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दिल्ली में असरदार रहा 'मोदी फैक्टर'!

-श्रवण शुक्ल, नई दिल्ली से

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, गुरुवार, 5 दिसंबर 2013 (23:24 IST)
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नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। विधानसभा का चुनाव परिणाम कई राजनीतिक दलों की उनकी राजनीतिक दशा और दिशा तय करेगा।

हालांकि सभी राजनीतिक दल इस बात से काफी खुश नजर आ रहे हैं कि पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में मतदाताओं ने घरों से निकलकर जो अपना जनादेश दिया है, वह काबिले तारीफ है। खासकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में 66.8 फीसदी मत पड़ना एक रिकॉर्ड रहा। वहीं यह चर्चा का विषय बन गया कि बढ़ा हुआ मत प्रतिशत किस राजनीतिक दल को पड़ा।

इसके अलावा दिल्ली के बुदि्धजीवियों में यह चर्चा भी जोरों पर है कि दिल्ली के मतदाता किस राजनीतिक पार्टी व किस राजनेता के आह्वïन पर इतनी बड़ी संख्‍या में मतदान के दिन छुट्टी मनाने के बजाए घरों से निकलकर बूथों पर जाकर लाइन में लगकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो वास्तव में भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए सुखद है।

यह बहस का विषय हो सकता है, लेकिन लोगों का मानना है कि इसके पीछे मोदी फैक्टर एक अहम हिस्सा रहा। मोदी ने अपनी सभी रैलियों में मतदाताओं से अपने मत का प्रयोग करने के लिए 'पहले मतदान, फिर जलपान' का नारा दिया था, जो सफल रहा। यदि ऐसा हुआ तो, निश्चित रूप से भाजपा के लिए यह एक शुभ संकेत माना जा सकता है। हालांकि यह आंकड़ा दिल्ली में ही नहीं, बल्कि उन सभी राज्यों में देखने को मिला जहां-जहां पर इस बार चुनाव हुए।

छत्तीसगढ़, राजस्थान व मध्यप्रदेश और मिजोरम के उत्साहजनक आंकड़ों के बाद अब देश की राजधानी दिल्ली ने भी मत प्रतिशत में बाजी मारी। दिल्ली में चुनाव को एक अदद छुट्टी की तरह ट्रीट करने की लोगों में आदत रही है। मतदान केन्द्र पर जाने की बात तो बहुत से लोग पसंद भी नहीं करते थे। उन्हें लगता था कि वोट देना जरूरी नहीं है और यह उनकी ड्यूटी नहीं है। इस देश में जहां लोग अपने अधिकारों के प्रति इतने जागरूक हैं वहां अपने कर्तव्यों को वे अक्सर भूल जाते हैं। एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने के कारण उनका यह पहला कर्तव्य है कि वे वोट दें और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती प्रदान करें।

बहरहाल लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है और बड़ी तादाद में लोग वोटिंग करने निकले। अब यह राजनीतिक पंडितों के विश्लेषण का विषय है कि अतिरिक्त वोट किस पार्टी को मिला। वे बताएंगे कि किसके खाते में ये वोट जा सकते हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ज्यादा वोटिंग हमेशा किसी खास ओर इशारा करते हैं। इस बार जनता घरों से निकलकर चुनाव केन्द्रों तक आई तो उसके पीछे एक कारण जरूर था और वह यह कि मीडिया, सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं, शिक्षण संस्थाओं और यहां तक कि आरडब्‍ल्‍यूए भी लोगों को वोट देने के लिए प्रोत्साहित करती रहीं। सभी ने मिलजुलकर यह प्रयास किया कि ज्यादा से ज्यादा लोग वोट देने निकलें। वे बेशक किसी को पसंद न करें लेकिन वोट जरूर दें। इस बार यह अपील काम आई।

अब रविवार को चार राज्यों में वोटों की गणना होगी और परिणाम भी लोगों को तुरंत मालूम हो जाएंगे। उस समय ही पता चल पाएगा कि इतनी ज्यादा वोटिंग का मतलब क्या है, लेकिन एक बात जरूर है कि इस बार युवा वर्ग ने बड़े पैमाने पर वोटिंग की है जो हमारे लोकतंत्र के अच्छे भविष्य की ओर एक इशारा करते हैं। हमारे लोकतंत्र की जड़ें इससे और मजबूत होंगी क्योंकि जिनके कंधों पर लोकतंत्र का भविष्य है, वे अब आगे आ रहे हैं। पहले युवा मतदाता वोट करने के बजाए छुट्टी मनाने में रुचि लेता था, जो इस बार ऐसा नहीं दिखा।

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