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हिंदी भाषा में लक्ष्मी वृह‍द पूजन

सरल हिन्दी भाषा में लक्ष्मी का वृहद पूजन स्वयं करें

हमें फॉलो करें हिंदी भाषा में लक्ष्मी वृह‍द पूजन
- डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार
(अनुमानित समय- 50 मिनट)
ND

पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से अंत तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए। इससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे। श्री महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे वस्त्र अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें। अपने मस्तक पर (कुल परंपरा के अनुसार तिलक लगाएँ ) तिलक निम्न मंत्र बोलकर लगाएँ-

'चंदन धारण करने से नित्य पाप नाश होते हैं, पवित्रता प्राप्त होती है, आपदाएँ समाप्त होती हैं एवं लक्ष्मी का वास बना रहता है।'

(स्वयं के मस्तक पर चंदन या कुंकु से तिलक लगाएँ। )

पूजन हेतु वांछनीय जानकारियाँ
शुभ समय में, शुभ लग्न में पूजन प्रारंभ करें। (दीपावली पूजन की मुहूर्त तालिका पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

2. पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो। (पूजन सामग्री की सूची भी पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

3. सूर्य के रहते हुए अर्थात दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके एवं सूर्यास्त के पश्चात उत्तर की तरफ मुँह करके पूजन करना चाहिए।

4. महालक्ष्मी पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए।

5. पूजन सामग्री में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर

'मनसा परिकल्प समर्पयामि' बोलें।

6. गणेश पूजन हेतु पृथक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर कुंकु लगाकर एक कोरे लाल वस्त्र पर अक्षत बिछाकर, उस पर स्थापित कर गणेश पूजन करें।

पूजन प्रारं
1.पवित्रकरण :-
पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें-

'भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।'
(स्वयं पर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कें)

2. आचमन :-
दाहिने हाथ में जल लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ एक-एक बार आचमन करें-

1. ओम्‌ केशवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)
2. ओम्‌ माधवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)
3. ओम्‌ गोविन्दाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें)

पश्चात्‌ निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें-

ओम्‌ हृषिकेशाय्‌ नम-ह हस्त-म्‌ प्रक्षाल्‌-यामि।

3. दीपक :-
शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न मंत्र बोलते हुए कुंकु, अक्षत व पुष्प से दीप-देवता की पूजा करें-

'हे दीप! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नो के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।'

(गंध, पुष्प से पूजन कर प्रणाम कर लें)

4. स्वस्ति-वाचन :-
(निम्न मंगल मंत्रों का पाठ करें)

ॐ! हे अनादि अनंत परमवैभवयुक्त परमेश्वर इंद्र! आप हमें आशीर्वचन दो। हे संपूर्ण ज्ञान के स्रोत, विश्व के पालक सूर्य! आप हमारा कल्याण करो। हे संपूर्ण ब्रह्मांड में बहने वाली वायु! आप हमें अरिष्टों से बचाएँ। हे तत्वों के ज्ञानी! हमारी वाणी के स्वामी वृहस्पति! आप हमें शुभता प्रदान करें।

ॐ! हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें।

ॐ! हे परब्रह्म परमेश्वर! गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो। हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा! आप वही शांति मुझे प्रदान करें।

श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार।

संकल्प :-
दाहिने हाथ में जल, अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न वाक्यांश संकल्प हेतु पढ़ें-

(शास्त्रोक्त संकल्प के अभाव में निम्न संकल्प बोलें)

'आज दीपावली महोत्सव- शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ। इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।'

श्री गणेश पूजन

(अ) श्री गणेश का ध्यान व आवाहन-
श्री गणेशजी! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं। अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है। आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस याग (पूजन कर्म) की रक्षा भी करें।

(पुष्प, अक्षत अर्पित करें)

1. स्थापना- (अक्षत)
ॐ भूर्भुवः स्वः निधि बुद्धि सहित भगवान गणेश पूजन हेतु आपका आवाहन करता हूँ, यहाँ स्थापित कर आपका पूजन करता हूँ।

(अक्षत अर्पित करें)

2. पाद्य, आचमन, स्नान पुनः आचमन-
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेश आपकी सेवा में पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पुनः आचमन हेतु सुवासित जल समर्पित है। आप इसे ग्रहण करें।

(यह बोलकर आचमनी से जल एक तासक (तसली) में छोड़ दें)

3. पूजन-
लं पृथ्व्यात्मकं गंधम्‌ समर्पयामि ।
(कुंकु-चंदन अर्पित करें)
हं आकाशत्मक पुष्पं समर्पयामि ।
(पुष्प अर्पित करें)
यं वायव्यात्मकं धूपं आघ्रापयामि ।
(धूप अघ्र्रापित करें)
रं तेजसात्मकं दीपं दर्शयामि ।
(दीपक प्रदर्शित करें)
वं अमृतात्मकं नैवेद्यम्‌ निवेदयामि ।
(नैवेद्य निवेदित करें)
सं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि ।
(तांबूलादि अर्पित करें)

प्रार्थना :-
हे गणेश! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें।

नोट :- इसके पश्चात (1) षोडशमातृका पूजन (2) कलश पूजन तथा (3) नवग्रह पूजन किया जाता है। जो षोडशमातृका, कलश तथा नवग्रह पूजन करना चाहते हैं, वे यहाँ क्लिक करें।

अथवा महालक्ष्मी पूजन करें।

श्री लक्ष्मी पूजन-प्रारंभ

ध्यान एवं आवाहन-
(ध्यान एवं आवाहन हेतु अक्षत, पुष्प प्रदान करें)

परमपूज्या भगवती महालक्ष्मी सहस्र दलवाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। इनकी कांति शरद पूर्णिमा के करोड़ों चंद्रमाओं की शोभा को हरण कर लेती है। ये परम साध्वी देवी स्वयं अपने तेज से प्रकाशित हो रही हैं। इस परम मनोहर देवी का दर्शन पाकर मन आनंद से खिल उठता है। वे मूर्तमति होकर संतप्त सुवर्ण की शोभा को धारण किए हुए हैं। रत्नमय आभूषण इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पीतांबर पहन रखा है। इस प्रसन्न वदनवाली भगवती महालक्ष्मी के मुख पर मुस्कान छा रही है। ये सदा युवावस्था से संपन्न रहती हैं। इनकी कृपा से संपूर्ण संपत्तियाँ सुलभ हो जाती हैं। ऐसी कल्याणस्वरूपिणी भगवती महालक्ष्मी की हम उपासना करते हैं।

(अक्षत एवं पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें) पुनः अक्षत व पुष्प लेकर आवाहन करें-

हे माता! महालक्ष्मी पूजन हेतु मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारकर पूजन स्वीकार करें।

(अक्षत, पुष्प अर्पित करें)

आसन :- (अक्षत)
भगवती महालक्ष्मी! जो अमूल्य रत्नों का सार है तथा विश्वकर्मा जिसके निर्माता हैं, ऐसा यह विचित्र आसन स्वीकार कीजिए।

(आसन हेतु अक्षत अर्पित करें)

पाद्य :- (चंदन पुष्प युक्त पाद्य जल)
हे कमलालये! इस शुद्ध गंगाजल को सब लोग मस्तक पर चढ़ाते हैं। पाप रूपी ईंधन को जलाने के लिए यह अग्रि स्वरूप है। अतः सभी को इसे पाने की इच्छा लगी रहती है। आप इसे पाद्यरूप में स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपके चरणों में यह पाद्य जल अर्पित है।
(पाद्य जल देवी के चरणों में अर्पित करें)

अर्घ्य :- (गंध, पुष्प, क्षत आदि युक्त जल)
पद्मवासिनी! शंख में पुष्प, चंदन, दूर्वा आदि श्रेष्ठ वस्तुएँ तथा गंगाजल रखकर अर्घ्य प्रस्तुत है। इसे ग्रहण कीजिए।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपके हस्त में यह अर्घ्य जल अर्पित है।
(देवी के श्रीहस्तों में अर्घ्य अर्पित करें)

स्नान :- (हल्दी, केशर, अक्षतयुक्त जल)
श्री हरिप्रिये! यह उत्तम गंधवाले पुष्पों से सुवासित जल तथा सुगंधपूर्ण आमलकी चूर्ण शरीर की सुंदरता बढ़ाने का परम साधन है। आप इस स्नानोपयोगी वस्तु को स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपके समस्त अंगों में स्नान हेतु यह सुवासित जल अर्पित है।

(श्रीदेवी को स्नान कराएँ)

वस्त्र एवं उपवस्त्र :- (वस्त्र)
देवी! इन कपास तथा रेशम के सूत्र से बने हुए वस्त्रों को आप ग्रहण कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करता हूँ।

(श्रीदेवी को वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित हैं)

