किसी जमाने में यहाँ तक कि अपनी पार्टी में भी कुछ तबकों की ओर से बाहरी करार दी जाने वाली शीला दीक्षित ने अपनी लोकप्रियता और क्षमता दिखा दी है। उनके कारण कांग्रेस दिल्ली में ऐतिहासिक हैट्रिक लगाने में कामयाब हुई।
इकहत्तर वर्षीय शीला की छवि अब कांग्रेस में ऐसे कद्दावर नेता की बन गई है, जो लगातार तीन बार पार्टी को सत्ता का स्वाद चखाएँगी।
शीला के विकास के फलसफे ने जोरशोर से उठाए जा रहे राष्ट्रीय राजधानी में आतंकवाद के मुद्दे की तपिश को ठंडा कर दिया, जिसके साथ ही कभी बाहरी उम्मीदवार करार दी गईं शीला ने खुद को दिल्ली का अद्वितीय नेता साबित कर दिया।
विपक्षी दलों द्वारा सत्ताविरोधी लहर पैदा करने की कोशिशों को बेदम करते हुए कांग्रेस के दिल्ली में लगातार तीसरी बार बहुमत हासिल करने से शीला का राजनीतिक कद पहले से कहीं ज्यादा ऊँचा हो गया है।
देश में चुनाव आमतौर पर व्यक्तित्व बनाम विकाम के मुद्दे पर लड़े जाते हैं। ऐसे में शीला के करिश्माई व्यक्तित्व तथा उनके मुख्यमंत्रित्व काल में किए गए विकास कार्यों ने विपक्षियों के लिए राज्य से संबंधित कोई विशेष मुद्दा नहीं छोड़ा।
नाम के अनुरूप सौम्य स्वभाव वाली शीला के व्यक्तित्व के आगे भाजपा तथा अन्य दलों की चुनावी रणनीति दमदार नहीं लगी और दिल्ली में एक बार फिर शीला का जलवा नजर आया।
इस बार नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरीं शीला ने भाजपा के विजय जौली को 14 हजार 78 मतों से हराया। पिछले विधानसभा चुनाव में वे गोल मार्केट गोल मार्केट सीट से चुनी गई थीं। नए परिसीमन के बाद उन्हें अपना क्षेत्र बदलना पड़ा था।