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मन को साधने की विधि

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जब तक मन में राग है, जब तक मन में द्वेष।
तब तक दुःख ही दुःख है, मिटे न मन के क्लेश

विपश्यना भारत की एक अत्यंत पुरातन साधना विधि है। लगभग 2550 वर्ष पूर्व भगवान गौतम बुद्ध ने विलुप्त हुई इस पद्धति का पुनः अनुसंधान कर इसे सर्वसुलभ बनाया था। यह अंतर्मन की गहराइयों तक जाकर आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुद्धि करने की साधना है।

अपने नैसर्गिक साँस के निरीक्षण से आरंभ करके अपने ही शरीर और चित्तधारा पर पल-पल होने वाली परिवर्तनशील घटनाओं को तटस्थ भाव से निरीक्षण करते हुए चित्त-विशोधन और सद्गुण वर्धन का यह अभ्यास साधक को कहीं किसी सांप्रदायिक आलंबन से बँधने नहीं देता। इसीलिए यह साधना सर्वग्राह्य है, बिना किसी भेदभाव के सबसे लिए समान रूप से कल्याणकारी है।

विपश्यना का उद्देश्य यह है कि साधक पारस्परिक द्वेष और द्रोह के दुर्गुणों से छुटकारा पा सके, सांप्रदायिकता एवं संकीर्ण जातीयता के विषैले अहंभाव के बंधनों से उन्मुक्त हो सके, एक स्वस्थ, सुखी समाज का स्वस्थ, सुखी बन सके, आत्म मंगल तथा सर्वमंगल की भावनाओं से परिपूर्ण विधेयात्मक और सृजनात्मक जीवन जीकर अपना जीवन सुधार सके।

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विपश्यना राग, द्वेष और मोह से विकृत हुए चित्त को निर्मल बनाने की साधना है। दैनिक जीवन के तनाव-खिंचाव से गाँठ-गँठीले हुए चित्त को ग्रंथि-विमुक्त करने का सक्रिय अभ्यास है।

शिविर में पूरे 10 दिनों तक आर्य-मौन का पालन करना होगा, यानी वाणी के साथ इशारों से अथवा संकेतों से भी बात नहीं करना है।

विपश्यना जैसी पावन अनमोल साधना की शिक्षा पूर्णतया निःशुल्क ही दी जाती है। शिविरों का खर्च इस साधना से लाभान्वित पुराने साधकों के कृतज्ञता भरे ऐच्छिक दान से ही चलता है। शिविर समापन के समय नए साधकों के मन में इस प्रकार की मंगल भावना जागे तो वे भी अपनी श्रद्धा व शक्ति के अनुसार दान दे सकते हैं। विपश्यना में लोगों के मानस और चरित्र को बदलने की क्षमता है। जो कोई इसके लिए प्रयास करना चाहे, उसके लिए अवसर उपस्थित है।

भोपाल में विपश्यना शिविर
25 अगस्त से 5 सितंबर 2010 तक

मप्र विपश्यना समिति द्वारा केरवाँ डेम के निकट नवनिर्मित धम्मपाल केंद्र में विपश्यना साधना सिखाने के लिए हर माह एक से दो 10 दिवसीय विपश्यना शिविर लगाए जाते हैं।

अगला शिविर 25 अगस्त बुधवार की शाम से प्रारंभ होकर 5 सितंबर की सुबह 7 बजे समाप्त होगा। शिविर में साधकों को 10 दिन तक केंद्र में ही मौन रहकर वहाँ मौजूद आचार्य के मार्गदर्शन में विपश्यना साधना सीखनी होती है। शिविर में प्रमुख आचार्य श्री सत्यनारायण गोयनकाजी की वाणी में टेप किए हुए निर्देश व प्रवचन के आधार पर विपश्यना विद्या सिखाई जाती है।

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