशकों में जितना पानी दुनिया की तमाम नदियों से बहा होगा, उतनी ही जानकारी और सूचनाएँ बिल गेट्स के माइक्रोसॉफ्ट आविष्कारों से प्रवाहित हुई होंगी। सत्तर के दशक में हार्वर्ड का छात्र होना बिल गेट्स का पहला वर्शन था। बिल 2.0 वह है जिसे पूरी कम्प्यूटर शिक्षित दुनिया जानती है। या यों कहिए कि उसने देहाती भी समझ सके, इतना कम्प्यूटर को सरल बनाया।

छोटी मछलियों को निगलने वाली बड़ी पूँजीवादी मछलियों का आदर्श यदि अमेरिकी पूँजीवाद है तो अब उसके सफलतम व्यवसायी का नया मंत्र है सृजनात्मक पूँजीवाद- बाजार में अपनी शक्ति का उपयोग छोटी से छोटी मछली को फायदा पहुँचाने में हो।
webdunia
बिल के इन दोनों संस्करणों में उसकी तीक्ष्ण बुद्धि, पढ़ाकूपन और एक किस्म की असामाजिकता है जिसके लिए अमेरिकी बोलचाल की भाषा में एक शब्द है 'नर्ड'। शायद इन्हीं के कारण वह सामान्य सोच से ऊपर उठकर सब कुछ डिजिटल स्पष्टता के साथ देख सका।

कॉलेज के शुरुआती दिनों में ही बिल और उसके दोस्त पॉल एलन (माइक्रोसॉफ्ट का सीईओ) ने माइक्रोप्रोसेसर से होने वाली क्रांति की आहट पा ली थी। वे नहीं चाहते थे कि वह उनकी हिस्सेदारी के बगैर ही संपन्न हो जाए। इसलिए अनुशासनात्मक कार्रवाई के बहाने औपचारिक शिक्षा से मिली आजादी को भुनाते हुए वे आकार लेती उस लहर पर सवार हो गए।

पिछले बीस वर्षों के दौरान जब यह लहर आकाश चूम रही थी, तब बिल गेट्स सबसे ऊपर थे। या ऐसा कहें कि कम्प्यूटर क्रांति ही उनके इर्दगिर्द हुई। लेकिन यह क्षेत्र ही ऐसा है जहाँ जो बात कल नई थी, आज पुरानी है। परसों के छात्र और कल के कम्प्यूटर क्रांतिवीर के रूप में बिल की भूमिका अनोखी थी।

भविष्य की टेक्नोलॉजी को शायद उसकी आवश्यकता न रहे यह भाँपते हुए अब उस चतुर व्यवसायी की नई प्रस्तुति है, एक पूरी तरह से अपना नया वर्शन 'बिल 3.0'। कल यानी अगले वर्ष 2008 में माइक्रोसॉफ्ट को छोड़कर वह बिल मेलिंडा फाउंडेशन का पूर्णकालिक सक्रिय कार्यकर्ता होगा।

अमेरिकी पूँजीवाद ने बिल गेट्स का भला किया। करोड़ों स्वप्नदृष्टाओं का भला किया लेकिन उनसे कहीं ज्यादा मनुष्यों के लिए कुछ नहीं किया। तीस वर्ष पहले हार्वर्ड छोड़ते समय बिल की आँखों के सामने, या आज आईआईटी और आईआईएम छोड़ते समय यशस्वी युवाओं की आँखों के सामने होता है चमकते सितारों से भरा आसमान। एक नजर भी नीचे डालने के लिए उनके पास समय नहीं होता।

शिक्षण संस्थाएँ उन्हें अर्थशास्त्र और राजनीति में नए सोच के बारे में बताती हैं। इन्हें लेकर युवा जिस राष्ट्र की फलती-फूलती अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने का स्वप्न देखते हैं, उस राष्ट्र की जड़ों में विषम परिस्थितियों में जीवनयापन करने वाली अथाह मनुष्यता के बारे में उन्हें जरा भी कल्पना नहीं होती।

मनुष्य की प्रगति उसकी उपलब्धियों से नहीं आँकी जा सकती है, बल्कि इस बात से कि विषमताओं को पाटने में उनका कितना उपयोग हुआ है। बिल गेट्स के नाम और शान को देखते हुए उन्हें इस बात का अनुभव होना ही अद्भुत कहा जाएगा। (और यह अनुभूति बिल 3.0 में असामाजिकता के दोष का सुधार तो करेगी ही)। ऐसा नहीं कि एक प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन में तालियों की चाहत में उन्होंने यह बात कही हो। उन्होंने पहले ही 33 बिलियन डॉलर की अपनी निजी संपत्ति इस ट्रस्ट में डाल दी है।

