ध्यान के प्रकार और ध्यान की विधियों में अंतर है। ध्यान कई प्रकार का होता है जिसके अंतर्गत कई तरह की विधियां होती हैं। ध्यान की योग और तंत्र में हजारों विधियां बताई गई है। हिन्दू, जैन, बौद्ध तथा साधु संगतों में अनेक विधि और क्रियाओं का प्रचलन है। विधि और क्रियाएं आपकी शारीरिक और मानसिक तंद्रा को तोड़ने के लिए है जिससे की आप ध्यानपूर्ण हो जाएं। भगवान शंकर ने मां पार्वती को ध्यान की 112 विधियां बताई थी जो 'विज्ञान भैरव तंत्र' में संग्रहित हैं। ओशो रजनीश ने ध्यान की 150 से अधिक विधियों का वर्णन अपने प्रवचनों में किया हैं। सभी विधियों में से एक का नाम है विपश्यना ध्यान विधि। आओ जानते हैं इसके संबंध में 7 काम की खास बातें।
नोट : विपश्यना ध्यान करने के वर्तमान में कई तरीके प्रचलित हैं। यहां पर बेसिक तरीके को लिखा गया है।
1. आनापानसति ध्यान योग : विपश्यना ध्यान एक बहुत ही प्राचीन ध्यान विधि है। देश की इस अत्यंत पुरातन साधना विधि को लगभग ढाई हजार वर्ष पहले भगवान गौतम बुद्ध ने नया रूप दिया और इसे प्राचारित किया। विपश्यना एक प्राचीन ध्यान विधि है जिसे भगवान बुद्ध ने पुनर्जीवित किया। उस काल में इसे आनापानसति ध्यान योग कहा जाता था। भगवान बुद्ध ने इसको सरलतम बनाया।
2. चमत्कारिक ध्यान विधि : यह एकमात्र ऐसी चमत्कारिक ध्यान विधि है जिसके माध्यम से सबसे ज्यादा लोगों ने बुद्धत्व को प्राप्त किया या ज्ञान को प्राप्त किया। वर्तमान के युग में यह विधि और भी कारगर है साथ ही विचारों से भरे आधुनिक मनुष्य को इसकी ज्यादा जरूरत है।
3. आत्मनिरीक्षण की एक प्रभावकारी विधि : विपश्यना आत्मनिरीक्षण की एक प्रभावकारी विधि है। इससे आत्मशुद्धि होती है। यह प्राणायाम और साक्षीभाव का मिला-जुला रूप है। दरअसल, यह साक्षीभाव का ही हिस्सा है। चिरंतन काल से ऋषि-मुनि इस ध्यान विधि को करते आए हैं। इस विधि के अनुसार अपनी श्वास को देखना और उसके प्रति सजग रहना होता है। देखने का अर्थ उसके आवागमन को महसूस करना। श्वास के आवागमन को देखते रहना ही विपश्यना है।
4. कैसे करें विपश्यना : विपश्यना बड़ा सीधा-सरल प्रयोग है। अपनी आती-जाती श्वास के प्रति साक्षीभाव। प्रारंभिक अभ्यास में उठते-बैठते, सोते-जागते, बात करते या मौन रहते किसी भी स्थिति में बस श्वास के आने-जाने को नाक के छिद्रों में महसूस करें। जैसे अब तक आप अपनी श्वासों पर ध्यान नहीं देते थे लेकिन अब स्वाभाविक रूप से उसके आवागमन को साक्षी भाव से देखें या महसूस करें कि ये श्वास छोड़ी और ये ली। श्वास लेने और छोड़ने के बीच जो गैप है, उस पर भी सहजता से ध्यान दें। जबरन यह कार्य नहीं करना है। बस, जब भी ध्यान आ जाए तो सब कुछ बंद करके इसी पर ध्यान देना ही विपश्यना है।
श्वास के अलावा दूसरी स्टेप में आप बीच बीच में यह भी देखें कि यह एक विचार आया और गया, दूसरा आया। यह क्रोध आया और गया। किसी भी कीमत पर इन्वॉल्व नहीं होना है। बस चुपचाप देखना है कि आपके मन, मस्तिष्क और शरीर में किसी तरह की क्रिया और प्रतिक्रियाएं होती रहती है।
5. विपश्यना विधि नहीं, स्वभाव है : विपश्यना को करने के लिए किसी भी प्रकार के तामझाम की या एकांत में रहने की जरूरत नहीं। इसका अच्छा अभ्यास भीड़ और शोरगुल में रहकर ही किया जा सकता है। बाइक चलाते हुए, बस में बैठे, ट्रेन में सफर करते, कार में यात्रा करते, राह के किनारे, दुकान पर, ऑफिस में, बाजार में, घर में और बिस्तर पर लेटे हुए कहीं भी इस विधि को करते रहो और किसी को पता भी नहीं चलेगा कि आप ध्यान कर रहे हैं।
6. विपश्यना क्यों करें : शरीर और आत्मा के बीच श्वास ही एक ऐसा सेतु है, जो हमारे विचार और भावों को ही संचालित नहीं करता है बल्कि हमारे शरीर को भी जिंदा बनाए रखता है। श्वास जीवन है। ओशो कहते हैं कि यदि तुम श्वास को ठीक से देखते रहो, तो अनिवार्य रूपेण, अपरिहार्य रूप से, शरीर से तुम भिन्न अपने को जानने लगोगे। जो श्वास को देखेगा, वह श्वास से भिन्न हो गया, और जो श्वास से भिन्न हो गया वह शरीर से तो भिन्न हो ही गया। शरीर से छूटो, श्वास से छूटो, तो शाश्वत का दर्शन होता है। उस दर्शन में ही उड़ान है, ऊंचाई है, उसकी ही गहराई है। बाकी न तो कोई ऊंचाइयां हैं जगत में, न कोई गहराइयां हैं जगत में। बाकी तो व्यर्थ की आपाधापी है।
7. विपश्यना का लाभ : इसे तनाव हट जाता है। नकारात्मक और व्यर्थ के विचार नहीं आते। मन में हमेशा शांति बनी रहती है। मन और मस्तिष्क के स्वस्थ रहने से इसके असर शरीर पर भी पड़ता है। शरीर के सारे संताप मिट जाते हैं और काया निरोगी होने लगती है। इसके सबसे बड़ा लाभ यह कि यदि आप इसे निरंतर करते रहे तो आत्म साक्षात्कार होने लगता है और सिद्धियां स्वत: ही सिद्ध हो जाती है।
ओशो की किताब 'मरो हे जोगी मरो' को पढ़कर लिखा गया लेख।