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'आप' निकला सबका बाप

श्रवण शुक्ल, नई दिल्ली

हमें फॉलो करें 'आप' निकला सबका बाप
नई दिल्ली , शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013 (11:18 IST)
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नई दिल्ली। 'आप' निकला सबका बाप। यह हम नहीं, आप में से कितने ऐसे दिल्ली के नागरिक हैं जिनकी दिनचर्या का यह विषय बना चुका है। ये वो नागरिक हैं, जो चाय की टेबल पर समाचार पत्र पढ़ते हुए टीवी में हो रहे चुनावी विश्लेषण (डिबेट) पर अपनी प्रतिक्रिया में इस तरह की भाषा आपसी बातचीत के दौरान प्रयोग में ला रहे हैं।

यही नहीं, इसी प्रकार की चर्चा आपको दिल्ली बस स्टैंडों, सार्वजनिक स्थलों, चौपालों पर ताश खेल रहे रिटायर्ड बुजुर्गों व दफ्तरों में लंच के समय गप-शप मार रहे कर्मचारियों के बीच आसानी से सुनी जा सकती है। 4 दिसंबर को दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के बाद लोगों में 'आप बना सबका बाप' तेजी से चर्चा का विषय बना हुआ है।

लोग जहां एक-दूसरे से गंभीरता से यह कहते सुने जा रहे हैं, कि दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से शीला इस बार हार रही है जिसे केजरीवाल पटकनी दे रहा है।

वहीं लोग मजाकिया लहजे में कहते हैं कि 'आप निकला सबका बाप'। बहस का विषय यह नहीं है कि 'आप निकला सबका बाप', बहस का विषय यह है कि अभी जिस पार्टी का जन्म हुए 1 साल भी नहीं हुआ हो, वह पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने या फिर सरकार बनवाने की स्थित में अपने 'आप' को पा रही।

आखिर ऐसा दिन आया ही क्यों? इसका साफ-सा मतलब है कि देश की 150 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस व 50 साल से भी ज्यादा का सफर तय कर चुकी भाजपा देश की जनता के साथ कहीं न कहीं खिलवाड़ किया है।

वहीं 23 साल से भी ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुकी अपने आपको सर्वसमाज का नारा देने वाली बहुजन समाज पार्टी की भी स्थिति कोई सुखद नहीं कही जा सकती। विशेषकर दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में, जो पार्टी अपने को देश की तीसरी राष्ट्रीय पार्टी कह रही हो, उसका हश्र दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम में क्या होने वाला है यह किसी से छिपी नहीं है।

अब जरा बात हो जाए 'आम आदमी पार्टी' (आप) की। 'आप' पार्टी का जन्म ही हुआ है आम आदमी को फोकस में रखकर। इसके संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के गठन के समय अपने भाषण में इस बात को कई बार दोहराया था कि आम आदमी का कोई भी राजनीतिक दल ख्याल नहीं रखता। सभी पार्टियां भ्रष्टाचार में डूबी हुई हैं। इसीलिए हमने आम आदमी को ध्यान में रखकर 'आप' पार्टी का गठन किया है।

जिस पर कांग्रेस ने सबसे पहले अपना विरोध दर्ज कराया था और पार्टी ने बाकायदा इसके लिए प्रेस कांफ्रेंस करके आम आदमी पर अपना दावा ठोकते हुए कहा था कि आम आदमी की हितैषी केवल कांग्रेस पार्टी है, 'आप' पार्टी कहां से पैदा हो गई।

इसी से मिलते-जुलते जुमलों का प्रयोग दिल्ली विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पूर्व तक भाजपा कहती थी कि 'आप' पार्टी चार लोगों की पार्टी है, इसके विषय में बात करना समय की बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं है।

वहीं बहुजन समाज पार्टी, जो अपने को 23 साल पुरानी पार्टी कहती है वह 'आप' पार्टी, पर फब्ती करते हुए कहती है कि जिसका जन्म हुए 3 महीने भी नहीं हुआ, जिसने किसी बच्चे की तरह अभी ठीक से आंख भी नहीं खोली हो वह सरकार बनाने की बात करती है, जो किसी हास्यास्पद से कम नहीं है।

कुल मिलाकर कहने का निष्कर्ष यह है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले जहां सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियां 'आप' पार्टी को एक वोट कटवा पार्टी के रूप में परोस रही थीं, वहीं चुनाव बाद दिल्ली का आम आदमी 'आप' पार्टी को सभी पार्टियों का 'बाप' कहकर संबोधित कर रहा है। आप क्या कहते हैं, जरा सोचो और बुझो तो जानें।

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