Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

ध्यान है योग की आत्मा

ध्यान से आत्मिक बल की प्राप्ति संभव

हमें फॉलो करें ध्यान है योग की आत्मा
- स्वामी अपूर्वानंद
ND

ध्यान योग का महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक संबंध बनाता है। ध्यान के द्वारा हमारी ऊर्जाकेंद्रित होती है। ऊर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल बढ़ता है। योग में ध्यान का बहुत ही महत्व है। ध्यान के द्वारा हमारी ऊर्जा केंद्रित होती है। ऊर्जा केंद्रित होने से मन और शरीर में शक्ति का संचार होता है एवं आत्मिक बल बढ़ता है। ध्यान से वर्तमान को देखने और समझने में मदद मिलती है।

वर्तमान में हमारे सामने जो लक्ष्य है उसे प्राप्त करने की प्रेरण और क्षमता भी ध्यान से प्राप्त होता है। ध्यान को योग की आत्मा कहा जाता है। प्राचीन काल में योगी योग क्रिया द्वारा अपनी ऊर्जाको संचित कर आत्मिक एवं पारलौकिक ज्ञान और दृष्ट प्राप्त करते थे। ध्यान योग वास्तव में योग का महत्वपूर्ण तत्व है जो तन, मन और आत्मा के बीच लयात्मक संबंध बनाता है और उसे बल प्रदान करता है।

हमारे मन में एक साथ कई विचार चलते रहते हैं। मन में दौड़ते विचरों से मस्तिष्क में कोलाहल सा उत्पन्न होने लगता है जिससे मानसिक अशांति पैदा होने लगती है। ध्यान अनावश्यक विचारों को मन से निकालकर शुद्ध और आवश्यक विचारों को मस्तिष्क में जगह देता है। ध्यान का नियमित अभ्यास करने से आत्मिक शक्ति बढ़ती और मानसिक शांति की अनुभूति होती है। ध्यान का अभ्यास करते समय शुरू में पाँच मिनट भी काफी होता है। अभ्यास से पच्चीस-तीस मिनट तक ध्यान लगा सकते हैं।

webdunia
ND
आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में मन को एकाग्र कर पाना और ध्यान लगाना बहुत ही कठिन है। मेडिटेशन यानी ध्यान की क्रिया शुरू करने से पहले वातावरण को इस क्रिया हेतु तैयार कर लेना चाहिए। ध्यान की क्रिया उस स्थान पर करना चाहिए जहाँ शांति हो और मन को भटकाने वाले तत्व मौजूद नहीं हों। ध्यान के लिए एक निश्चित समय बना लेना चाहिए इससे कुछ दिनों के अभ्यास से यह दैनिक क्रिया में शामिल हो जाता है फलत ध्यान लगाना आसान हो जाता है।

आसन में बैठने का तरीका ध्यान में काफी मायने रखता है। ध्यान की क्रिया में हमेशा सीधा तन कर बैठना चाहिए। दोनों पैर एक दूसरे पर क्रॉस की तरह होना चाहिए और आँखें मूँद कर नेत्र को मस्तिष्क के केंद्र में स्थापित करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इस क्रिया में किसी प्रकार का तनाव नहीं हो और आपकी आँखें स्थिर और शांत हों।

यह क्रिया आप भूमि पर आसन बिछाकर कर सकते हैं अथवा पीछे से सहारा देने वाली कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं। साँस की गति का महत्व योग में साँस की गति को आवश्यक तत्व के रूप में मान्यता दी गई है। साँस लेने और छोड़ने की क्रिया द्वारा ध्यान को केंद्रित करने में मदद मिलती है। ध्यान करते समय जब मन अस्थिर होकर भटक रहा हो उस समय श्वसन क्रिया पर ध्यान केंद्रित करने से धीरे धीरे मन स्थिर हो जाता है और ध्यान केंद्रित होने लगता है। ध्यान करते समय गहरी साँस लेकर धीरे-धीरे से साँस छोड़ने की क्रिया से काफी लाभ मिलता है।

ध्यान और अंतर्दृष्‍टि ध्यान करते समय अगर आप उस स्थान को अपनी अंतर्दृष्‍टि से देखने की कोशिश करते हैं जहाँ जाने की आप इच्छा रखते हैं अथवा जहाँ आप जा चुके हैं और जिनकी खूबसूरत एहसास आपके मन में बसा हुआ है तो ध्यान आनंददायक हो जाता है। इससे ध्यान मुद्रा में बैठा आसान होता एवं लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने में भी मदद मिलती है। अपनी अंतर्दृष्‍टि से आप मंदिर, बगीचा, फूलों की क्यारियों एवं प्राकृतिक दृष्यों को देख सकते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi