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ध्यान

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वर्तमान में जीने को ध्यान कहते हैं। हमारी सारी ऊर्जा बाहर की ओर बह रही है, ध्यान द्वारा ऊर्जा को रोका जा सकता है। ध्यान का मतलब है हमारी सारी ऊर्जा अंदर की ओर मूड़ जाए, अभी हमारी ऊर्जा का केन्द्र दूसरों में स्थित है, इसलिए कोई हमारी प्रशंसा करता है, तो हम फूले नहीं समाते, कोई निंदा करता है, तो क्रोध से भर जाते हैं।

होना तो यह चाहिए कि हम सब कुछ देखें, सब कुछ सुनें, फिर उस पर विचार करें। हमें क्या करना है, इसका निर्णय हमारा अपना होना चाहिए हर व्यक्ति अकेला है आप जैसा दूसरा व्यक्ति न पैदा हुआ था, न अभी है और न होगा।

आप अपने संस्कार साथ लेकर पैदा हुए, इसलिए मेरा जीवन कैसा है। मेरी परिस्थितियाँ कैसी हैं, मेरा स्वभाव कैसा है इन सब पर विचार करते हुए निर्णय होना चाहिए। ध्यान आपको वह समझ देता है, जिससे आप उचित निर्णय कर अपने जीवन को सुचारु रूप से चला सकें।

ऋषियों ने योग की जो व्यवस्था हमारे सामने रखी, उसमें ध्यान 7वीं सीढ़ी है। वास्तव में इसे 7वीं सीढ़ी न कहकर 15वीं सीढ़ी कहना चाहिए, क्योंकि सब से पहले दो अंग-यम और नियम 10 हैं। ऋषियों की यह व्यवस्था पूर्ण है और इसमें कोई त्रुटि नहीं है।

ध्यान का मतलब है अपना निरीक्षण करना। सबसे पहला काम आप करें, जो भी काम आप करते हैं, उसे पूरी निष्ठा, लगन तथा ईमानदारी से करें, बाकी सब कुछ शक्ति पर छोड़ दें। बस, यहीं से ध्यान की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

इसका अच्छा उदाहरण यह है: कौरव तथा पांडव दोनों अपने गुरु से धनुर्विद्या सीखते थे। एक दिन गुरु ने परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने दूर पेड़ बैठी एक चिड़िया को दिखाया और कहा कि चिड़िया की आँख को निशाना लगाओ। फिर गुरु ने एक-एक करके सभी शिष्यों से पूछा कि तुम्हे क्या दिखाई दे रहा है?

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किसी ने कहा पेड़ दिखाई दे रहा है, किसी ने कहा पेड़ की शाखाएदिखादे रही हैं, किसी ने कहा टहनी पर बैठी चिड़िया दिखाई दे रही है, किसी ने कहा पत्ते दिखाई दे रहे हैं। अंत में अर्जुन ने कहा गुरुजी मुझे तो केवल चिड़िया की आँदिखाई दे रही है। यह सुनकर गुरु ने निशाना लगाने की आज्ञा उसे दे दी। अर्जुन ने चिड़िया की आँख को बेध दिया।

रात में सोने से पूर्व आँखे बंद कर 10-15 मिनट तक अपने बिस्तार पर सीधे लेट जाएऔर शरीर को पूरी तरह शिथिल कर दें। श्वास को स्वभाविक स्थिति में लें। फिर जो कुछ भी आपने दिनभर किया है, उसका विश्लेषण करें कि कहाँ आपने क्रोध किया, कहाँ आपने झूठ बोला, कहाँ आपसे अनुचित हुआ, कौन-सा अच्छा काम किया, कौन-सा गलत काम किया।

इन पर पूरी तरह विचार करें और संकल्प करें कि जो अनुचित हुआ है, वह कल नहीं करना। कुछ दिन के अभ्यास से आप में परिवर्तन होना निश्चित है। ये सब अपने आप होने लगेगा, यह देखकर आप आश्चर्य करने लेगेंगे।

जब जीवन का क्रम बदलेगा, यम और नियमों का पालन होने लगेगा तथा आपके आसन व प्राणायाम सधने लगेंगे। फिर यह एक साधना होगी। तब आपको ध्यान करना नहीं होगा, ध्यान हो जाएगा।

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