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क्यों होता है यह दर्द

दर्द : एक अहम विश्लेषण

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-सेहत डेस्
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दुनिया में कौन ऐसा मनुष्य होगा, जिसने शरीर में कभी किसी प्रकार के दर्द का अनुभव न किया हो, सैकड़ों, हजारों नहीं बल्कि लाखों किस्में हैं दर्द की। शारीरिक, मानसिक से लेकर बढ़ती उम्र, न जाने दर्द के कितने पड़ाव हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि इस इतने आम मर्ज की आज तक कोई निश्चित दवा नहीं बन सकी।

चिकित्सा विज्ञान अपने इतने विकास के बावजूद अभी भी दावे से यह नहीं कह सकता कि आखिर दर्द क्यों होता है? या कि क्या सचमुच इसकी कोई सुनिश्चित प्रभाव वाली दवा हो सकती है?

सच्चाई तो यह है कि वैज्ञानिक ज्यों-ज्यों दर्द के बारे में गहराई से जानने की कोशिश कर रहे हैं, त्यों-त्यों दर्द का रहस्य गहराता जा रहा है। वैज्ञानिक अभी तक वह अचूक वजह नहीं चिह्नित कर पाए, जिसकी वजह से शरीर अनगिनत प्रकार के दर्दों की चपेट में आ जाता है।

हर साल पूरी दुनिया में 22 से 25 करो़ड़ लोग किसी न किसी दर्द से पीड़ित होकर डॉक्टर की शरण में जाते हैं, लेकिन चिकित्सा वैज्ञानिकों का मानना है कि डॉक्टरों के पास दर्द को खत्म करने की कोई रामबाण दवा नहीं होती।

वे तो अक्सर दर्द को इधर-उधर भर कर देते हैं। चिकित्सा विज्ञानी इस बात को खोज कर रहे हैं कि दर्द आखिर क्यों होता है और मजबूत से मजबूत शरीर दर्द में कराह क्यों उठता है।

कुछ साल पहले सिएटल (अमेरिका) के एनस्थेसिस्ट जॉन बोनिका जो कि 'इंटरनेशनल एसोसिएशन फार द स्टडी ऑफ पेन' के संस्थापक तथा पीड़ा के बारे में अनुसंधान करने वाले एक विश्वविख्यात मेडिकल वैज्ञानिक हैं, ने कहा था- 'पुराना दर्द कैन्सर या हृदय रोग की तुलना में लोगों को कहीं अधिक अपाहिज बना देता है।' हर साल दर्द पीड़ित लोगों के इलाज में 10 खरब रुपए से ज्यादा खर्च होते हैं।

डॉक्टरों के पास मरीजों की जितनी शिकायतें आती हैं, उनमें 40 प्रतिशत से ज्यादा केवल दर्द की होती हैं और दुनिया में हर साल जितनी दवाएँ बिकती हैं, उनमें 25 प्रतिशत से ज्यादा सिर्फ दर्द निवारण की होती हैं। इस सबके बावजूद दर्द को लेकर चिकित्सा विज्ञान का ज्ञान बहुत विकसित नहीं है।

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अभी विशेषज्ञ इसी तथ्य पर अनुसंधान कर रहे हैं कि दर्द आखिर क्यों होता है। पिछले 20-25 सालों में वैज्ञानिकों ने इस संबंध में अभी तक जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे कुछ इस प्रकार हैं-

* मनुष्य के शरीर में होने वाले दर्द की तीव्रता इस बात की सूचक है कि शरीर में कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है।

* दर्द एक तरह से शरीर के लिए अलार्म का काम करता है। दर्द से हमें अपने स्वास्थ्य को लेकर सचेत हो जाना चाहिए।

* दर्द से यदि हम चल-फिर न पाने के लिए मजबूर होते हैं तो यह चल-फिर न पाना हमारे शरीर को आराम पहुँचाने के लिए जरूरी होता है।

* जब शरीर के किसी हिस्से में चोट लगती है तो उस हिस्से में जमा शारीरिक रसायनों में विक्षोभ होता है और यही विक्षोभ मस्तिष्क तक पीड़ा का संदेश प्रचारित करता है।

* मस्तिष्क को पीड़ा का संदेश शरीर में मौजूद 'पी' नामक तत्व देता है।

* शरीर में प्रोस्टेग्लैंडिन (विविध प्रकार के ऊतकों और शरीर के द्रव-पदार्थों में विद्यमान हारमोन जैसे तत्वों का समूह) तथा ब्रैडिकिनिन (एक बहुत ही शक्तिशाली वैसोडिलेटर, जिससे नरम मांसपेशियाँ सिकु़ड़ जाती हैं) तत्व है, जिनकी वजह से हम पीड़ा का अनुभव करते हैं।

* मनुष्य की जानकारी में ब्रैडिकिनिन शायद सबसे अधिक पीड़ादायक तत्व है। अगर सुई के जरिये इसकी मामूली सी मात्रा भी त्वचा में पहुँचा दी जाए तो असह्य पीड़ा होने लगती है।

* एस्पिरिन या इबुप्रोफेन जैसी दर्दनिवारक गोलियाँ दरअसल इसलिए पीड़ा से राहत पहुँचाती हैं, क्योंकि ये शरीर में पैदा होने वाले प्रोस्टेग्लैंडिन की मात्रा कम कर देती हैं।

* वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि जब दर्द में 'हाय' या 'आह' निकलती है तो इस 'हाय' शब्द से थोड़ी राहत मिलती है, क्योंकि यह दर्द के मस्तिष्क से होकर लौटने का सूचक होती है।

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* दर्द के समय अँगूठों को रगड़ने से थोड़ी राहत इसलिए मिलती है, क्योंकि इससे मस्तिष्क में एक साथ अनेक सूचनाएँ पहुँचने लगती हैं और दर्द की संवेदी सूचनाओं के लिए दरवाजा बंद हो जाता है।

* दर्द की कम और ज्यादा जैसी स्थिति के लिए यह बात महत्वपूर्ण होती है कि दर्द को लेकर किसी व्यक्ति की अनुभूति कैसी है? भय, चिंता और तनाव के चलते कोई व्यक्ति मामूली से दर्द को भी बहुत भारी महसूसने लगता है।

* अगर किसी रोगी को यह विश्वास दिला दिया जाए कि वह स्वस्थ हो जाएगा तो उसका दर्द या तो गायब हो जाएगा या कम हो जाएगा। विश्वास दर्द की अनुभूति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि डॉक्टर किसी मरीज को विश्वास में लेकर कोई झूठी दवा भी दे दे तो दर्द दूर हो जाता है।

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