Biodata Maker

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

उबासी लेना है अच्छे संकेत

डॉ. नरेश पुरोहित

Advertiesment
हमें फॉलो करें सेहत
WDWD
एक बड़ी सामान्य सी प्रक्रिया है- उबासी लेना। इसे सामान्य तौर पर नींद या आलस्य के साथ जोड़ा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को कुछ अलग तरीके से परिभाषित करते हैं? कैसे, आइए जानें-

उबासी अपने विशिष्ट लक्षणों के साथ आशाओं का नया आश्चर्यलोक खोल रही है। उन वैज्ञानिकों को इससे बेहद उम्मीदें हैं जो मानव व्यवहार की तंत्रिका प्रक्रियाओं में रुचि रखते हैं। उबासी का सबसे विलक्षण पहलू है- उसकी संक्रमणकारी योग्यता।

उबासी इस कदर संक्रामक है कि मात्र इसके बारे में पढ़ने या सोचने से ही यह चारों ओर फैल जाती है। उबासी के भावों को सेक्स के चरम सुख को प्राप्त करने व छींक से मिलान करके उनके अन्तरसंबंधों का अध्ययन जारी है। वैज्ञानिक मानते हैं कि उबासी से क्रियाओं की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।

   उबासी के साथ अंगड़ाई का आना या शरीर में खिंचाव वैज्ञानिकों हेतु एक अजूबे से कम नहीं है। वैज्ञानिक इसे लेकर दिमाग के दौरे (स्ट्रोक) के पीड़ितों के उपचार में नई किरण की उम्मीद कर रहे हैं।      
इनमें यूस्टेचियन ट्यूब का खुलना, आँसुओं का निकलना, फेफड़ों का फूलना एवं सुस्ती का लोप होना प्रमुख है। बहरहाल, चिकित्सा के क्षेत्र में उबासी के इन सभी पहलुओं का विश्लेषण 'ऑटिज्म स्कित्जोफ्रेनिया' एवं दिमाग को क्षति पहुँचाने वाले अन्य रोगों के कारण जानने हेतु हो रहा है।

उबासी के संक्रामकता के गुण ने वैज्ञानिकों को एक अवसर दे दिया है कि वे सामाजिक व्यवहार के तंत्रिका प्रणाली से जुड़े बिंदुओं की पड़ताल कर सकें। यह निष्कर्ष वे निकाल चुके हैं कि उबासी रीढ़धारी प्राणियों में बहुत पहले से मौजूद है पर इसकी संक्रामक योग्यता बाद में पैदा हुई है।

   उबासी के साथ अंगड़ाई का आना या शरीर में खिंचाव वैज्ञानिकों हेतु एक अजूबे से कम नहीं है। वैज्ञानिक इसे लेकर दिमाग के दौरे (स्ट्रोक) के पीड़ितों के उपचार में नई किरण की उम्मीद कर रहे हैं।      
उबासी व्यक्ति के व्यवहार में अचानक पैदा होने वाले परिवर्तन को दर्शाती है- जागृत अवस्था से नींद की तरफ बढ़ने का, नींद से जगने का, किसी प्रतिक्रिया का पूर्व संकेत व कामुकता के उभार का संकेत।

यह एक गतिविधि से दूसरी गतिविधि की ओर जाने का प्रकृति की ओर से सूक्ष्म इशारा है। मनुष्य दूसरे रीढ़धारी प्राणियों की तरह ही उबासी लेता है, स्तनधारी जंतुओं के अलावा भी ज्यादातर रीढ़धारक उबासी लेते हैं। इनमें साँप, मछली, कछुए, शेर एवं पक्षी शामिल हैं। अंतर केवल इतना है कि मनुष्य में उबासी की बुनियाद बहुत पुरानी है।

उबासी का जन्म प्रसव से पहले भ्रूण विकास की पहली तिमाही के अंत में ही हो जाता है। एक औसत उबासी अमूमन 6 सेकंड में अपनी दौड़ पूरी कर लेती है। फिर भी उबासी की अवधि साढ़े तीन सेकंड से लेकर औसत उबासी के समय से कहीं ज्यादा लंबी भी हो सकती है। रोचक यह है कि उबासी कभी भी आधी-अधूरी नहीं होती।

इसी से पता चलता है कि उबासी जैसी स्थायी क्रियाओं की विशिष्ट गति होती है एवं उनका दम नहीं घोटा जा सकता। उबासियाँ समूह में आती है और उनके आने की अवधि में 68 सेकंड के अंतराल का उतार-चढ़ाव रहता है।

उबासी केवल साँस की राह में आवागमन एवं जबड़ों का खुलना भर ही नहीं है। इसके साथ तंत्रिका, हृदय क्षेत्र व ऊतक क्षेत्र तथा साँस संबंधी प्रणालियों पर भी इनका प्रभाव पड़ता है। संभवतः उबासी कई अलग-अलग व्यवहारों के जिम्मेदार कारकों के साथ अपनी भूमिका निभाती है। उबासी शरीर के भीतर 'एंड्रोजन' एवं 'ऑक्सीटोसिन' से प्रारंभ होती है और फिर यह अन्य सेक्स संबंधी कारकों/ हार्मोन्स तथा गतिविधियों से जाकर जुड़ती है।

उबासी के साथ अंगड़ाई का आना या शरीर में खिंचाव वैज्ञानिकों हेतु एक अजूबे से कम नहीं है। वैज्ञानिक इसे लेकर दिमाग के दौरे (स्ट्रोक) के पीड़ितों के उपचार में नई किरण की उम्मीद कर रहे हैं। जाने-माने ब्रिटिश न्यूरोलॉजिस्ट सर फ्रांसिस वॉल्श बहुत पहले इस सिलसिले में एक प्रयोग कर चुके हैं। उन्होंने पाया कि स्ट्रोक के पीड़ितों को जब भी उबासी आती है तो उनकी लकवाग्रस्त बाजू स्वयं ही उठती एवं फड़कती है।

न्यूरोलॉजिस्ट इसे अपनी भाषा में 'एसोसिएटेड रिस्पांस' (सहायक प्रतिक्रिया) कहते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लकवाग्रस्त अंग को घेरी हुई मस्तिष्क एवं मेरूदंड की मोटर प्रणाली के बीच के बेकार होने से बच गए व अचेतन ढंग से नियंत्रित होने वाले संपर्कों को उबासी ने जागृत कर दिया। इसलिए ऐसा होता है। कुल मिलाकर यह प्रक्रिया वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का चमत्कारी व संभावनाओं से भरा विषय बन चुकी है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi