महावीर स्वामी
जैन धर्म में दीपावली के दिन इंद्र, कुबेर वह लक्ष्मी की पूजा के अलावा महावीर स्वामी मूर्ति दर्शन और पूजा का भी खास महत्व है, क्योंकि इस दिन उनका निर्वाण हुआ था। परंतु इसी दिन उनके एक गणधर गौतम स्वामी को कैवल्य ज्ञान भी प्राप्त हुआ था।
दीपावली के दिन 527 ईसापूर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या की ही रात थी। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान महावीर के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को भी कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए दीप और रोशनी के त्योहार दिवाली को जैन धर्म में भी धूमधाम से मनाया जाता है। जैन ग्रंथों के मुताबिक महावीर भगवान ने दिवाली वाले दिन मोक्ष जाने से पहले आधी रात को आखिरी बार उपदेश दिया था जिसे 'उत्तराध्ययन सूत्र' के नाम से जाना जाता है। भगवान के मोक्ष में जाने के बाद वहां मौजूद जैन धर्मावलंबियों ने दीपक जलाकर रोशनी की और खुशियां मनाईं।
जैन धर्म के लिए यह त्योहार विशेष रूप से त्याग और तपस्या के त्योहार के तौर पर मनाया जाता है इसलिए इस दिन जैन धर्मावलंबी भगवान महावीर की विशेष पूजा करके उनके त्याग और तपस्या को याद करते हैं। दिवाली यानी वीर निर्वाणोत्सव वाले दिन सभी जैन मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।
गौतम स्वामी भगवान महावीर के प्रथम गणधर थे। उनका जन्म गोर्बर नामक ग्राम में ई.पूर्व 607 हुआ था। उनकी माता का नाम पृथ्वी देवी और पिता का नाम वसुभूति था जो ब्राह्मण समाज से थे और जिनका गोत्र गौतम था। उनका जन्म नाम इंद्र भूति था। उनकी वाणी को द्वदसाग रूप रचते थे। इसी कारण से उनका नाम गौतम स्वामी हुआ। उनके के दो भाई अग्निभूति, वायुभूति थे। कहते हैं कि 12 साल की उम्र में इंद्र भूति ने 4 वेद व 14 विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर दिलया था। इंद्रभूति अपने मस्तक पर 12 तिलक लगाते थे। एक दिन उनका महावीर स्वामी से मध्यम अपापापुरी में मिलन हुआ। उस वक्त महावरजी महासेन नामक उद्याम में विराजमान करते थे। वहीं उन्होंने इंद्रभूति की शंका का निवारण किया। तत्पश्तात इंद्रभूति ने अपने 500 शिष्यों सहित दीक्षा ले ली और गणधर पद पर आसीन हुए। दीक्षा के समय उनकी उम्र लगभग 50 वर्ष की थी। महावीर स्वामीजी उन्हें गोयम मा पयायए नाम से पुकारते थे।
भगवान ने जब आर्या चंदना को साध्वी संघ का प्रमुख बनाया था उसके पूर्व ही उन्होंने इंद्रभूति गौतम को गण का प्रमुख बनाकर जो अन्य दस प्रमुख शिष्य थे उन्हें संघ संचालन के लिए एक व्यवस्था देकर उन्हें उसका प्रमुख बना दिया था। गौतम स्वामी 30 वर्षो तक गणधर के पद पर आसीन रहे और उसके पश्तात उनको केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। वे 12 वर्ष तक केवलज्ञानी बने रहे इसके बाद उन्होंने ई.पूर्व.515 में मोक्ष प्राप्त किया। उस वक्त उनकी उम्र लगभग 92 वर्ष थी।