दीपावली के 5 दिनी उत्सव में माता कालिका की पूजा दो बार होती है। एक नरक चतुर्दशी पर जिसे काली चौदस कहते हैं और दूसरी दिवाली की अंधेरी रात को। काली पूजा खास उद्देश्य से की जाती है।
नरक चतुर्दशी : इस दिन को काली चौदस भी कहते हैं। काली चौदस की रात माता काली की पूजा होती है। दरअसल पूरे भारतवर्ष में रूप चतुर्दशी का पर्व यमराज के प्रति दीप प्रज्जवलित कर, यम के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए मनाया जाता है, लेकिन बंगाल में मां काली के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है, जिसके कारण इस दिन को काली चौदस कहा जाता है। इस दिन मां काली की आराधना का विशेष महत्व होता है। काली मां के आर्शिवाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफलता मिलती है।
दीपावली : भारत के अधिकतर राज्यों में दीपावली की अमावस्या पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस अवसर पर मां काली की पूजा होती है। यह पूजा अर्धरात्रि में की जाती है। पश्चिम बंगाल में लक्ष्मी पूजा दशहरे के 6 दिन बाद की जाती है जबकि दिवाली के दिन काली पूजा की जाती है।
क्यों करते हैं काली पूजा?
राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई जबकि इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी कुछ राज्यों में है। कहते हैं काली पूजा करने से संकटों का तुरंत ही समाधान हो जाता है।
काली पूजा का महत्व क्या है?
दुष्टों और पापियों का संहार करने के लिए माता दुर्गा ने ही मां काली के रूप में अवतार लिया था। माना जाता है कि श्रद्धापूर्वक मां काली के पूजन से जीवन के सभी दुखों का चमत्कारिक रूप से अंत हो जाता है। शत्रुओं का नाश हो जाता है। कहा जाता है कि मां काली का पूजन करने से जन्मकुंडली में बैठे राहू और केतु भी शांत हो जाते हैं। माता काली की पूजा या भक्ति करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं। वे अपने भक्तों को सभी तरह की परेशानियों से बचाती हैं।
सामान्य पूजा : दो तरीके से मां काली की पूजा की जाती है, एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है। माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है। पूजा की इस विधि में सुबह से उपवास रखकर रात्रि में भोग, होम-हवन व पुष्पांजलि आदि का समावेश होता है।
तंत्र पूजा : अधिकतर जगह पर तंत्र साधना के लिए मां काली की उपासना की जाती है।
मंत्र :
ॐ नमो काली कंकाली महाकाली मुख सुन्दर जिह्वा वाली,
चार वीर भैरों चौरासी, चार बत्ती पूजूं पान ए मिठाई,
अब बोलो काली की दुहाई।
इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करने से आर्थिक लाभ मिलता है। इससे धन संबंधित परेशानी दूर हो जाती है। माता काली की कृपा से सब काम संभव हो जाते हैं। 15 दिन में एक बार किसी भी मंगलवार या शुक्रवार के दिन काली माता को मीठा पान व मिठाई का भोग लगाते रहें।
देवी के समक्ष धूप : मुकदमे या कर्जे की समस्या हो तो नौ दिन देवी के समक्ष गुग्गुल की सुगंध की धूप जलाएं। सामान्य रूप से गुप्त नवरात्रि में देवी की कृपा के लिए नौ दिन देवी के सामने अखंड दीपक जलाएं व दुर्गा सप्तशती या देवी के मन्त्रों का जाप करें।
लक्ष्मी बंधन : यदि ऐसा लगता है कि किसी ने लक्ष्मी बांध रखी है तो माता कालीका को प्रतिदिन दो लकड़ी वाली (बांस वाली नहीं) अगरबत्ती लगाएं या एक धूपबत्ती लगाएं। प्रत्येक शुक्रवार को काली के मंदिर में जाकर पूजा करें और माता से प्रार्थना करें हर तरह के बंधन को काटने की।
शनिदोष से मुक्ति हेतु : शनिवार के सरसों के तेल, काले तिल, काली उड़द आदि लेकर माता कालीका का विवि विधान से पूजन करेंगे तो शनिदोष दूर होगा।