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मप्र के योजनाकार गुजरात से सीखें

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शरद जैन

मध्यप्रदेश की यह नियति रही है कि पिछले 25 वर्षों में किसी भी सरकार ने प्रदेश हित में ऐसी कोई बड़ी परियोजना क्रियान्वित कर पूर्ण नहीं की है, जिसका कि शिलान्यास एवं उद्घाटन उसी सरकार के पाँच वर्ष के कार्यकाल में संपन्न किया गया हो।

मध्यप्रदेश में विकास-गति के संबंध में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा व्यक्त की गई यह टिप्पणी हमारे योजनाकारों के लिए शर्मसार करने वाली चुनौती है कि उन्होंने किस प्रकार सरदार सरोवर बाँध जलाशय से दो सुरंगें बनवाकर पर्याप्त जल नीचे से निकाल लिया। केवल पाँच सौ दिनों में सात सौ किलोमीटर लंबी पाइप लाइन डालकर नर्मदा का पानी पाकिस्तान के सामने खड़े पोरबंदर तक ले जाया गया तथा पाइप लाइन भी इतनी विशाल कि उसमें मारुति कार भी सुगमता से चलाई जा सके।

मध्यप्रदेश में भोपाल नगर से नर्मदा की दूरी मात्र 45 किलोमीटर है, लेकिन भोपाल पानी के लिए तरसता रहता है, जबकि नर्मदा को मैं सिर्फ डेढ़ वर्ष में 700 किलोमीटर दूरी पर स्थित पोरबंदर तक ले गया हूँ।

उपरोक्तानुसार गुजरात ने सरदार सरोवर जलाशय से जो दो सुरंगें बनाई हैं, उनका व्यास 7 मीटर तथा जल प्रवाह 11 से 12 हजार क्यूसिक फुट प्रति सेकंड है। इसके अतिरिक्त गुजरात ने इस बाँध जलाशय को सिंचाई हेतु 456 किलोमीटर लंबी मुख्य नहरों एवं हजारों किलोमीटर छोटी-मोटी नहरों से जोड़ दिया है, जिससे 6 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की जा रही है। फलतः वहाँ का किसान मालामाल हो रहा है। इन नहरों से जो एक विशाल नदी के समकक्ष ही हैं, कई मृतप्राय नदियों में पानी डालकर उन्हें भी पुनर्जीवित कर दिया गया है।

आज गुजरात में कृषि के साथ-साथ औद्योगिक व सेवा क्षेत्र का जो विकास हुआ है, उसका मुख्य श्रेय नर्मदा जल को जाता है, क्योंकि बिना जलापूर्ति के इनका विकास कदापि संभव नहीं है। हाल ही में विधानसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी ने जिस प्रकार विजयश्री का वरण किया है, उसमें नर्मदा का एक बड़े रूप में प्रत्यक्ष एवं जीवित योगदान रहा है।

नर्मदा के कुल 27 मिलियन एकड़ फुट (एमएएफ) जल में से 18 एमएएफ हमारे मध्यप्रदेश का अपना हिस्सा है, जबकि 9 एमएएफ गुजरात को आवंटित है। लेकिन वास्तविक रूप में आज गुजरात मध्यप्रदेश के हिस्से के बराबर या उससे अधिक नर्मदा जल का उपभोग कर रहा है, जबकि हम गुजरात के हिस्से के बराबर भी इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि हम अभी तक नर्मदा जल का निमाड़, महाकौशल एवं विंध्य क्षेत्र में सिंचाई हेतु पर्याप्त रूप से दोहन नहीं कर पाए हैं, जो हमारे लिए एक महती विडंबना है।

स्पष्ट है कि हमारे योजनाकार अजस्र प्रवाहित नर्मदा की महाशक्ति की पहचान करने में भारी चूक कर रहे हैं, जिसका समुचित दोहन अब तक प्रदेश को एक समृद्धिशाली, संपन्न एवं प्रमुख आर्थिक शक्ति बना सकता था।

हमारे लिए यह संतोषप्रद एवं गौरव करने वाली बात है कि भारत सरकार की नेशनल हाइडल पॉवर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) ने मध्यप्रदेश शासन की साझेदारी में नर्मदा हाइड्रोइलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन (एनएचडीसी) का गठन कर रेकॉर्ड समय में इंदिरा सागर एवं ओंकारेश्वर बाँध पॉवर हाउस परियोजनाओं को पूर्ण कर सिंचाई हेतु विशाल जलाशयों का निर्माण किया है। इन दोनों जलाशयों से 3.7 लाख हैक्टेयर नेट तथा 7.5 से 8 लाख हैक्टेयर ग्रास क्षेत्र में निश्चित ही सिंचाई हो सकेगी।

जबलपुर के निकट नर्मदा पर वर्षों पूर्व रानी अवंतिबाई सागर बाँध जो बरगी बाँध के नाम से विख्यात है, के जलाशय से लगभग 3.25 लाख हैक्टेयर नेट या 7.5 से 8 लाख हैक्टेयर ग्रास क्षेत्र में सिंचाई संभावित है। इस प्रकार इन तीनों बाँध जलाशयों से लगभग 7 लाख हैक्टेयर नेट या 15 लाख हैक्टेयर ग्रास क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी।

इन तीनों जलाशयों पर लगभग 10 हजार वर्ग किलोमीटर मेन, डिस्ट्रीब्यूटरी एवं माइनर्स नहरों द्वारा सिंचाई नेटवर्क का विकसित किया जाना आज की अनिवार्य आवश्यकता है। वर्तमान में राज्य शासन द्वारा जिस मंथर गति से बिना समुचित अमले के नहरों का निर्माण कार्य किया जा रहा है, उसके अनुसार अभी तक मात्र 15 प्रतिशत कार्य ही संपन्ना हो सका है।

वर्तमान में सरकार इस कार्य हेतु सिर्फ 800 करोड़ रुपए का बजट ही उपलब्ध करा पा रही है, उसमें से भी एक बड़ी राशि खर्च नहीं हो पा रही है, जबकि सारे सिंचाई नेटवर्क का कार्य संपन्न करने हेतु लगभग 5000 करोड़ रुपए की धनराशि की आवश्यकता है। वस्तुतः वर्तमान धीमी गति से सारे कार्य आगामी 10 वर्षों में भी संपन्न हो सकें, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

हमारे देश की यह नियति रही है कि पिछले 25 वर्षों में किसी भी सरकार ने प्रदेश हित में ऐसी कोई बड़ी परियोजना क्रियान्वित कर पूर्ण नहीं की है, जिसका कि शिलान्यास एवं उद्घाटन उसी सरकार के पाँच वर्ष के कार्यकाल में संपन्न किया गया हो।

हमारे प्रदेश में पूर्व कांग्रेस सरकारों की परियोजना क्रियान्वयन इच्छाशक्ति इतनी कमजोर रही है कि उसने 2003 के अंत तक लगभग 32 हजार करोड़ रुपए ताप विद्युत, सिंचाई, पेयजल, पुल-पुलियाओं एवं भवन से संबंधित सैकड़ों निर्माण कार्य आधे-धूरे छोड़ दिए,जिसमें से कई वर्तमान सरकार ने अपने स्वयं के संसाधनों से पूरे करवाए हैं। ताजा उदाहरण है तीस साल से लंबित बाणसागर परियोजना का वर्तमान सरकार द्वारा पिछले वर्ष पूर्ण किया जाना।

यह अत्यंत ही आवश्यक एवं अनिवार्य है कि प्रदेश के आठ जिलों के 15 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई से 10 लाख कृषकों को आर्थिक रूप में लाभान्वित करते हुए देश के लिए 70 लाख टन अतिरिक्त खाद्यान्न एवं हजारों टन फल एवं सब्जियों की आपूर्ति कर तथा 60 लाख नए रोजगार पैदा करने वाली दस हजार वर्ग किलोमीटर नर्मदा की मुख्य डिस्ट्रीब्यूटरीज एवं माइनर्स नहरों का त्वरित निर्माण करने हेतु आर्थिक बूम के इस कालखंड में राज्य सरकार इस कार्य को प्राथमिकता के आधार पर बीओटी के अंतर्गत कार्यान्वित करवाए।

इसके लिए देश की सुप्रसिद्ध एवं विश्वस्त इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों को आमंत्रित कर उनसे उचित शर्तों के आधार पर कृषकों के लिए खेतों में सिंचाई हेतु भरपूर पानी, औद्योगिक जल आपूर्ति तथा स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से जनता जनार्दन को पेयजल उपलब्ध करवाने हेतु न्यूनतम दरें निर्धारित करने वाली कंपनियों से सारा निर्माण कार्य दो से तीन वर्षों की अवधि में पूरा करवाया जा सकता है।

ये दरें ऐसी होना चाहिए जो आगामी 20 से 25 वर्षों में निर्माण कंपनियों द्वारा निर्मित की गई नहरों की लागत एवं उनके संपूर्ण रखरखाव के व्यय के साथ-साथ उन्हें उचित लाभ भी प्राप्त करवा सकें। मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य होगा, जिसने नहरों का संपूर्ण निर्माण कार्य बीओटी के अंतर्गत पूर्ण करवाने की पहल की है। (लेखक एशियाई विकास बैंक के वित्तीय सलाहकार रह चुके हैं।)

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