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शराब करती है बर्बाद

मद्यपान से बढ़ रही है बीमारियाँ

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ॉ. अनिभदौरिया
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जीवन दुधाने के परिवार पर एकाएक वज्रपात हुआ। रविवार की सुबह जीवन दुधाने अपने दोस्त की कार में मृत पाया गया। शनिवार की शाम वह अपने दोस्तों के साथ एक होटल में आयोजित स्टेग पार्टी में शामिल हुआ था। जीवन के करीबी दोस्त ने बताया कि हम लोगों के एक दोस्त हितेन मेहता की शादी होने वाली थी। उसने सभी कुँआरे दोस्तों को एक स्टैग पार्टी में आमंत्रित किया था। जीवन ने वहाँ "टकीला" नामक कॉकटेल के कुछ पैग पिए थे। रात दो बजे तक चली पार्टी में जब जीवन बेहोश होने लगा तब उसके दोस्त कार में उसके घर के बरामदे में छोड़ गए। सुबह वह अपनी कार में मृत पाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि जीवन की मौत शराब के ओवर डोज से हुई है।

यह मुंबई का एक उदाहरण है, लेकिन मध्यप्रदेश या छत्तीसगढ़ के मुख्य शहर भी अब तेजी से "मॉडर्न" होते जा रहे हैं। हमारे देश में कम उम्र में शराबखोरी का चलन बढ़ता जा रहा है। सामाजिक मान्यता मिल जाने से अब किसी को शर्म भी महसूस नहीं होती। एक दूसरे की देखा-देखी भी शराब पीने लगते हैं।

युवाओं के आर्थिक और सामाजिक रूप से स्वतंत्र होने के कारण भी मद्यपान अब बहुत सामान्य हो गया है। पहले जहाँ इसे निकृष्ट लत समझा जाता था अब सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त हो गई है। मेट्रो शहरों में उच्चवर्ग की महिलाएँ बड़ी संख्या में शराबखोरी की तरफ बढ़ चली हैं। थर्टी फर्स्ट की नाइट यानी 31 दिसंबर की रात नया साल मनाने का जश्न शराब में डूबकर मनाया जाता है। शराब पीने से होने वाली पेट की कई प्रकार की बीमारियाँ जो आमतौर पर चालीस की उम्र के बाद पाई जाती थीं, आजकल कम उम्र में भी देखने को मिल रही है।

क्या करती है शराब

शराब का चयापचन यकृत (लीवर) में होता है। यही यकृत के क्षतिग्रस्त होने की मुख्य वजह भी है। यकृत में शराब खतरनाक रसायन एसिटेल्डिहाइड बनकर यकृत के ऊतकों को नुकसान पहुँचाती है। यकृत के सामान्य ऊतकों पर तंतुयुक्त ऊतक व कोशिकाओं के जमा हो जाने से यकृत की कार्य क्षमता कम हो जाती है।

शराब के पहले हमले के नतीजे में मिलता है "फेटी लीवर"। यकृत वसा का चयापचय करता है। लेकिन तंतुयुक्त ऊतकों व कोशिकाओं के चढ़ जाने के बाद काम करना बंद कर देता है। यकृत जब वसा का चयापचय करना बंद कर देता हो वसा यकृत में जमा हो जाती है। जमा हो जाने के बाद वसा वहीं रह जाती है। इस स्थिति में यदि शराब छोड़ दी जाए तो न केवल आगे होने वाले स्थाई नुकसान को रोका जा सकता है अपितु लीवर के सामान्य स्थिति में लौट आने की संभावनाएँ भी बनी रहती हैं।

दूसरे हमले की देन है अल्कोहोलिक हेपेटाइटिस । यह अत्यधिक मात्रा में शराब पीने से यकृत पर सूजन आने से होती है। इसमें मरीज को भूख ना लगना , उल्टियाँ तथा पीलिया हो जाता है। तीसरे हमले में मिलता है सिरोसिस ऑफ लीवर। लंबे समय तक अत्यधिक मात्रा में शराब पीने से यकृत के 70-80 प्रतिशत भाग में फ्राईब्रोसिस हो जाता है। सिरोसिस के कारण पेट में पानी भर जाता है। शराब के कारण शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता काफी कम हो जाती है। शुरू में लोग शराब मजे के लिए पीते हैं पर बाद में शराब उन्हें पी जाती है।

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