भारत छोड़ो आंदोलन
गाँधी ने कहा था (8 अगस्त 1942 को)
'अब बीच में समझौता नहीं है। मैं नमक की सुविधाएँ या शराबबंदी लेने नहीं जा रहा हूँ। मैं तो एक ही चीज लेने जा रहा हूँ - आजादी। नहीं देना है तो कत्ल करें।
मैं वह गाँधी नहीं जो बीच में ही कोई चीज लेकर आ जाए। आपको तो मैं एक मंत्र देता हूँ कि करेंगे या मरेंगे। जेल को भूल जाएँ। आप सुबह-शाम यही कहें कि खाता हूँ, पीता हूँ, साँस लेता हूँ, तो गुलामी की जंजीर तोड़ने के लिए।
जो मरना जानते हैं उन्होंने जीने की कला जानी है। आज से तय करें कि आजादी डरपोकों के लिए नहीं। जिनमें मरने की ताकत है, वही जिंदा रह सकते हैं। हम चीटियाँ नहीं। हम हाथी से बड़े हैं, हम शेर हैं।' (नईदुनिया)