परमाणु मुद्दे पर कांग्रेस व माकपा के बीच हुई राजनीतिक कुश्ती से खुश भाजपा नेताओं ने अपनी राज्य शाखाओं को निर्देश दे दिए कि लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी जाए।
विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संसदीय दल की बैठक में कहा कि आप लोग अब अपने संसदीय क्षेत्रों में जाकर मतदाताओं के साथ सीधा संपर्क स्थापित करें।
समय से पूर्व लोकसभा चुनाव होने की यह खुशी दो दिन से अधिक नहीं टिक पाई। फिर निराश भाजपा नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया कि वामपंथी नेता सिर्फ भौंकते हैं, काटते नहीं। आडवाणीजी ने अपना स्वर बदलते हुए कहा कि यदि मनमोहन सरकार इसी तरह लंगड़ाते हुए पाँच साल पूरे करती है, तो इससे भाजपा को लाभ मिलेगा।
मनमोहन सरकार को गिराने के लिए आडवाणी ने माकपा नेता प्रकाश करात को फोन घुमाने का कष्ट भी किया, किंतु करात की तरफ से टका-सा जवाब मिला कि हम और आप किसी भी मुद्दे पर साथ नहीं आ सकते हैं। अब माकपा ने कह दिया है कि वाजपेयी सरकार के दौरान ही अमेरिका के साथ रणनीतिक संबंध बनाने की कोशिश की गई थी। हालत यह थी कि वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी इराक में भारतीय सेना भेजने के पक्ष में थी।
भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता इस बात से काफी दुखी हैं कि आडवाणी जी ने प्रकाश करात को फोन कर पार्टी के आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचाई। पार्टी के भीतर चर्चा है कि आडवाणी, यशवंत सिन्हा व अरुण शौरी की तिकड़ी ने परमाणु मुद्दे पर अपनी राय पार्टी पर थोप दी है। इस संबंध में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी विश्वास में नहीं लिया गया। कुछ भाजपा नेताओं का कहना है कि परमाणु मुद्दे पर वामपंथी दलों के साथ खड़े दिखाई देना ही पार्टी के लिए नुकसानदेह सिद्ध होगा।
सपा के लिए परमाणु मुद्दा मुस्लिम वोट की खदान? : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायमसिंह यादव को परमाणु मुद्दे में मुसलमानों के वोट दिखाई दे रहे हैं। सपा का सीधा गणित है कि मुसलमानों में अमेरिका के खिलाफ गहरा आक्रोश है, इसलिए परमाणु समझौते के विरोध के माध्यम से मुसलमानों के वोट अपने पक्ष में एकजुट करना आसान है।
लोकसभा में समाजवादी पार्टी के सांसदों ने परमाणु समझौते पर सबसे ज्यादा शोर मचाया, किंतु जब इस पर बहस की नौबत आएगी तो सपा की परेशानी बढ़ जाएगी। शोर मचाने वाले सांसदों में कुछ ही ऐसे होंगे, जो बहस में भाग लेने की क्षमता रखते हैं। सपा अध्यक्ष मुलायमसिंह यादव से यह अपेक्षा करना ज्यादती होगी कि वे परमाणु समझौते के मूल पाठ का अध्ययन कर उसके विभिन्न आयामों पर रोशनी डालें। सपा का चिंतन स्पष्ट है कि अमेरिका का विरोध करने से मुस्लिम वोट उनकी झोली में गिरेंगे। माकपा नेताओं ने सपा को सुझाव दिया है कि परमाणु मुद्दे को वे मुस्लिम वोट बैंक के नजरिए से न देखें।
प्रधानमंत्री को शरद पवार का सहारा : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार का कहना है कि गठबंधन सरकार चलाते हुए हर पार्टी को किसी भी वक्त चुनाव का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। परमाणु विवाद के संदर्भ में पवार ने घोषणा कर दी कि अगले पाँच-छः महीने के भीतर लोकसभा के चुनाव हो सकते हैं।
चर्चा है कि प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह से विचार-विमर्श करने के बाद ही पवार ने इस आशय का बयान दिया, ताकि वामपंथी नेताओं को यह संदेश दिया जा सके कि यदि परमाणु मुद्दे पर उन्होंने लचीला रुख नहीं अपनाया, तो समय से पूर्व लोकसभा चुनाव की नौबत आ सकती है।
ऐसा माना जा रहा है कि इन दिनों सोनिया गाँधी व डॉ. मनमोहनसिंह से पवार साहब के रिश्ते काफी गहरे हो गए हैं। सरकार से जुड़े कई मामलों में सोनिया गाँधी पवार साहब से भी विचार-विमर्श करती हैं। शरद पवार ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से कहा है कि फिलहाल तुरंत लोकसभा चुनाव की स्थिति पैदा नहीं हुई है, लेकिन छः महीने बाद क्या होगा, यह कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता है।