Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

दिल्ली में भाजपा की हार के 7 बड़े कारण

हमें फॉलो करें दिल्ली में भाजपा की हार के 7 बड़े कारण
, मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015 (10:16 IST)
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर में अच्छी सफलता हासिल करने वाली भाजपा के हाथ से अंतत: दिल्ली निकल ही गई और नरेन्द्र मोदी का विजय रथ भी रुक गया। आम आदमी पार्टी की यह जीत क्षेत्रीय दलों में ऊर्जा भरने के काम भी करेगी, जो निकट भविष्य में चुनाव का सामना करने वाले हैं।  उल्लेखनीय इस वर्ष के उत्तरार्ध में बिहार विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। दिल्ली चुनाव परिणाम भाजपा के लिए बड़ा सबक है। आखिर ऐसे कौनसे कारण रहे हैं जिनके चलते केन्द्र में सरकार होने के बावजूद भाजपा के हाथ से दिल्ली निकल गई।


1. अतिआत्मविश्वास लोकसभा चुनाव पूर्ण बहुमत से जीतने के बाद भाजपा को लगातार सफलता मिली। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू कश्मीर में चुनावी सफलता के बाद लगता है कि भाजपा अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई। उसे ऐसा लगने लगा था कि केन्द्र में सत्ता के चलते दिल्ली विधानसभा चुनाव भी वह आसानी से जीत जाएगी और पार्टी ने मनमाने फैसले लिए। यही अति आत्मविश्वास भाजपा को ले डूबा। यह भी संभव है कि आने वाले दिनों में अरविन्द केजरीवाल मोदी विरोधी राजनीति का केन्द्र बन जाएं।
अगले पन्ने पर, भारी पड़ी पैराशूट एंट्री...

2. किरण बेदी की पैराशूट एंट्री : चुनाव से ठीक पहले किरण बेदी को पार्टी में लाने का भाजपा का 'भाजपा का
मास्टर स्ट्रोक' उलटा पड़ गया। इससे पार्टी के भीतर असंतोष फैल गया और दिल्ली के स्थानीय नेताओं ने पूरे मन
से काम नहीं किया और पार्टी को करारी शिकस्त मिली। शुरुआत से ही माना जा रहा था कि हर्षवर्धन मुख्‍यमंत्री पद
के श्रेष्ठ उम्मीदवार हो सकते हैं, लेकिन इस राय को अनदेखा किया गया। सबसे अहम बाद यह कि बेदी ने सीएम
उम्मीदवार बनते ही मुख्‍यमंत्री जैसा व्यवहार शुरू कर दिया था, जो कि न तो जनता को रास आया और न ही
प्रशासनिक पदों पर बैठे अधिकारियों को।

webdunia

3. व्यक्तिगत हमले : विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से केजरीवाल पर किए गए व्यक्तिगत हमले भी पार्टी को ले डूबे। केजरीवाल का संबंध नक्सलियों से जोड़ा गया, उन्हें उपद्रवी गोत्र का भी कहा, जो लोगों को रास नहीं आया।
उपद्रवी गोत्र के मुद्दे को केजरीवाल ने अपने पक्ष में भुना लिया। ऐसा माना जा रहा है कि उपद्रवी गोत्र के मुद्दे पर
वैश्य समाज के वोट भाजपा से छिटककर आप की झोली में चले गए। वैश्य समाज हर्षवर्धन को सीएम उम्मीदवार
नहीं बनाने से भी नाराज था क्योंकि हर्षवर्धन भी वैश्य समुदाय से आते हैं।
अगल पन्ने पर, भारी पड़ी देरी...

4. चुनाव में देरी : चुनावों में देरी दिल्ली में भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण बना। यदि लोकसभा चुनाव के
तुरंत बाद ही विधानसभा चुनाव करवा लिए जाते तो संभव था कि भाजपा को मोदी लहर का फायदा मिल जाता।
लोकसभा चुनाव के बाद आप की स्थिति मजबूत नहीं थी, लेकिन बाद में आप ने धीरे-धीरे एक बार फिर मतदाताओं में अपनी पैठ बना ली। दूसरी ओर भाजपा अन्य राज्यों में जीत के जश्न में मशगूल थी।

webdunia

5. मोदी ने देर से मैदान संभाला : दिल्ली चुनाव का शंखनाद होने के बाद जहां आप पूरी ताकत से चुनाव में जुट
गई थी, वहीं नरेन्द्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के अतिथि सत्कार में जुटे हुए थे। ओबामा के जाने के
बाद वे चुनाव में जुटे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। आप के समर्थन में बने माहौल को मोदी के भाषण नहीं बदल सके। इसके साथ ही मोदी के भाषणों में कुछ नयापन नहीं था।
अगले पन्ने पर, भारी पड़े वादे...

6. भरोसा खोया : भाजपा केन्द्र की सत्ता पर तो काबिज हो गई, लेकिन कहीं न कहीं उसके प्रति जनता के भरोसे में कमी आई। कालेधन के मामले में लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी द्वारा किए गए वादे भी उसे भारी पड़े। उन्होंने उस समय कालेधन के मुद्दे पर बड़ी-बड़ी बातें की थीं, लेकिन बाद में वे अपनी ही बात से मुकरते दिखे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने यहां तक कह दिया कि वह तो चुनावी कहावत थी, इसका हकीकत से कोई लेना-देना नहीं है।
webdunia

7. विकास का मुद्दा पीछे छूटा : लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने विकास की बड़ी बड़ी बातें की थीं, लेकिन इसचुनाव में विकास का मुद्दा कहीं न कहीं पीछे छूटता दिखा। इस बार मोदी ने अपने ज्यादातर भाषणों में व्यक्तिगत हमले ही किए।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi