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Dhanteras ki kahani in hindi: धनतेरस की कहानी क्या है हिंदी में

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WD Feature Desk

, बुधवार, 15 अक्टूबर 2025 (15:39 IST)
Stories of Dhanteras: दिवाली के पांच दिनों के उत्सव में धनतेरस का त्योहार पहले दिन आता है। कार्तिक माह के कृष्‍ण पक्ष की त्रयोदशी यानि तेरस के दिन यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि, यमराज और माता लक्ष्मी की पूजा होती है। धनतेरस से जुड़ी हुई कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन इनमें से मुख्य रूप से 4 कथाओं का उल्लेख प्रमुखता से मिलता है।
 
1. धनतेरस से जुड़ी भगवान धन्वंतरि की कथा:
धनतेरस की यह कथा सबसे प्रमुख है। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।
 
2. राजा बलि और वामन अवतार की कथा:
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन रूप में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगकर तीनों लोकों को वापस देवताओं को दिलाया था। इस कथा का संबंध भी धन-संपत्ति की पुनः प्राप्ति से है, इसलिए इसे धनतेरस से जोड़कर देखा जाता है।
 
धनतेरस से जुड़ी कथा है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन देवताओं के कार्य में बाधा डालने के कारण भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार, देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंच गए। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भी भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना। वामन साक्षात भगवान विष्णु हैं जो देवताओं की सहायता के लिए तुमसे सब कुछ छीनने आए हैं। 
 
बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान द्वारा मांगी गई तीन पग भूमि, दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। इससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग बंद हो गया।
 
वामन भगवान शुक्रचार्य की चाल को समझ गए। भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। शुक्राचार्य छटपटाकर कमण्डल से निकल आए। इसके बाद बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया। तब भगवान वामन ने अपने एक पैर से संपूर्ण पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग से अंतरिक्ष को। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं होने पर बलि ने अपना सिर वामन भगवान के चरणों में रख दिया। बलि दान में अपना सब कुछ गंवा बैठा। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिली और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुना धन-संपत्ति देवताओं को मिल गई। इस उपलक्ष्य में भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। 
 
3. यमराज और राजकुमार की कथा (यम दीपदान से संबंधित):
एक और प्रचलित कथा राजा हेम के पुत्र से जुड़ी है, जिसकी कुंडली में विवाह के चौथे दिन सर्पदंश से मृत्यु का योग था। उसकी पत्नी ने चौथे दिन घर के द्वार पर सोने-चांदी के आभूषण और सिक्कों का ढेर लगाकर, पूरी रात दीपक जलाए रखे।
 
जब यमदूत सर्प के रूप में आए, तो दीपकों के तेज और आभूषणों की चमक से उनकी आँखें चौंधिया गईं और वे राजकुमार के पास नहीं पहुँच पाए। यमराज ने वापस जाकर बताया कि वे उस घर में प्रवेश नहीं कर पाए। इस घटना के कारण अकाल मृत्यु का भय टला। इसीलिए धनतेरस पर यमराज के लिए दीपदान किया जाता है।
 
4. माता लक्ष्मी जी और किसान की कथा:
उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है। धनवंतरी के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए आ रहे थे तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया।
 
तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर आ गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं न आऊं तुम यहां ठहरो। मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए।
 
लक्ष्मी जी से रहा न गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं। आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं।
 
उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम न मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी। अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं।
 
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा। किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।
 
विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है ,यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं। तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा।

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