अष्टांग योग में ध्यान को 7वीं सीढ़ी या योगांग माना गया है, परंतु जब से ध्यान का भी बाजारीकरण हुआ है तब से अब इसे डायरेक्ट किया या सीखा जा सकता है। मतलब यह कि आप छह सीढ़ियों को लांघकर सीधे सातवीं सीढ़ी पर पहुंच सकते हैं। यह चमत्कार तो ध्यान सिखाने वाली संस्थाएं ही कर सकती हैं। खैर, यदि आप डायरेक्ट सातवीं सीढ़ी पर चढ़ने में सक्षम है तो यह भी सीख लें कि ध्यान कैसे करें।
जिस तरह यम नियम को करने के पूर्व हम अपना आचरण शुद्ध करके अनुशासन सीखते हैं, जिस तरह योगासनों को सीखने के पहले अंगसंचालन करके या सामान्य योगासन करके उसमें अभ्यस्त होने के बाद ही अन्य योगासन करते हैं और जिस तरह कपालभांति या भ्रस्त्रिका के पहले हम अनुलोम विलोम प्राणायाम सीखते हैं उसी तरह हम प्रत्याहार और धारणा में परंगत होने के बाद ही ध्यान में कदम रखते हैं तो तब ध्यान हम आसानी से कर सकते हैं।
अब सवाल यह है कि ध्यान कैसे करें? ज्ञानीजन कहते हैं कि यह उसी तरह है कि हम पूछें कि कैसे श्वास लें, कैसे जीवन जीएं, कैसे जिंदा रहें या कैसे करें प्यार। आपसे सवाल पूछा जा सकता है कि क्या आप हंसना और रोना सीखते हैं या कि पूछते हैं कि कैसे रोएं या हंसे? ध्यान हमारा स्वभाव है, जिसे हमने संसार की चकाचौंध के चक्कर में खो दिया है।
ध्यान करने के लिए शुरुआती तत्व- 1. श्वास की गति, 2. मानसिक हलचल 3. ध्यान का लक्ष्य और 4. होशपूर्वक जीना। उक्त चारों पर ध्यान दें तो तो आप ध्यान करना सीख जाएंगे।
श्वास की गति अर्थात छोड़ने और लेने पर ही ध्यान दें। इस दौरान आप अपने मानसिक हलचल पर भी ध्यान दें कि जैसे एक खयाल या विचार आया और गया और फिर दूसरा विचार आया और गया। आप बस देखें और समझें कि क्यों में व्यर्थ के विचार कर रहा हूं?.... पहले तो आप इसी का अभ्यास करें।
ध्यान और लक्ष्य में आपको ध्यान करते समय होशपूर्वक देखने को ही लक्ष्य बनाना चाहिए। यंत्रवत ना जिएं। दूसरे नंबर पर सुनने को रखें। ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है जो सतत जारी रहती है- जैसे प्लेन की आवाज जैसी आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है ॐ का उच्चारण। अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। सुनने और बंद आंखों के सामने छाए अंधेरे को देखने का प्रयास करें। इसे कहते हैं निराकार ध्यान।
होशपूर्वक जीना का अर्थ है कि क्या सच में ही आप ध्यान में जी रहे हैं? ध्यान में जीना सबसे मुश्किल कार्य है। व्यक्ति कुछ क्षण के लिए ही होश में रहता है और फिर पुन: यंत्रवत जीने लगता है। इस यंत्रवत जीवन को जीना छोड़ देना ही ध्यान है। जैसे की आप गाड़ी चला रहे हैं, लेकिन क्या आपको इसका पूरा पूरा ध्यान है कि 'आप' गाड़ी चला रहे हैं। आपका हाथ कहां हैं, पैर कहां है और आप देख कहां रहे हैं। फिर जो देख रहे हैं पूर्णत: होशपूर्वक है कि आप देख रहे हैं वह भी इस धरती पर। सबसे पहले तो ध्यान पर ही ध्यान दें कि मैं ध्यान से जी रहा हूं कि नहीं?