कार्तिक अमावस्या को समस्त हिन्दू समाज सारे भारत में समान रूप से धन की देवी महालक्ष्मी को पूजता है। लक्ष्मीजी के पूजन में स्फटिक के श्रीयंत्र का विशेष महत्व माना गया है। पढ़ें प्रमुख बातें ...
1. ईशान कोण में बनी बेदी पर लाल रंग के वस्त्र को बिछाकर लक्ष्मीजी की सुंदर प्रतिमा रखकर विराजित करें।
2. चावल व गेहूं की 9-9 ढेरी बनाकर, नवग्रहों का सामान बिछाकर व शुद्ध घी का दीप प्रज्वलित कर 1 या 5 खुशबूदार अगरबत्ती जलाकर, सुगंधित इत्रादि से चर्चित कर, गंध-पुष्पादि नैवेद्य चढ़ाकर इस मंत्र को बोलें-
।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरुवे नम: ।।
3. इस मंत्र के पश्चात इस मंत्र का जाप करें-
।। ॐ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमिसुतो बुधास्च गुरुस्च शुक्रः शनि राहू केतवे सर्वे ग्रह शांति करा भवन्तु ।।
4. इसके बाद आसन के नीचे कुछ मुद्रा रखकर ऊपर सुखासन में बैठकर सिर पर रूमाल या टोपी रखकर शुद्ध चित्त मन से इस मंत्र का जितना भी हो सके जाप करना चाहिए-
।। ॐ श्री हीं कमले कमलालये। प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।
5. महानिशिथ काल में लक्ष्मीजी का मंत्र जाप करने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं। इस बार महानिशिथ काल नहीं है, क्योंकि अमावस्या 23.09 तक ही है। 22.48.18 से निशिथ काल शुरू होकर 23.36.18 तक रहेगा। 23.09.00 तक अमावस्या रहने से मंत्र का जप भी इसी समय तक करें।