भारत में ऋग्वेदकाल से ही जुआ खेलने का प्रचलन रहा है। पहले यह चौरस के रूप में खेला जाता था परंतु वक्त के साथ यह बदलता रहा और जब ताश के पत्ते का अविष्कार हुआ तो यह इस रूप में भी खेला जाने लगा। कई लोग दीपावली के दिन तो कई लोग अन्नकूट महोत्सव के दौरान शगुन के रूप में जुआ खेलते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। आखिर क्यों खेलते हैं और क्या जुआ खेलना सही है या गलत?
मान्यता : अन्नकूट महोत्सव के दौरान शगुन के रूप में जुआ खेलने की परंपरा है। अन्नकूट पर्व को द्यूतक्रीड़ा दिवस भी कहते हैं। मान्यता अनुसार अन्नकूट महोत्सव के दिन जुआ खेला जाना चाहिए लेकिन कई लोग जानकारी नहीं होने के कारण दीपावली के दिन ही खेल लेते हैं। दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है। इसका मुख्य लक्ष्य वर्षभर के भाग्य की परीक्षा करना है।
कैसे हुई परंपरा की शुरुआत : इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। कथा है कि दिवाली के दिन भगवान शिव और पार्वती ने भी जुआ खेला था, तभी से ये प्रथा दिवाली के साथ जुड़ गई है। हालांकि शिव व पार्वती द्वारा दिवाली पर जुआ खेलने का ठोस तथ्य किसी ग्रंथ में नहीं मिलता।
जुए ने किया सभी को बर्बाद : महाभारत काल में भी पांडव और कौरवों के बीच में इसी दिन जुए का खेल हुआ था और पांडव इसमें कौरवों के छल कपट के आगे हार गए थे। इस जुए के कारण ही राजा नल अपने कपटी रिश्तेदारों के हाथों अपना राजपाट खो बैठे थे। बलराम ने भी दुर्योधन और शकुनि के साथ जुआ खेला था और वे हार गए थे। शकुनि की चाल के चलते बलराम ने सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करने की हां भर ली थी। एक बार बलरामजी रुक्मी के साथ भी जुआ खेले थे और रुक्मी ने जब उन्हें छल से हरा दिया था तो क्रोधित होकर बलराम ने रुक्मी का वध कर दिए जाने का उल्लेख कहीं कहीं मिलता है। कालांतर से यह देखा गया है कि जुए ने लोगों का जीवन बर्बाद ही किया है।
जुआ एक ऐसा खेल है जिससे इंसान तो क्या भगवान को भी कई बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। जुआ, सामाजिक बुराई होकर भी भारतीय मानस में गहरी पैठ बनाए हुए है। यह एक दुर्गुण ही है किन्तु अफसोस है कि लोग शास्त्रों में बताए गए सद्कर्मों संबंधी निर्देशों का पालन नहीं करते और दुर्गुण को तुरंत अपना लेते हैं। कानून जुआ खेलने की इजाजत नहीं देता। अत: शुभ दिन गलत कार्य करना उचित नहीं है। कई बार शगुन का खेल दुर्गुण में बदल जाता है।