आभूषण :- (विभिन्न आभूषण एवं दर्पण)
देवी! यह आभूषण रत्न और सुवर्ण का रूप है। इसे धारण करने से शरीर की शोभा अतिशय बढ़ जाती है। यह संपूर्ण सुंदरता का परम कारण है, पहनते ही शोभा निखर उठती है, अतः परम सुशोभित होने के लिए आप इसे ग्रहण कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न आभूषण अर्पित हैं।
(आभूषण अर्पित करें)

चंदन :- (घिसा हुआ चंदन)
देवी! सुखदायी एवं सुगंधियुक्त यह चंदन सेवा में समर्पित है, स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ चंदन अर्पित है।

(चंदन अर्पित करें)

पुष्पमाला :- (पुष्पों की माला)
विविध ऋतुओं के पुष्पों से गूँथी गई, असीम शोभा की आश्रय तथा देवराज के लिए भी परम प्रिय इस मनोरम माला को स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न पुष्पों की माला अर्पित करता हूँ।

(कमल, लाल गुलाब के पुष्पों की माला अर्पित करें)

नाना परिमल द्रव्य :- (अबीर-गुलाल आदि)
देवी! यही नहीं, किंतु पृथ्वी पर जितने भी अपूर्व द्रव्य शरीर को सजाने के लिए परम उपयोगी हैं, वे दुर्लभ वस्तुएँ भी आपकी सेवा में उपस्थित हैं, स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न नाना परिमल द्रव्य अर्पित करता हूँ।

(अबीर, गुलाल आदि वस्तुएँ अर्पित करें)

दशांग धूप :- (सुगंधित धूप बत्ती जलाएँ)
श्रीकृष्णकांते! वृक्ष का रस सूखकर इस रूप में परिणत हो गया है। इसमें सुगंधित द्रव्य मिला दिए गए हैं। ऐसा यह पवित्र धूप स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ सुगंधित धूप अर्पित करता हूँ।

(सुगंधित धूप बत्ती के धुएँ को आध्रार्पित करें)

दीपक :- (घी का दीपक जलाकर हाथ धो लें)
सुरेश्वरी! जो जगत्‌ के लिए चक्षुस्वरूप है, जिसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता तथा जो सुखस्वरूप है, ऐसे इस प्रज्वलित दीप को स्वीकार कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ यह दीप प्रदर्शित है।

नैवेद्य :- (विभिन्न मिष्ठान व सूखे मेवे आदि)
देवी ! ये नाना प्रकार के उपहार स्वरूप नैवेद्य अत्यंत स्वादिष्ट एवं विविध प्रकार के रसों से परिपूर्ण है। इसमें विविध रस भरे हैं। कृपया इसे स्वीकार कीजिए। देवी! अन्न को ब्रह्मस्वरूप माना गया है। प्राण की रक्षा इसी पर निर्भर है। तुष्टि और पुष्टि प्रदान करना इसका सहज गुण है। आप इसे ग्रहण कीजिए। महालक्ष्मी! यह उत्तम पकवान शकर और घृत से युक्त एवं अगहनी चावल से तैयार हैं। इसे आप स्वीकार कीजिए। देवी! शर्करा और घृत में किया हुआ परम मनोहर एवं स्वादिष्ट स्वस्तिक नामक नैवेद्य है। इसे आपकी सेवा में समर्पित किया है। स्वीकार करें।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ नैवेद्य एवं सूखे मेवे आदि अर्पित हैं।
(नैवेद्य अर्पित कर, बीच-बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें) :-
1. ओम प्राणाय स्वाहा।
2. ओम अपानाय स्वाहा।
3. ओम समानाय स्वाहा।
4. ओम उदानाय स्वाहा।
5. ओम व्यानाय स्वाहा।

इसके पश्चात पुनः आचमन हेतु जल छोड़ें
'हे माता! नैवेद्य के उपरांत आचमन ग्रहण करें।'

निम्न बोलकर चंदन अर्पित करें
ॐ हे माता! करोदवर्तन हेतु चंदन अर्पित है।

ऋतुफल :- (केले, सेवफल, सिंगाड़े आदि)
अच्युतप्रिये! ये अनेक प्रकार के सुंदर पके हुए फल हैं तथा सुरभि गौ के स्तन से निकाला हुआ मृत्युलोक के लिए अमृतस्वरूप परम सुस्वादु दुग्ध है- इन पदार्थों को ग्रहण कीजिए।

ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ विभिन्न ऋतुफल आपकी सेवा में अर्पित हैं।
(विभिन्न प्रकार के ऋतुफल अर्पित करें)

ताम्बूल :- (पान का बीड़ा)
हे माता! यह उत्तम ताम्बूल कर्पूर आदि सुगंधित वस्तुओं से सुवासित है। यह जिह्वा को स्फूर्ति प्रदान करने वाला है, इसे आप स्वीकार कीजिए।
ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ ताम्बूल अर्पित है।
(पान का बीड़ा अर्पित करें)

दक्षिणा व नारियल :- (द्रव्य व नारियल)
'हे जगजननी! फलों में श्रेष्ठ यह नारियल एवं हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के गर्भ स्थित अग्नि का बीज यह स्वर्ण आपकी सेवा में अर्पित है। आप इन्हें स्वीकार करें। मुझे शांति व प्रसन्नता प्रदान करें।'

श्री महालक्ष्मी देवी आपको नमस्कार है। द्रव्य दक्षिणा एवं श्रीफल आपको अर्पित करता हूँ।
(श्रीफल दक्षिणा सहित अर्पित करें।)
आरती :- (कपूर की आरती)
'हे माता! केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर आपकी आरती हेतु जलाया गया है। आप इस आरती को देखकर मुझे वर प्रदान करें।'

श्री महाकाली देवी आपको नमस्कार है। कपूर निराजन आरती आपको अर्पित है।

(आरती उतारें, आरती लें व हाथ धो लें।)
(नोट :- महाआरती बाद में होगी। पहले नीचे बताए अनुसार पूजन करें।)

देहरी, दवात, कलम, बही-खाता, तिजोरी, तुला एवं दीपावली पूजन

देहरी (विनायक) पूजन
अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार, घर के प्रवेश द्वार के ऊपर घी में घुले हुए सिंदूर से-

''स्वस्तिक चिन्ह'', ''शुभ-लाभ'',
''श्री गणेशाय नमः''

इत्यादि मंगलसूचक शब्द लिखें। पश्चात्‌ स्वस्तिक चिन्हों पर निम्न मंत्र बोलकर कुंकु, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें-
'ॐ देहली विनायक आपको नमस्कार है।'

दवात (महाकाली) पूजन
दवात पर नाड़ा बाँधें, स्वस्तिक चिन्ह लगाएँ एवं महालक्ष्मी की दाहिनी ओर रखकर दवात में महाकाली की भावना करें।

'ॐ महाकाली आपको नमस्कार है।'
(जल के छींटे डालें, प्रणाम कर निम्न ध्यान बोलें)

तीन नेत्रों से शोभा पाने वाली भगवती महाकाली की मैं उपासना करता हूँ। वे अपने हाथों में खड्ग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिघ, शूल, भुशुण्डि, मस्तक और शंख धारण करती हैं। वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं। उनके शरीर की कांति नीलमणि के समान है तथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त हैं। कमलासन ब्रह्माजी ने मधु और कैटभ का वध करने के लिए इन महाकाली की उपासना की थी। उन महाकाली देवी का मैं ध्यान करता हूँ।

ध्यान के पश्चात्‌ गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें :-
'ॐ महाकाली आपको नमस्कार है'

निम्न प्रार्थना करें :-
हे जगन्माता कालिके ! तुम वन्दित होने पर भक्तों को सुख प्रदान करती हो एवं रोग इत्यादि हर लेती हो। माता ! जिस तरह तुम जन-जन के भय हर लेती हो, उसी तरह मुझे सौख्य प्रदान करो।'

लेखनी (कलम) पूजन
लेखनी (काली स्याही का पेन) पर नाड़ा बाँधकर सामने रखें। कुंकु, अक्षत से पूजन करें। निम्न मंत्र से प्रणाम करें-
ॐ लेखनी-स्थायै देवी आपको नमस्कार है।

जल छींटें, तत्पश्चात प्रार्थना करें :
'परम पिता ब्रह्मा ने आपको लोक हितार्थ निर्मित किया है। आप मेरे हाथों में स्थिर भाव से स्थित रहें।'

बही-खाता पूजन
नवीन बहियों एवं खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुंकु से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ। ऊपर 'श्री गणेशाय नमः' लिखें। साथ ही एक कोरी थैली में हल्दी की पाँच गाँठें, कमलगट्टा, अक्षत, दुर्वा, धनिया एवं द्रव्य रखकर, उस पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाएँ।

