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दिवाली विशेष कविता : दीया

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संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'

दिये से बाती कह रही दीवाली आज है 
पटाखें बता रहे हों जैसे ये सरगमों का राज है
 
घर बन गए दूल्हे, गाड़ि‍यां बनी हो दुल्हनियां 
सजी है द्वारे-द्वारे उनके लिए रंगोलियां आज है
 
आकाश में लगते चांद-सितारों से दिये खास है 
दीयों का जमीं पर जलने का भी तो एक राज है
 
माना कि रौशनी से भागता है दु:खों का अंधेरा 
दीयों की रोशनी में शुभकामनाएं देने का यही तो रिवाज है
 
टिमटिमाते हुए दीयों से घर-घर में रोशनी है 
धरा पर खुशियां मनाती दिवाली का हमको नाज है


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