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शेयर बाजार के तीन खलनायक

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विष्णुदत्त नागर

, गुरुवार, 23 अगस्त 2007 (20:25 IST)
पिछले सप्ताह करीब दो लाख करोड़ रुपए के नुकसान के संदर्भ में यह आवश्यक हो गया है कि शेयर बाजारों के खलनायकों की पहचान की जाए, विशेषकर इसलिए कि पूरी दुनिया में वित्तीय संकट के चलते मंदी और गहराने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

इसे विश्व की क्रूर विडंबना ही कहा जाएगा कि कुछ समय पूर्व तक पूँजी प्रवाह से जूझ रही अर्थव्यवस्थाओं को धन के सूखे का सामना करना पड़ रहा है।

पिछले सप्ताह शेयर बाजारों के लुढ़कने ने निवेशकों की अनेक मान्यताओं को हिलाकर रख दिया। अमेरिकी एसएंडपी में भारी गिरावट का प्रभाव जापान, सिंगापुर, हांगकांग, कोरिया सहित अन्य एशियाई बाजारों पर पड़ा। गत सप्ताह मुंबई शेयर बाजार 726 से और परसों मंगलवार को 438 बिंदुओं से लुढ़का।

यद्यपि कल बुधवार को बाजार 259 बिंदुओं से उठा, लेकिन शेयर बाजारों के जानकार सूत्रों का कहना है कि संभवतः इससे भी बुरा दौर कभी भी आ सकता है। सेवा और सरकार इसे चाहे तकनीकी करेक्शन की संज्ञा दे या अमेरिका का संकट थम जाए, लेकिन पिछले सप्ताह करीब दो लाख करोड़ रुपए के नुकसान के संदर्भ में यह आवश्यक हो गया है कि शेयर बाजारों के खलनायकों की पहचान की जाए, विशेषकर इसलिए कि पूरी दुनिया में वित्तीय संकट के चलते मंदी और गहराने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

शेयर बाजारों के समूचे परिवेश में प्रमुखतः तीन खलनायक उभरकर सामने आए हैं। ये हैं- जापानी मुद्रा येन का कैरी टे्रड, अमेरिका का सब-प्राइम कर्ज संकट और वित्तीय संस्थागत निवेशकों के हैज फंड।

जापानी मुद्रा येन के कैरी ट्रेड के तहत लोग जापान में प्रचलित शून्य ब्याज दर पर येन खरीदकर उसे डॉलर में तब्दील करते हुए निवेश करते हैं। 2007 में इस प्रकार के सस्ते येन की डॉलर में तब्दीली से करीब एक लाख करोड़ डॉलर का निवेश हो चुका है। भारतीय शेयर बाजार में अधिकांश निवेश येन से प्रभावित डॉलर में हुआ है।

लेकिन जैसे ही डॉलर के मुकाबले येन मजबूत हुआ, व्यापारियों को नुकसान होना शुरू हुआ और नतीजतन निवेश प्राप्तियाँ घटीं। उदाहरणार्थ यदि व्यापारी ने एक हजार येन शून्य ब्याज दर पर उधार लिए और उनसे 4.5 प्रतिशत की दर के बॉण्ड पर निवेश किया, व्यापारी को 4.5 प्रतिशत का लाभ हुआ, लेकिन गत सप्ताह येन अचानक ज्यादा मजबूत हुआ और इस प्रकार के व्यापारियों में भय व्याप्त हुआ और उन्होंने डॉलर अंकित निवेश से बिकवाली कर धन खींचना शुरू किया।

ज्ञातव्य है कि पिछले चार सप्ताहों में डॉलर के मुकाबले में येन आठ प्रतिशत बढ़ा। इतना ही नहीं, जापान के निर्यातकों को भी डर लगने लगा कि येन के बढ़ते मूल्य के कारण विश्व बाजार में जापान की प्रतिस्पर्धा की ताकत कम होगी। इसलिए भी निवेशकों ने अपने शेयर बेचने शुरू कर दिए।

इस बीच अमेरिका के भवन उद्योग की मंदी, अमेरिका में जोखिम भरे कर्जों की बकायादारी तथा संदिग्ध पुनर्भुगतान क्षमता ने दुनियाभर के शेयर बाजारों में आग में घी का काम किया। निवेशकों में यह भय भी व्याप्त हो गया कि अमेरिका की विकास दर गिरकर दो प्रतिशत से भी नीचे आ जाएगी।

उल्लेखनीय है कि अधिकांश कैरी ट्रेड हैज फंडों के माध्यम से ही किया जाता है, लेकिन जापानी रिटेल निवेश भी कैरी ट्रेड में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ऐसे रिटेल व्यापारी आशंकाओं के संक्रमण से सबसे पहले ग्रसित होते हैं।

दूसरा खलनायक है अमेरिकी सब-प्राइम कर्ज संकट। जनसाधारण को समझने के लिए अमेरिका में सब-प्राइम (उप-मुख्य या प्रधान) कर्ज उन लोगों को दिया जाता है जिनकी पुनर्भुगतान क्षमता आशंकाओं के घेरे में रहती है। ऐसे ऋण लेने और देने वाला दोनों के लिहाज से ऐसे ऋण बेहद जोखिम भरे होते हैं। इसलिए ऐसे कर्जदारों को दिए गए कर्जों पर ऊँची ब्याज दर वसूली जाती है।

