प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए श्वसन आवश्यक है, सभी प्राणी जीवित रहने के लिए वातावरण से श्वसन द्वारा ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बनडाई ऑक्साइड छोड़ते हैं।
पानी के जंतु पानी से ऑक्सीजन लेते हैं, यानी ऑक्सीजन लेना सभी के लिए आवश्यक है, बगैर ऑक्सीजन के कोई जीवित नहीं रह सकता। यह तो सभी को पता है।
यह श्वसन क्रिया दो प्रकार से होती है, बाह्य श्वसन तथा अंतःश्वसन। बाह्य श्वसन में नाक से हवा फेफड़ों में जाती है व फेफड़े से खून में ऑक्सीजन मिक्स हो जाती है। अंतःश्वसन में खून-ऊतक कोशिकाओं में ऑक्सीजन का आदान-प्रदान होता है। हम बाह्य श्वसन को महसूस करते हैं, अंतःश्वसन को नहीं।
सामान्य श्वसन क्रिया में प्रति मिनट 15 से 20 बार साँस ली जाती व छोड़ी जाती है और लय भी सामान्य होती है। सामान्य श्वसन में लगभग 500 मिली वायु ग्रहण की जाती है।
यदि मनुष्य तनाव में है, गुस्से में है या डरा हुआ है तो उसकी श्वास दर बढ़ जाती है। पर्वतीय स्थानों पर पृथ्वी से ऊँचाई पर ऑक्सीजन कम होती है, अतः श्वास क्रिया तेज चलती है।
इसी प्रकार दौड़ने, कसरत करने या परिश्रम का कोई काम करने पर शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन की जरूरत होती है तो साँस तेज चलती है। नशीले पदार्थों के सेवन में भी श्वसन क्रिया तेज हो जाती है।
डॉक्टर लोग मरीज का परीक्षण करते समय स्टेथेस्कोप की सहायता से श्वास के आदान-प्रदान, उसकी गति व लय का परीक्षण करते हैं। व्यक्ति बीमार है तो यह लय बिगड़ जाती है।
बीमारी में मरीज की श्वसन क्रिया जब प्रभावित होती है तो डॉक्टर लोग उसे ऊपरी ऑक्सीजन देते हैं व श्वसन क्रिया सामान्य बनाए रखने का प्रयास करते हैं।
डॉक्टर द्वारा साँस का परीक्षण
साँस तेज चलना किसी बीमारी का भी सूचक होता है, मरीज का परीक्षण डॉक्टर सर्वप्रथम साँस की लयबद्धता को मापकर करता है।
* यदि बुखार हो, साँस संबंधी बीमारी हो, न्यूमोनिया हो तो साँस तेज चलती है।
* साँस के समय घरघराहट होना, कठिनाई होना दमे का सूचक माना गया है।
* दिल की बीमारी में भी साँस उखड़कर चलती है व रोगी को खतरा रहता है।
* डॉक्टर परीक्षण कर साँस की गति, साँस छोटी है या लंबी, सीना ठीक से ऊपर-नीचे हो रहा है या नहीं आदि जानता है।
जन्म के समय शिशु प्रति मिनट 40 बार साँस लेता व छोड़ता है। दो वर्ष तक लगभग 30 बार, किशोरावस्था में 20 से 26 बार, वयस्क होने पर 16 से 20 बार तथा बुढ़ापे में 10 से 24 बार साँस लेता व छोड़ता है।