यहाँ पर भगवती, सरस्वती की भावना करके निम्न ध्यान बोलें-

'जो अपने कर कमलों में घंटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, कुन्द के समान जिनकी मनोहर कांति है, जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं, वाणी बीज, जिनका स्वरूप है तथा जो सच्चिदानन्दमय विग्रह से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूँ।'

ध्यान के पश्चात गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें व निम्न मंत्र बोलें-
'ॐ वीणा पुस्तक धारिणी सरस्वती आपको नमस्कार है।'

पश्चात निम्न प्रार्थना करें-
हे सर्वस्वरूपिणी! आपको नमस्कार है। हे मूल प्रकृति स्वरूपा एवं अखिल ज्ञान-सागर आप हमें सद्‍बुद्धि प्रदान करें।

तिजोरी पूजन
तिजोरी अथवा कीमती आभूषण व नकद द्रव्य रखे जाने वाली पेटी (संदूक) पर स्वस्तिक चिन्ह बनाकर शुभ-लाभ लिखें एवं धनपति कुबेर को प्रणाम कर पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रार्थना करें-

'हे धन प्रदान करने वाले कुबेर! आपको नमस्कार है, निधि के अधिपति भगवान कुबेर! आपकी कृपा से मुझे धन-धान्य, संपत्ति प्राप्त हो।'
तुला पूजन
सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बनाएँ, नाड़ा लपेटें एवं निम्न मंत्र बोलें :-

'तुला-अधिष्ठात्र देवता आपको नमस्कार है'
यह बोलकर गंध, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें एवं प्रार्थना करें-

'शक्ति एवं सत्य के देवता आपकी प्रसन्नता से हमें धन-धान्य संपत्ति की प्राप्ति हो।'

दीपमाला (दीपावली) पूजन
एक थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर ग्यारह या इक्कीस दीपक प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के सम्मुख रखें एवं निम्न मंत्र से गंध, अक्षत, धूप से पूजन करें-
'ॐ दीपावल्यै नमः'
इसके पश्चात गन्ना, सीताफल, साल की धानी, पतासे एवं ऋतुफल, दीपक के सम्मुख रखें, साथ ही श्री गणेश, महालक्ष्मी एवं अन्य देवताओं को भी अर्पित करें।

इसके पश्चात पूजित दीपकों को दुकान, घर के विभिन्न हिस्सों में सजाएँ।

महाआरती
कपूर एवं घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी की आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें।

(स्वयं व परिवार के सदस्य आरती लेकर हाथ धो लें।)



पुष्पांजलि :- (सुगंधित पुष्प हाथों में लेकर बोलें)
'हे माता! नाना प्रकार के सुगंधित पुष्प मैंने आपको पुष्पांजलि के रूप में अर्पित किए हैं। आप इन्हें स्वीकार करें व मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।'

ॐ! श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। पुष्पांजलि आपको अर्पित है।

(चरणों में पुष्प अर्पित करें)

प्रदक्षिणा :- (परिक्रमा करें)
'जाने-अनजाने में जो कोई पाप मनुष्य द्वारा किए गए हैं, वे परिक्रमा करते समय पग-पग पर नष्ट होते हैं।'

ॐ! श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। प्रदक्षिणा आपको अर्पित है।
(प्रदक्षिणा करें, दंडवत करें)

क्षमा प्रार्थना :-
'सबको संपत्ति प्रदान करने वाली माता! मैं पूजा की विधि नहीं जानता। माँ! मैं न मंत्र जानता हूँ न यंत्र। अहो! मुझे न स्तुति का ज्ञान है, न आवाहन एवं ध्यान की विधि का पता। मैं स्वभाव से आलसी तुम्हारा बालक हूँ। शिवे! संसार में कुपुत्र का होना संभव है किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती। माँ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी। महादेवी! मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं है। किन्हीं कारणों से तुम्हारी सेवा में जो त्रुटि हो गई हो उसे क्षमा करना। हे माता! ज्ञान अथवा अज्ञान से जो यथाशक्ति तुम्हारा पूजन किया है उसे परिपूर्ण मानना। सजल नेत्रों से यही मेरी विनती है।'

समर्पण :-
हे देवी! सुरेश्वरी! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो। मेरे निवेदन किए हुए इस पूजन को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे अभीष्ट की प्राप्ति हो।

ओम आनंद ! ओम आनंद !! ओम आनंद !!!

(लक्ष्मी पूजन विधि समाप्त)


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