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हमारी आँखें कुदरत का उपहार

-सेहत डेस्क

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आँखें वो नायाब तोहफा हैं कुदरत का, जिससे सारी दुनिया की रंगीनी, अच्छी-बुरी सभी चीजें देखी जा सकती हैं। आँखें तो सभी प्राणियों को होती हैं, लेकिन मनुष्य में इसका अलग ही महत्व है।

शरीर का सबसे ज्यादा कोमल अंग आँखें होती हैं, इसलिए इनकी सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है। आँखों का काम सिर्फ देखना और देखे हुए संदेश को मस्तिष्क तक पहुँचाना होता है।

शरीर की खूबसूरती में भी ये सहायक हैं। कवियों ने तो उपमाएँ देकर आँखों का बखान किया है अपनी कविताओं, गजलों में। जब जुबान खामोश होती है तो आँखें बोलती हैं अतः आँखों के बारे में जानना व इनकी सुरक्षा करना भी जरूरी है।

आँख की बनावट कैसी होती है

आँख का बाहरी आवरण स्क्लेरा तथा कोर्निया का बना होता है, यह नेत्र गोलक को दोनों ओर से ढँकता है। स्क्लेरा सफेद परत होती है, इसी कारण आँख का रंग सफेद होता है।

स्क्लेरा व कोर्निया, आँख के नाजुक भाग की रक्षा करते हैं, वहीं कोर्निया प्रकाश की किरणों को रेटिना पर केन्द्रित करता है। नेत्र गोलक को घुमाने वाली पेशियाँ स्क्लेरा से जुड़ी होती हैं।

नेत्र का अगला भाग मध्य परत कहलाता है, इसमें कोरोयड, सिलियरी बॉडी व आइरिस होते हैं। कोरोयड कत्थई रंग की परत होती है, यह प्रकाश की ज्यादा किरणें अंदर जाने से रोकती है। इसी के पास सिलियरी बॉडी होती है, इसके सिकुड़ने, फैलने से लेंस का आकार बदलता है, ये स्रावी कोशिकाओं से बने होते हैं। इन कोशिकाओं से एक तरह का पदार्थ निकलता है जो लेंस तथा कॉर्निया के बीच में भरा रहता है।

सिलियरी बॉडी से जुड़ा हुआ गोलाकार आइरिस होता है, यह रंगीन होता है और आँखों का रंग इसी से निर्धारित होता है। यह लेंस व कोर्निया के बीच होता है, इसके बीच के गोलन को पुतली कहते हैं। तीव्र प्रकाश में पुतलियाँ छोटी तथा कम व दूर के प्रकाश में बड़ी हो जाती हैं

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इसके बाद का अंग रेटिना होता है, यह तंत्रिका तंतुओं का बना होता है, यह आगे पतला तथा पीछे मोटा होता है। इसमें दो प्रकार की रॉड्स तथा कोन आकार की कोशिकाएँ होती हैं। रॉड कोशिकाएँ मंद प्रकाश को देखने में तथा कोन्स कोशिकाएँ तेज प्रकाश को देखने का काम करती हैं साथ ही ये रंग का निर्धारण भी करती हैं।

* रेटिना के पीछे मैक्युला ल्युटिआ होता है, यह वस्तुओं को साफ देखने में मदद करता है। रेटिना के सभी तंत्रिका तंतु दृष्टि तंत्रिका बनाते हैं और संदेश को मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं।

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आँखें किस प्रकार देखती हैं

* आँख के अंदर कोर्निया होता है, यह थोड़ा गोलाई लिए होता है। देखने का काम कोर्निया व लेंस दोनों करते हैं, कोर्निया का योगदान ज्यादा होता है। पारदर्शी कोर्निया से होकर प्रकाश विटरियस ह्यूमर से गुजरता है और झुक जाता है या रिफ्लेक्ट हो जाता है।

दूर की वस्तुओं को देखने हेतु आने वाले प्रकाश को रेटिना पर केन्द्रित करने के लिए थोड़ा झुकना जरूरी होता है। वहीं इसके विपरीत पास की वस्तुओं के देखने के लिए अधिक झुकना पड़ता है और यह काम लेंस करता है। रेटिना पर सभी वस्तुओं की छवि उलटी अंकित होती है।

दूर की वस्तुओं के लिए लेंस पतला हो जाता है और पास की वस्तुओं के लिए मोटा हो जाता है। प्रकाश किरणें तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक जाती हैं, वहाँ वस्तुओं की उलटी छवि सीधी दिखाई देती है, वहाँ इनका विश्लेषण होता है और वस्तु की पहचान होती है।

यदि देखी जाने वाली वस्तु बड़ी है तो रेटिना पर उसकी छवि छोटी व उलटी बनेगी, वहीं वस्तु छोटी होने पर बड़ी। इसी प्रकार आने वाला प्रकाश एक बिन्दु से आ रहा है तो रेटिना पर सभी किरणें एक बिन्दु पर स्थित रहेंगी।

आँख की सुरक्षा हेतु

प्रकृति ने आँखों को नाजुक बनाया है तो उनकी सुरक्षा के भी उपाय किए हैं। नेत्र, नेत्र गुहा या कटोरी के अंदर स्थित रहते हैं। आई बॉल वसीय ऊतकों से सुरक्षित रहती है, ये ऊतक गद्देदार होते हैं। भौहें सिर से आने वाला पसीना, पानी या अन्य आँख में जाने से रोकने के लिए होती हैं।

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इसी प्रकार आँख की पलक व पलकों के बाल, धूल-मिट्टी के कण व अन्य कचरे को आँख में जाने से रोकते हैं। ये तेज रोशनी से भी आँख की रक्षा करते हैं। पलकें झपकती हैं तो एक तरह का पदार्थ नेत्र गोलक पर फैल जाता है और गोलक सूखने नहीं पाता। कोर्निया व गोलक की रक्षा के लिए एक पारदर्शी झिल्ली होती है, इसे कंजंकटिवा कहते हैं।

आँख में आँसू बनाने के लिए एक ग्रंथि होती है, जब कोई वस्तु आँख में गिर जाती है तो इन ग्रंथियों से अधिक मात्रा में आँसू निकलते हैं और आँख में गिरी वस्तु को आँख, आँसू के प्रेशर द्वारा बाहर करने का प्रयत्न करती है। अत: अपनी आँखों का विशेष ख्याल रखिए ताकि दुनिया की खूबसूरती आप इनमें बसा सके।

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