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जरूरी है फ्रेक्चर के बाद फिजियोथैरेपी

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हड्डी टूटने के बाद उसे प्लास्टर में जकड़ कर लंबे समय तक रखा जाता है। हड्डी जुड़ने के बाद अंग को पूर्वावस्था में काम करने योग्य बनाने में फिजियोथेरेपिस्ट कारगर भूमिका निभाते हैं। कई मरीज फीजियोथेरेपी कराने के प्रति लापरवाही करते हैं तो उनके जोड़ भीदेर से भरते हैं और उन्हें सामान्य कामकाज करने लायक होने में भी देर लगती है। कई बार जोड़ के पास की मांसपेशियां सही कसरत के अभाव में कमजोर ही रह जाती हैं जो परेशानी का सबब बनती हैं

मानव शरीर 206 अस्थियों का तंत्र है जिस पर 640 से अधिक माँसपेशियों का जमाव इस काया को रूप देता है। इन्हीं माँसपेशियों के मध्य तंत्रिका तंतु व रक्त वाहिनियाँ अपना कार्य संपन्ना करती हैं। आधुनिक समय में वाहनों की बढ़ती संख्या व औद्योगिकीकरण के चलते फ्रेक्चर में बढ़ोतरी हुई है। हड्डी जोड़ने के लिए जरूरत के मुताबिक विभिन्ना शल्य क्रियाएँ की जाती हैं तथा ऑपरेशन के बाद प्लास्टर ऑफ पेरिस का कास्ट लगाकर अस्थि को जोड़ने के लिए उस अंग को स्थिर रखा जाता है।

यदि ऑर्थोपेडिक्स जरूरत न समझे तो वह बिना सर्जरी किए भी प्लास्टर लगाकर मरीज को स्थिर रख सकता है। टूटी हुई हड्डी अपने आप समय लेकर प्राकृतिक रूप से जुड़ती है। जरूरत सिर्फ टूटे हुए अग को स्थिर रखने की होती है। यह काम प्लास्टर करता है। आमतौर पर प्लास्टर 3सप्ताह से 6 सप्ताह के लिए हड्डी टूटने वाले स्थान पर लगाए जाते हैं।


फिजियोथैरेपी का हड्डी जुड़ने की प्रक्रिया में विशिष्ट एवं वैज्ञानिक स्थान है। प्लास्टर लगने के बाद हड्डी जुड़ने की प्रक्रिया को बल मिलता है, क्योंकि टूटने के स्थान पर कैल्शियम का जमाव होना आवश्यक है और इसी प्रकार हड्डियों के 2 टूटे सिरे आपस में जुड़तेहैं। इस पूरी प्रक्रिया में अस्थियों के आसपास मौजूद माँसपेशियाँ प्लास्टर के भीतर कार्यहीन अवस्था में बिना संकुचन के शिथिल पड़ी रहती हैं।

प्लास्टर के कटते ही रोगी अपनी पुरानी शक्ति को पुनः हासिल करना चाहता है और इस मौके पर फीजियोथेरेपी कारगर साबित होती है। मांसपेशियों की अशक्त स्थिति को ठीक करना तथा टूटे हुए अंग की संकुचित हो चुकी गति-चाल (रेंज ऑफ मूवमेंट) को पूर्व कार्य अवस्था में लाना ही फिजियोथैरेपी का काम है। 3-6 सप्ताह के दौरान बंधन की अवस्था में रहे अस्थि-जोड़ को अपनी पूर्व शक्ति को प्राप्त करने के लिए माँसपेशियों की कसरत जरूरी होती है। इसके लिए मांसपेशियों को 6 से 10 सेकंड्स के लिए संकुचित करें और फिर शिथिल कर दें।

इस कसरत की 20 से 50 बार की आवृत्ति आवश्यक शक्ति प्रदान करती है। इसी प्रकार जकड़े हुए जोड़ को पूर्वावस्था में लाने और पहले की तरह वजन उठाने लायक सक्षम बनाने के लिए फिजियोथेरेपिस्ट कसरतें सुझाते हैैं। यह पूरी कार्रवाई मनोयोग से की जाए तो रोगी की रिकवरी बहुत तेज गति से हो सकती है। जोड़ प्रत्यारोपण के ऑपरेशन के बाद भी पहले जैसी ताकत हासिल करने में फीजियोथेरेपिस्ट कारगर भूमिका अदा कर सकता है।

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