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उत्कर्ष का प्रतीक हैं दिवाली पर जगमगाते दीये

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दीप से दीप जले, मन से मिले मन 
प्रेम के प्रकाश से चहुंओर, दीपावली हो रौशन 

 
उत्सव और त्योहार भारतीय संस्कृति की युगों पुरानी परंपरा है और दीपावली इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण। जीवन में मिल-जुलकर आनंद पाना ही त्योहारों की मूल संवेदना है। इस दृष्टि से दीपावली हमारी संस्कृति की उच्च गरिमा से युक्त प्रकाश का महान सांस्कृतिक पर्व है। युगों से ज्ञान का यह आलोक प्रवाह कई सभ्यताओं को प्रदीप्त करता रहा है।

एक ओर जहां दीपावली बुराई पर अच्छाई की विजय तथा भाईचारे का पर्व है वहीं दूसरी ओर आशारूपी दीपों को प्रज्वलित कर निराशा और अंधकार को दूर भगाने की प्रवृत्ति का त्योहार भी है।

भारत में प्राचीन समय से दीपदान की परंपरा अंधकार पर प्रकाश की जीत की याद में समय की गति को पार करती हुई अनवरत चली आ रही है। दीप का अलौकिक सौंदर्य सभी अनुष्ठानों में निखरता रहा है। दीपावली शब्द का शाब्दिक अर्थ भी तो यही है 'दीपों की माला।'

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दीपावली की रात झिलमिलाते नन्हे-नन्हे दीप हमारे जीवन की नन्ही खुशियों के पर्याय तो हैं ही आस्था और सकारात्मकता के प्रतीक भी हैं। धर्म ग्रंथों में ईश्वर से प्रार्थना की गई है 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अर्थात मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाइए ! अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश ही दूर कर सकता है।

नन्हें दीपों से अपने घर उजियारे 
की दावत कर दो,
अमावस के काले आंचल को, दीपों के फूलों से भर दो।

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जगमगाता हुआ दीपक मानव के विकास की ऊंचाइयों का प्रतीक है। उससे फैलता प्रकाशपुंज जीवन की पवित्रता का प्रतीक है तो उस दीपक की जलती लौ मानव के नैतिक मूल्यों को जीने का आह्वान करती है। वहीं दीपक का तेल और बाती स्वयं जलकर मानव को रोशन होने की प्रेरणा देता है। दीपक का मर्म ही आत्मबोध का अहसास और उसके जाग जाने का विश्वास है। दीपक का प्रकाश नए को नवीन सृजन और पुराने के शोधन का प्रेरणा सूत्र है।

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