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कान की बीमारियों को जानें

खतरनाक हो सकती है लापरवाही

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हमें फॉलो करें कान बाहरी कान कॉर्टीलेज कान की चमड़ी बीमारियाँ
डॉ. माधवी पटेल
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कान की बीमारियों को समझने के लिए हमें बाहरी कान की संरचना समझना आवश्यक है :

बाहरी कान के दो भाग होते हैं
कान या पिन्ना जो हमें दिखता है और उसकी बनावट हमारे चेहरे के अनुसार आनुवांशिक गुणों पर आधारित होती है, यह एक कॉर्टीलेज है जिस पर एक झिल्ली होती है एवं ऊपर चमड़ी, परंतु यहाँ चर्बी की परत नहीं होती। कान की नली जो साधारणतया 2.5 से.मी. लंबी होती है, इसके अंदर के सिरे पर परदा होता है। यह नली घुमावदार होती है, यहाँ पर चमड़ी बहुत पतली होती है उसमें कई बाल एवं कुछ ग्रंथियाँ होती हैं जो सेरूमेन नामक पदार्थ बनाती हैं। साधारणतया कान की चमड़ी बाहर की तरफ बढ़ती है, अतः मैल आदि को बाहर फेंकती जाती है।

बाहरी कान में होने वाली बीमारिया
* कान में चोट लगन
बाहर के कान में कट जाना, खून जम जाना या नली में फ्रेक्चर आदि। इससे कान में अत्यधिक दर्द होता है, क्योंकि यहाँ की चमड़ी कान के कॉर्टीलेज से चिपकी हुई होती है।
* फ्रोस्ट बाइ
अत्यधिक ठंडे प्रदेशों में यह तकलीफ होती है, क्योंकि यहाँ की खून की नलियों पर चर्बी का सुरक्षा कवच नहीं होता है, कान में खून का दौरा कम हो जाता है, मगर यह लंबे समय तक हो तो कान के ऊतक सड़ जाते हैं। इस भाग को धीरे-धीरे गर्म किया जाता है व खराब ऊतकों को निकालकर दवाई लगाई जाती है।
* फॉरेन बॉड
अर्थात कान में कीड़ा, मोती, चना, गेहूँ अन्य वस्तुओं का चले जाना या डाला जाना। कई बार बच्चे खेलते-खेलते छोटी-छोटी वस्तुओं को कान में डाल लेते हैं। उन्हें विशेष औजारों द्वारा निकाला जाता है। अगर वस्तु अधिक अंदर हो तो बच्चे को बेहोश कर दूरबीन द्वारा भी इसे निकाल सकते हैं। कई बार सीरिजिंग द्वारा भी निकाल सकते हैं। अगर कीड़ा, मच्छर, झिंगूर, कान में गया हो तो कान में कुछ बूँद तेल डालने से कीड़ा मर जाता है, क्योंकि उसे ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और फिर उसे आसानी से निकाला जा सकता है।
*कान के संक्रम
कान के खुजलाने से पीन, काड़ी, चाबी से खुरचने से या कान छेदने की असुरक्षित पद्धति से कान में संक्रमण हो सकता है। कुछ वस्तुएँ जैसे क्रीम, इत्र कान में उपयोग में आने वाली दवाइयों की एलर्जी से भी संक्रमण होता है। कान लाल हो जाता है, खुजली आती है एवं दर्द हो सकता है। ऐसे मरीजों को इन चीजों का उपयोग न करने की सलाह दी जाती है।

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* कान में फुँसी होना (फरंकल)
यह एक या अनेक हो सकती है। तीव्र दर्द, सुनाई देने में तकलीफ एवं बुखार इसके लक्षण हो सकते हैं। दवाइयाँ, दवाई की पट्टियाँ लगाने से एवं कभी चीरा लगाकर मवाद निकाला जाता है।
* कान की नली में संक्रम
कान की नली में संक्रमण का कारण पानी भी हो सकता है। पानी बारिश या स्विमिंग पूल का हो दोनों ही स्थिति में कान का संक्रमण जिसे ऑटायरीस राक्स्टर्ना कहते हैं। यह गरम एवं गीले मौसम में, मधुमेह पीड़ितों में या कान में ईयर फोन लगाकर रखने से भी हो सकता है। ऐसी स्थिति में कान को सूखा रखा जाना चाहिए। तैरते समय ईयर प्लग का इस्तेमाल करना चाहिए।
* हर्पिज झूस्ट
यह एक वायरस द्वारा होने वाला संक्रमण है। यह शरीर के किसी भी भाग में हो सकता है। कान पर होने से कान एवं आसपास लाल फुँसियाँ उभर आती हैं, जिनमें अत्यधिक दर्द होता है। नस में बीमारी फैलने पर श्रवण क्षमता प्रभावित होती है एवं चेहरे का लकवा भी हो सकता है। एंटीवायरल दवाइयाँ, क्रीम, दर्द निवारक द्वारा इसे ठीक किया जाता है।
*मैल, वेक्स या सेरूमे
कान से मैल अपने आप न निकल पाने की स्थिति में मैल जम जाता है। जिस पर तेल, धूल, धुआँ, कचरा आदि हो तो यह कड़क हो जाता है। तब इसे निकालना जरूरी होता है। कुछ दवाइयाँ जो मैल को नर्म करती हैं, उन्हें डालकर मैल आसानी से निकाला जाता है। पानी से धोकर भी मैल निकाला जा सकता है, बशर्ते कान के पर्दे में छेद न हो और अन्य कोई संक्रमण न हो।
*पेरीकॉन्ड्रायटीस या कॉन्ड्रायटी
अपने कान के कॉर्टीलेज एवं उसके ऊपर की झिल्ली का संक्रमित होना। कान लाल, सूजा हुआ दिखता है। पानी जैसा द्रव बह सकता है एवं संक्रमण गाल, गले आदि पर फैल भी सकता है। अत्यधिक दर्द होता है। तुरंत इलाज के द्वारा इसे ठीक करना चाहिए क्योंकि बार-बार ऐसा संक्रमण होने पर कान का कॉर्टीलेज गद्देदार हो जाता है। इसे कॉलीफ्लावर ईयर कहते हैं। कॉर्टीलेज में चोट अधिकतर मुक्केबाजी करने वाले लोगों में होती है।
* नेक्रोटाइसिंग मेंलीगनेंट ऑटायटिस
अर्थात कान की नली का अत्यंत खतरनाक संक्रमण। यह ज्यादातर मधुमेह से पीडि़तों को होता है। फंगल ऑटायटिस अर्थात कान में फफूँद द्वारा संक्रमण होना। बारिश के मौसम में यह संक्रमण अधिक होता है। कान में खुजलाने पर, पानी जाने पर या पहले से संक्रमित कान में यह संक्रमण अधिक होता है। इसके अलावा मधुमेह से पीडित व्यक्ति,एड्स के मरीज एवं ऐसे मरीज जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है, उनमें यह अधिक होता है। इसमें बहुत अधिक दर्द होता है। कान से गीले अखबार जैसे दिखने वाली फफूँद निकलती है। यह ज्यादातर इसे कान की एंटी फंगल दवाइयों एवं दर्द निवारक से ठीक किया जाता है।
* जलन
शरीर के जलने से कान भी जल जाते हैं। परंतु कान के घाव बहुत धीरे भरते हैं।

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