साथ ही साथ उनके मित्र वॉरेन बफेट ने भी अपनी ओर से 30 बिलियन डॉलर इसमें जोड़ दिए हैं। इस मौके पर बिल गेट्स ने जो सोच दिया है वह है सृजनात्मक पूँजीवाद का। बिल को सुनने के बाद यहाँ सृजनात्मकता का जो चित्र सामने आता है वह है परस्पर उल्टी दिशा में मुँह किए दो शब्दों का। लेकिन एक को उठाकर दूसरी ओर रख दो, दोनों आमने-सामने होंगे। संवाद की मुद्रा में। यही वह संतुलन है जो बिल गेट्स साधना चाहते हैं।

अमेरिका से ज्यादा आज भारत और दूसरे विकासशील या अविकसित देशों को बिल गेट्स के दर्शन की आवश्यकता है। वर्षों पहले उसे यह जानकर अचरज हुआ था कि गरीब मुल्कों में लाखों बच्चे मलेरिया, निमोनिया और हिपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों से मर जाते हैं। कुछेक रुपयों की दवा या टीके लग जाने से ये जानें बच सकती हैं।

सभ्य समाज यह मानता है कि प्रत्येक जिंदगी मूल्यवान होती है। फिर कुछ जिंदगियाँ बचाने योग्य क्यों नहीं समझी जातीं? इसलिए कि बाजार इन अभागों की जिंदगियों की कोई कीमत नहीं समझता और न सरकार इन पर कोई सबसिडी देती है। इन बच्चों के पालकों की बाजार में कोई आवाज नहीं होती। लेकिन बिल गेट्स या बड़े उद्योगपतियों की तो होती है। 'हम लोग यदि बाजार की शक्तियों का उपयोग इन जिंदगियों को बचाने के लिए कर सकें तो वह सृजनात्मक पूँजीवाद होगा' यह बिल गेट्स का कहना है।

बाजार के प्रभाव को अधिक लोगों तक फैलाना जिससे उन्हें भी फायदे का अंश मिले, या कम से कम सम्मानजनक रोजी मिल सके, यह इस सोच का विस्तार होगा। दुनिया के इस सफलतम टेक्नोलॉजिस्ट का रुझान अब सोशल इंजीनियरिंग के जरिए ऐसे तरीके खोजने में है जो अभावग्रस्तों की आवश्यकताएँ इस ढंग से पूरी करें जिससे व्यापार-व्यवसाय और राजनेताओं के वोट भी बढ़ें। तब यह अपने पैरों पर खड़ी होने वाली व्यवस्था होगी।

उलझनों के बीच से रास्ता निकालने का उनका चार सूत्री फार्मूला है, फिर भी आशावादिता और ईमानदार-रचनात्मक सोच नए किस्म के पूँजीवाद की प्राथमिक पात्रता होगी। अपनी सारी अर्जित संपत्ति दाँव पर लगाकर जो बात आज बिल गेट्स इस मुकाम पर सोच सकते हैं, कितने दूसरे भाग्यशाली सोच पाते हैं? संपन्न अमेरिका में नहीं, भारत जैसे देश में? दुनियाभर में अपना कारोबार बढ़ाने वाले अब भारत में भी बहुतायत में हैं।

भारत जैसी तेजी से ऊपर आती अर्थव्यवस्थाओं को इसे समझने की आवश्यकता है। उस शासन को इस पर सोचने की जरूरत है जो गरीबों के हाथ से संसाधन छीनकर बड़े उद्योगों को सौंप रहा है, और उन बड़े औद्योगिक घरानों को जो बड़े उद्यमों से बड़ा मुनाफा कमाने के बाद हाशिए पर रोजी कमाने वालों का व्यवसाय भी हथिया रहे हैं।

खरबों की संपत्ति में से कुछ अरब धर्मादाय खर्च करने से समाज के प्रति जिम्मेदारी पूरी नहीं होती। समाज की भलाई ध्यान में रखकर बनाया हुआ साम्राज्य सृजनात्मक पूँजीवाद है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi