अग्नि की तरह है ध्यान। बुराइयां उसमें जलकर भस्म हो जाती हैं। ध्यान है धर्म और योग की आत्मा। ध्यानियों की कोई मृत्यु नहीं होती। लेकिन ध्यान से जो अलग है बुढ़ापे में उसे वह सारे भय सताते हैं, जो मृत्यु के भय से उपजते हैं। अंत काल में उसे अपना जीवन नष्ट ही जान पड़ता है। इसलिए ध्यान करना जरूरी है। ध्यान से ही हम अपने मूल स्वरूप या कहें कि स्वयं को प्राप्त कर सकते हैं अर्थात हम कहीं खो गए हैं। स्वयं को ढूंढने के लिए ध्यान ही एक मात्र विकल्प है।