आत्म-दर्शन माने किसी काल्पनिक आत्मा का दर्शन नहीं। आत्म-दर्शन माने स्व-दर्शन, सत्यदर्शन। अपने बारे में जो सच्चाई है, उसका अन्वेषण-अनुसंधान। यह एक ऐसी विद्या है, जिसके सहारे साधक अपने भीतर शरीर एवं मन के क्षेत्र में निरंतर बदलते ऐन्द्रीय अनुभवों को देखते-देखते, इंद्रियों के परे, नित्य, शाश्वत, ध्रुव परम सत्य को देखने के मार्ग पर प्रशस्त होने का अभ्यास करते-करते अपने मन पर पड़े विकारों से सहज ही छुटकारा पा लेता है।
विपश्यना साधना के इंदौर केंद्र पर पिछले दिनों एक और दस-दिवसीय शिविर का आयोजन हुआ। विभिन्न आयुवर्गों और पृष्ठभूमियों के लगभग 51 महिला एवं पुरुष साधकों ने इसमें भाग लिया। विपश्यना साधना सीखने के लिए कम से कम एक दस दिवसीय शिविर में भाग लेना होता है। केंद्र पर ही सबके आवास, भोजनादि की समुचित एवं पूर्णतः निशुल्क व्यवस्था रहती है। केंद्र पर साधक सर्वथा मौन का पालन करते हुए विपश्यनाचार्य सत्यनारायण गोयनकाजी के ऑडियो-वीडियो सीडी के माध्यम से, शिविर संचालक सहा. आचार्य के साथ इस ध्यान विधि का सक्रिय अम्यास करते हैं।
हम जानते हैं कि एक निर्मल बालक अपने जन्म के समय पाई निर्मलता शनैः-शनैः उम्र बढ़ने के साथ-साथ कैसे खोता चला जाता है। हम स्वयं अपने ऊपर मैल चढ़ाते हैं तो उन्हें धोने, उनसे छुटकारा पाने की जवाबदारी भी तो हमारी ही है। कुछ ऐसे ही अनुभवों से दो-चार हुए साधकों के उद्गार यहाँ प्रस्तुत हैं।
जावरा से आए कैलाश मोदी कहते हैं, 'जीवन को हर पल जीने का सही तरीका यहाँ बड़े मनोयोग से अद्भुत व्यवस्थाओं के बीच सीख पाया।' तरुण मेहता को दुर्व्यसनों से पीछा छुड़ाना था... कहते हैं, 'इस साधना को सीखकर मुझे मेरे उद्देश्य की प्राप्ति में बड़ी सहायता मिलेगी।'
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शिक्षिका एवं व्याख्याता श्रीमती पुष्पलता ने कहा, 'एक सर्वथा नवीन एवं पूर्णता प्राप्त साधना विधि पाकर मैं खुश हूँ। हर दृष्टि से उत्कृष्ट यह साधना विधि बड़े मनोयोग से, अत्यधिक सेवाभाव एवं अपनेपन से, बिना जताए - स्वाभाविक रूप से, एक-दो नहीं पूरे दस दिनों तक सिखाई गई। साधुवाद।'
'साधना से पहले मैं बेचैनी से ग्रस्त था, मानसिक रूप से परेशानियों में घिरा था, लेकिन मन के मैलों से छुटकारा पाने की साधना दस दिनों तक सीखते-सीखते दसवें दिन मैं मानसिक शांति एवं प्रफुल्लता का अनुभव कर रहा हूँ। व्यवस्थापकों का कार्य सराहनीय रहा।'
ये विचार व्यक्त किए मनीष थोरात छत्रीबाग इंदौर ने। सिंडिकेट बैंक में कार्यरत अशोक तुकाराम अपने उद्गार कुछ ऐसे व्यक्त करते हैं, 'इस शिविर में आकर शांति का अनुभव किया, सबके अपनाने योग्य इस ध्यान साधना का अनुभव विधि को बड़े संतुलित तरीके से, कुशल व्यवस्थाओं के साथ सिखाया गया। हर समय सजग रहने का अभ्यास नया अनुभव दे गया।'
श्रीमती यशोदा शर्मा भवानीपुर कॉलोनी इंदौर कहती हैं, 'जैसे साधना के दौरान बाढ़-सी आई और सारे मनोविकार बहा ले गई। जीवन बीमा निगम में अधिकारी विजय वर्मा इंदौर इस साधना विधि को पाकर अभिभूत हैं एवं कहते हैं, 'अब तक केवल सुना था... अब अनुभव पर उतारा। शिविर के आरंभ में आई शारीरिक पीड़ाएँ, 3-4 दिनों के बाद समाप्तप्राय हो गईं एवं अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त हुए।'
बड़वानी से पधारे अनिलकुमार मगनलाल सोनी कहते हैं, 'धर्म के सही स्वरूप की जानकारी जन-जन तक फैलना चाहिए... शिविर के दौरान मन में जागे विकारों का दर्शन करते हुए उनसे छुटकारे का मार्ग हाथ लगा।' फार्मास्युटिकल सलाहकार अरविंद गाड़े कहते हैं, 'घुटने के दर्द की वजह से शिविर के प्रथम 2-3 दिन में ठीक से ध्यान नहीं कर पाया... परंतु फिर बाद में मुझे थोड़ी सफलता मिलती गई। ...उत्तम अनुशासन एवं समय की पाबंदी, अनुकूल व्यवस्थाओं के चलते ध्यान में सहायता मिली... और अधिक लोगों को इस विषयक जानकारी मिले... यही कामना है।'
विपश्यना ध्यान पाकर सभी शिविरार्थी प्रसन्न थे। अब तक वे जान चुके थे कि मन में गाँठें स्वयं हमने बाँधी हैं। अतः स्वयं को ही खोलनी पड़ेंगी। इस कार्य में प्रकृति खूब मदद करेगी। ऋतु खूब मदद करेगी। सबका मंगल हो, सबका भला हो।