आज का हर इंसान किसी न किसी तरह के नशे में फँसा हुआ है। किसी को क्रोध की लत, तो किसी को भय की, वासना की, अवसाद की या फिर ड्रग्स की लत है। ये सभी विकार हैं जो हमने हमारे मन में इकट्ठे कर लिए हैं और इन्हीं के कारण आज हर मनुष्य दुखी है।
मैं भी अपने पूर्व जीवन में इनमें से कई नशों में बुरी तरह लिप्त था। जब मैं आईआईटी मुंबई में प्रथम वर्ष का विद्यार्थी था, तब मुझे नशे की लत लगी। अत्यधिक क्रोध, अहम और भय ये तीन रोग तो मुझे पहले से थे, नशे ने हालत और गंभीर कर दी। मैंने अपने जीवन में अपनी इन कमजोरियों के कारण बहुत कुछ खोया है।
नशे की लत इस हद तक पहुँची कि मुझे अपना बी. टेक बीच में छोड़कर आना पड़ा। नशे की लत को पूरा करने के लिए चोरी की लत पड़ी, बात थाने तक गई। सेहत का हाल ये हुआ कि एक बार डॉक्टरों ने जवाब तक दे दिया था, लेकिन नशे की लत छूट नहीं रही थी। फिर सहारा मिला भारत की ही एक पुरातन साधना विपश्यना से। नशा करने की इच्छा जड़ से समाप्त हुई। नया जीवन आरंभ हुआ।
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लेकिन बात यहाँ खत्म नहीं हुई, क्रोध, भय और अवसाद ने भयावह रूप धारण कर लिया था जो मुझे सामान्य जीवन जीने नहीं दे रहे थे। मैं बहुत स्वार्थी, गुस्सैल और लड़ाकू किस्म का इंसान या जो जरा सी बात पर मरने-मारने पर उतारू हो जाता था। ऐसे ही एक झगड़े में मेरी बाँई आँख जाते-जाते बची। विपश्यना ने क्रोध के ज्वालामुखी में शीतल गंगा का प्रवाह पैदा किया, जो अब जीवन में अमृत घोल रहा है।
अवसाद और भय, जिन्होंने मेरे आत्मविश्वास छलनी कर दिया था, अब जीवन से लुप्त प्रायः हैं। मैं विपश्यना पाकर धन्य हुआ। मन में कृतज्ञता का भाव ऐसे जगा कि जिन्होंने मेरे जीवन को घोर रात्रि से उजाले में बदल दिया उनका ऋण चुकाना तो संभव नहीं, पर इस दुखीयारे जगत के लोगों को अपनी बात कह के यह तो बताऊँ कि दुखों से सचमुच छुटकारा संभव है। जानने के लिए आपको एक दस दिन का शिविर जरूर लेना चाहिए। अब तो इंदौर में भी साधना केंद्र तैयार हो चुका है और रेग्युलर शिविर लग रहे हैं।
निर्धन या धनवान हो, अनपढ़ या विद्वान। जिसने मन मैला किया, उसके व्याकुल प्राण॥ अपना सुधरा चित्त ही, आए अपने काम। जो सुख चाहे मानवी, मन पर राख लगाम॥