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तमसो मा ज्योतिर्गमय

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हिंदू धर्म में हर तरह के उत्सवों को महत्व दिया गया है। होली जहाँ रंगों का त्योहार है तो दीपावली प्रकाश पर्व है। दीपों की पंक्ति को दीपावली कहते हैं। यह पर्व हमें संदेश देता है कि हम अमावस्या की रात्रि में भी प्रकाश का उत्सव मनाएँ। अंधकार को छोड़कर प्रकाश की ओर चलें।

जीवन में कितना ही घना अंधियारा हो, प्रकाश की चाह कभी न छोड़ें। एक टिपटिमाता दीपक भी अनंत दूर तक फैले अंधकार को मिटाने की ताकत रखता है। प्रार्थना, आशा और उत्साह का एक दीपक जलाएँ और जीवन को प्रकाश से भर दें, यही संदेश देता है दीपोत्सव।

दीपावली हिंदू ही नहीं जैन, बौद्ध और सिख धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण त्योहार है इसलिए यह त्योहार हमारी सांस्कृतिक एकता का आधार भी है। दीपावली के ‍दिन जहाँ भगवान राम लंका से अयोध्या लौट आए थे वहीं इसी दिन भगवान महावीर को कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसी दिन कृष्ण ने नरकासुर का वध कर लोगों को अत्याचार के अंधकार से मुक्त कराया था। इसी दिन ही अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था और इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंघजी को जेल से रिहा किया गया था।

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चमक और दमक : दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। दीपावली के पूर्व ही दुकान और घर की दीवारों को साफ-सुथरा कर रंगों से पोत दिया जाता है। पारंपरिक रंगोली और मिठाइयाँ बनाई जाती हैं। बाजार, मोहल्ले और गलियों में रोशनी की जाती है। नए वस्त्र सिलवाए जाते हैं। बाजारों में चमक और दमक लौट आती है। धनतेरस के दिन से ही बरतन, कपड़ों और पटाखों की दुकानों पर विशेष चमक दिखाई देती है। रंग-बिरंगी फुलझड़ी, आतिशबाजी व अनारों के जलने से चमक उठता है पूरा शहर।

दीपक और धमाका : धनतेरस से ही तुलसी, घर के द्वार और दीवारों पर दीपक जलाए जाते हैं। पूरा मोहल्ला और शहर दीपकों और छोटे-छोटे बल्बों की रोशनी में डूब जाता है। स्थान-स्थान पर आतिशबाजियों और पटाखों की दुकानें सजी होती हैं। छिट-पुट धमाकों के साथ दीपावली के दिन पटाखों का धमाका बढ़ जाता है। कई लोग तो इन धमाकों से डरते हैं तो कई लोग अतिउत्साह के चलते हाथ, पैर या आँखें जला बैठते हैं। धीरे का धमाका कभी-कभी इतनी जोर से लगता है कि जिंदगीभर पछताना भी पड़ता है।

अमीर या गरीबों की दीपावली : कहते हैं कि दीपावली तो अमीरों की ही होती है, गरीबों के लिए तो होली है। अधिकतर गरीबों में यह बात प्रचलित है, जबकि ऐसा नहीं है। बाजारवाद के चलते अब प्रत्येक त्योहार को महँगा कर दिया गया है। पहले जब त्योहार मनाया जाता था तो माँडने माँडे जाते थे, अब रंगोली का प्रचलन हो चला है। पहले सिर्फ दीपक लगाते थे, अब महँगी लाइटिंग की जाती है। पहले सिर्फ घर में बनाए जाने वाले मीठे पकवान या मिठाइयाँ ही लोग एक-दूसरे के घर में बाँटते थे, अब बाजार से महँगी मिठाइयाँ लाई जाती हैं।

त्योहार तो वही है लेकिन बाजार ने उसे महँगा कर दिया है, इसलिए यह कहना गलत है कि यह त्योहार सिर्फ अमीरों के लिए है। यह कपड़े की सफेदी की चमक या पटाखों के धमाकों का त्योहार नहीं है, यह सिर्फ दीपोत्सव है अर्थात प्रकाश पर्व। इसे प्रकाश के माध्यम से ही खुश रहकर मनाया जाना चाहिए। यह त्योहार जीवन में सब कुछ नया कर देने का त्योहार है। घर, दुकान, बहीखाते और मन सब कुछ साफ-सुथरा कर प्रकाश से भर दें।

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