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क्‍या है थैलेसीमिया ?

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हमें फॉलो करें हीमोग्लोबीन थैलेसीमिया आनुवांशिक
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- डॉ. इकबाल मोद

यह आनुवांशिक रोग जितना घातक है, इसके बारे में जागरूकता का उतना ही अभाव है। सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, परंतु थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है। इसका सीधा प्रभाव शरीर में स्थित हीमोग्लोबीन पर पड़ता है। हीमोग्लोबीन की मात्रा कम हो जाने से शरीर दुर्बल हो जाता है तथा अशक्त होकर हमेशा किसी न किसी बीमारी से ग्रसित रहने लगता है।

थैलेसीमिया नामक बीमारी प्रायः आनुवांशिक होती है। इस बीमारी का मुख्य कारण रक्तदोष होता है। यह बीमारी बच्चों को अधिकतर ग्रसित करती है तथा उचित समय पर उपचार न होने पर बच्चे की मृत्यु तक हो सकती है।

सामान्यतः एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या 45 से 50 लाख प्रति घन मिलीलीटर होती है। लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में होता है। इन कोशिकाओं में केंद्रक नहीं होते हैं एवं इनकी जीवन अवधि 120 दिनों तक ही सीमित होती है। हीमोग्लोबीन की उपस्थिति के कारण ही इन कोशिकाओं का रंग लाल दिखाई देता है।

लाल रक्त कोशिकाएँ शरीर में श्वसन गैसों- ऑक्सीजन और कार्बन डाई ऑक्साइड का परिवहन करती हैं। हीमोग्लोबीन में ऑक्सीजन से शीघ्रता से संयोजन कर अस्थायी यौगिक ऑक्सीहीमोग्लोबीन बनाने की क्षमता होती है। यह निरंतर अपनी क्रियाओं द्वारा फेफड़े की वायु में मौजूद ऑक्सीजन को श्वसन संस्थान तक पहुँचाते रहकर मानव को जीवनदान देता रहता है।

इस बीमारी के शिकार बच्चों में रोग के लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में ही नजर आने लगते हैं। बच्चे की त्वचा और नाखूनों में पीलापन आने लगता है। आँखें और जीभ भी पीली पड़ने लगती हैं। उसके ऊपरी जबड़े में दोष आ जाता है। आँतों में विषमताएँ आने लगती हैं तथा दाँतउगने में काफी कठिनाइयाँ होने लगती हैं। बच्चे की त्वचा पीली पड़ने लगती है। यकृत और प्लीहा की लंबाई बढ़ने लगती है तथा बच्चे का विकास एकदम रुक जाता है।

अगर माता-पिता ैलेसीमिया माइनर रोग से ग्रस्त हैं, तब बच्चों को इस बीमारी की आशंका अधिक रहती है। अगर माता-पिता में किसी एक को यह रोग है तो उनके बच्चे को ैलेसीमिया मेजर होने की आशंका नहीं रहती। माइनर का शिकार व्यक्ति सामान्य जीवन जीता है औरउसे कभी इस बात का आभास तक नहीं होता कि उसके खून में कोई दोष है। शादी के पहले अगर पति-पत्नी के खून की जाँच हो जाए तो शायद इस आनुवांशिक रोगग्रस्त बच्चों का जन्म टाला जा सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस रोग से ग्रसित बच्चे को बचाने के लिए औसतन तीन सप्ताह में एक बोतल खून देना अनिवार्य हो जाता है।

थैलेसीमिया से बचने के उपा

* रक्त परीक्षण करवाकर इस रोग की उपस्थिति की पहचान कर लेनी चाहिए।

* शादी करने से पूर्व लड़का एवं लड़की के रक्त का परीक्षण अवश्य करवा लेना चाहिए।

* नजदीकी रिश्ते में शादी-विवाह करने से परहेज रखना चाहिए।

* गर्भधारण के चार महीने के अंदर भ्रूण का परीक्षण कराना चाहिए।

* भ्रूण में ैलेसीमिया के लक्षण पाते ही डॉक्टर गर्भपात करवाने की सलाह देते हैं।

* इस रोग के उन्मूलन के लिए सजगता एवं चेतना की आवश्यकता होती है, अतः अपने बच्चे को इन लक्षणों से युक्त पाते ही चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के चिकित्सकों से जाकर अतिशीघ्र मिलना चाहिए।

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