हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की नवीनतम रिपोर्ट में यह आभास दिया गया है कि इस समय देश के करोड़ों लोग बढ़ती हुई महँगाई से चिंतित और पीड़ित हैं। यही कारण है कि बैंकिंग क्षेत्र में जिस नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में वृद्धि को महँगाई पर लगाम लगाने की आखिरी कोशिश माना जाता है, उसके लिए रिजर्व बैंक ने कदम उठा लिए हैं।
बैंकिंग शब्दावली में इसे रूट इंस्टूमेंट (कठोर परिपत्र) कहा जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों के लिए सीआरआर में आधा प्रतिशत की वृद्धि करने का फैसला किया है। यह वृद्धि दो चरणों में प्रभावी होगी। 23 दिसंबर 2006 से सीआरआर 5.25 प्रतिशत होगी, जबकि 6 जनवरी 2007 से यह 5.5 प्रतिशत हो जाएगी।
वास्तव में महँगाई ने आम आदमी का बजट बिगाड़ दिया है। यह विडंबना ही है कि महँगाई कितनी बढ़ी है, इसका अंदाजा सरकार थोक मूल्य निर्देशांक से लगाती है। वर्तमान में जिस थोक मूल्य निर्देशांक को आधार-वर्ष मानकर निर्देशांक निकाले जाते हैं, अभी उसमें 435 वस्तुएँ शामिल हैं और उनमें 64 प्रतिशत वस्तुएँ निर्माण क्षेत्र से संबंधित हैं तथा कई विलासिता की वस्तुएँ भी शामिल हैं, जिनके मूल्य लगभग स्थिर हैं, वहीं अधिकांश उपभोक्ता वस्तुओं को निर्देशांक में बहुत कम प्रतिनिधित्व है। यही कारण है कि जहाँ उपभोक्ता वस्तुओं के मूल्यतेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं उससे थोक मूल्य निर्देशांक बहुत कम बढ़त दिखा रहा है। लेकिन देश के करोड़ों लोगों के साथ देश के सांसद आसमान छूती कीमतों की चिंताओं से सरकार को बार-बार अवगत करा रहे हैं और इन्हें काबू में लाने के लिए बार-बार अनुरोध कररहे हैं। हाल ही में वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा है कि महँगाई के लिए प्राथमिक वस्तुओं की कीमतें जिम्मेदार हैं।
उन्होंने मुद्रास्फीति की दर के बढ़कर 5.29 प्रतिशत होने के पीछे प्राथमिक वस्तुओं विशेष तौर पर गेहूँ, तिलहन एवं दालों की कीमतों में वृद्धि को जिम्मेदार बताया है। एक वर्ष पहले मुद्रास्फीति की दर वर्तमान दर से एक प्रतिशत कम थी। कृषि मंत्री शरद पवार ने इस बात के संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में देश को गेहूँ के साथ-साथ दलहन का आयात और बढ़ाना पड़ सकता है। यही हालत तिलहन की भी है।
गेहूँ और खाद्यान्न की कीमत वृद्धि में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अहम रोल रहा है। देश की अनेक मंडियों में कुल आवक की 60 से 70 प्रतिशत खरीदी इन्हीं कंपनियों द्वारा की गई है। इन कंपनियों ने मंडियों के अलावा चौपालों के माध्यम से भी गेहूँ की खरीदी की है। भारतीय वायदा कारोबार बाजार में कई जिंसों के दामों में भारी उठापटक हो रही है। इस बाजार का हाल यह है कि वायदा कारोबार तो कहीं अधिक मात्रा में हो रहा है, लेकिन आपूर्ति कम हो रही है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सक्रियता एवं वायदा सौदों के फैलाव से खाद्यान्न, दलहनों और तिलहनों के भाव भी ऊँचाइयाँ छू रहे हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के वायदा व्यापार में प्रवेश से लगभग सभी उपभोक्ता वस्तुएँ महँगी हो गई हैं। वस्तु वायदा बाजार को भारत सरकार एवं वायदा बाजार आयोग की स्वीकृति है। इसके तहत 125 से अधिक वस्तुओं के व्यापार को बंद कमरों में टर्मिनलों पर बैठकर अंजाम दिया जा रहा है। यद्यपि वायदा व्यापार देश में सदियों से हो रहा है, लेकिन इस समय वायदा व्यापार के तहत सौदों का माँग-पूर्ति से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। इस व्यापार ने सट्टात्मक रूप ले लिया है। सट्टेबाजी ने गरीब-मध्यम वर्ग की जीवनोपयोगी जरूरतों को बुरी तरह प्रभावित किया है।
आम आदमी की महँगाई की चिंता के मद्देनजर सरकार को खाद्यान्ना के लिए सार्वजनिक वितरण की अपनी व्यवस्था को ज्यादा मजबूत व व्यापक बनाना होगा। सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आपूर्ति किया जाने वाला गेहूँ गुणवत्तापूर्ण होना चाहिए। चूँकि वायदा कारोबार से छोटे किसानों को फायदा नहीं पहुँचा और गेहूँ के वायदा कारोबार से कीमतों में वृद्धि के कारण खुदरा मूल्य भी बढ़े हैं, अतएव गेहूँ सहित ऐसी सभी उपभोक्ता वस्तुएँ, जिनका बड़े पैमाने पर आम उपभोक्ताओं के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें वायदा कारोबार की सूची से बाहर किया जाना चाहिए। साथ ही साथ जमाखोरी रोकने के लिए भी कठोर कदम उठाए जाने चाहिए।