ये ऋण ऐसे लोगों को दिया जाता है जिनको अन्य स्रोतों से कर्ज नहीं मिल पाते। एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका की चौथाई आबादी इस श्रेणी में आती है और 2006 में ऐसे 40 प्रतिशत कर्ज सब-प्राइम श्रेणी में आ गया है। कर्ज लेने वाले और कर्ज देने वाले दोनों भूल जाते हैं कि ऐसे कर्ज दोनों के लिए जोखिमभरे हैं, क्योंकि लेने वाले को ऊँची ब्याज दर देनी पड़ती है जिनका खराब साख इतिहास, अतीत और संदिग्ध वित्तीय स्थितियों के कारण अनिश्चितताओं से घिरा होता है।

अमेरिका में ऐसे सब-प्राइम कर्ज में से भवन कर्ज के बकायादारों की संख्या 2006 से बढ़ती गई और 2007 के आते-आते इसी बढ़ती बकायादारी ने अनेक अमेरिकी कंपनियों को दिवालिया कर दिया। अमेरिका में लाखों ऐसे कर्जदार हैं जिन्होंने बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और सामान खरीदी के बदले उधारी को वापस नहीं किया। इस प्रकार के अवरुद्ध बकाया राशि के कारण उत्पन्न हुई तरलता का सूखा कब तक जारी रहेगा कुछ नहीं कहा जा सकता।

एक वित्तीय कंपनी के विशेषज्ञ के अनुसार यह एक ऐसा काला गड्ढा है जिसकी गहराई किसी को नहीं मालूम। इसलिए अमेरिका के उतार-चढ़ाव के प्रति सभी को सचेत रहना होगा।

शेयर बाजार का तीसरा खलनायक है- विदेशी संस्थागत निवेशकों का हैज फंड। हैज फंड का तात्पर्य है जोखिम कम करने के लिए बचाव का ऐसा घेरा जो निवेशकों द्वारा सौंपे गए धन और उसके जोखिम को कम करे। पिछले सप्ताह हैज फंड प्रबंधकों ने 3,100 करोड़ रुपए की बिक्री कर डाली।

विदेशी संस्थागत निवेशकों का व्यवहार अमेरिकी आर्थिक धीमीकरण या मंदी से प्रभावित हो रहा है। यूरोप के 13 देशों की मुद्रा यूरो के मुकाबले डॉलर 10 प्रतिशत, इंग्लैंड के स्टर्र्लिंग पौंड के विरुद्ध 12 प्रतिशत और चीनी युवान के खिलाफ 3 प्रतिशत गिरा। धीमे विकास और जिद्दी मुद्रास्फीति के दबावों के बीच अमेरिकी सरकार की ताजा रिपोर्ट में यह चिंता झलकती है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रति इकाई श्रम लागत 6.6 प्रतिशत बढ़ी, लेकिन प्रति घंटा केवल 1.6 प्रतिशत उत्पादन बढ़ने से परेशान है।

भवन निर्माण 10 वर्षों के सबसे नीचे स्तर पर चला गया है। दूसरी ओर बैंक व वित्तीय संस्थाओं की उधारी पर अंकुश लगने से उपभोक्ता व्यय में कमी आने से मंदी के आसार दिखने लगे। अतः जब तक पिछले दस वर्षों की सबसे अधिक गिरवी-बकायादारी, नए कर्ज प्रतिबंध और उथल-पुथल या वित्तीय बाजार अमेरिकी अर्थव्यवस्था को आघात पहुँचाते रहेंगे तब तक विश्व के शेयर बाजारों में स्थिरता कायम नहीं हो सकेगी।

कुछ समय के लिए शेयर बाजार स्थिर हो भी जाए, लेकिन भूंमडलीकृत विश्व व्यवस्था में कोई भी देश विकसित अर्थव्यवस्थाओं, विशेषकर गिरती अमेरिकी अर्थव्यवस्था से अपने आपको स्थायी तौर पर सुरक्षित नहीं समझ सकता। अभी तो संकट के बादल क्षितिज के नीचे ही घिर रहे हैं, ऊपर कैसे उठेंगे, कब उठेंगे, नहीं कहा जा सकता।

गौरतलब है कि नब्बे के दशक के अंत में जब पूर्वी एशियाई देशों पर, विशेषकर इंडोनेशिया, थाईलैंड और अर्जेंटीना और अन्य लेटिन अमेरिकी देशों में भी इसी प्रकार का मुद्रा संकट आया तब भारत के शेयर बाजार पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था। हुआ यह कि पूर्वी एशियाई और लेटिन अमेरिकी देशों की बैंकें, सरकारी और वित्तीय संस्थाओं ने मूल गलती यह कर दी कि अल्पावधि के विदेशी ऋणों का उपयोग दीर्घकालीन होटल, बहुमंजिली इमारतें, अतिथिगृहों इत्यादि के निर्माण में किया, वहाँ मुद्रा का प्रसार असामान्य गति से बढ़ा, लेकिन जब वित्तीय कुप्रबंधन के कारण विदेशी निवेशकों ने अपनी पूँजी वापस करने की माँग की, तब अनेक बैंकों का दिवाला निकला और पूर्वी एशियाई देशों पर वित्तीय संकट की छाया गहरी होती गई।

प्रकारांतर से इसी प्रकार का वित्तीय संकट अब अमेरिका, जापान, चीन, सिंगापुर, ताइवान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया पर छाने लगा है। शेयर बाजार की स्वस्थ उछाल सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि भारत सब-प्राइम कर्ज वापसी के संकट के चलते कर्ज के स्रोत सूखने की आशंका के प्रति सावधान रहे। (नईदुनिया)

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