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कैंसर : जानलेवा बीमारी, कारण और निदान

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डॉ. सौरभ मालवीय

आधुनिक जीवन शैली और दोषपूर्ण खान-पान के चलते विश्वभर में हर साल लाखों लोग कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और असमय ही काल कवलित हो जाते है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कैंसर रोग से प्रभावितों की दर कम होने के बावजूद यहां 15 प्रतिशत लोग कैंसर के शिकार होकर अपनी जान गवा देते हैं।

डब्लूएचओ की ताजा सूची के मुताबिक 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां हैं। सूची के मुताबिक भारत उन देशों में शामिल है जहां कैंसर से होने वाली मौत की दरें सर्वाधिक कम है। फिलहाल भारत में यह प्रतिलाख 70.23 व्यक्ति है। डेन्मार्क जैसे यूरोपीय देशों में यह संख्या दुनिया में सर्वाधिक है। यहां कैंसर प्रभावितों की दर प्रतिलाख 338.1 व्यक्ति है। भारत में हर साल कैंसर के 11 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं।

वर्तमान में कुल 24 लाख लोग इस बीमारी के शिकार है। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के एक प्रतिवेदन के अनुसार देश में हर साल इस बीमारी से 70 हजार लोगों की मृत्यु हो जाती है। इनमें से 80 प्रतिशत लोगों के मौत का कारण बीमारी के प्रति उदासीन रवैया है। उन्हें इलाज के लिए डॉक्टर के पास तब ले जाते हैं जब स्थिति लगभग नियंत्रण से बेकाबू हो जाती है। कैंसर संस्थान की इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल सामने आरहे साढ़े बारह लाख नए रोगियों में से लगभग सात लाख महिलाएं होती है।
 
प्रतिवर्ष लगभग इनमें से आधी, लगभग साढ़े तीन लाख महिलाओं की, यानि आधी की मौत हो जाती है जो आधी आबादी के हिसाब से काफी चिंता जनक है। इनमें से भी 90 प्रतिशत की मृत्यु का कारण, रोग के प्रति बरते जाने वाली लापरवाह है। ये महिलाएं डॉक्टर के पास तभी जाती हैं, जब बीमारी अनियंत्रण की स्थिति में पहुंच जाती है या बेहद गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में यह बीमारी लगभग लाइलाज हो चुकी होती है।
 
भारतवासियों के लिए यह बात सकून देने वाली हो सकती है कि जागरूकता के अभाव के बावजूद भारत में यूरोपीय देशों के मुकाबले कैंसर नामक इस बीमारी के विस्तार की दर धीमी है। देश और दुनिया में नित्य-प्रतिदिन, तकनीकी के विकास के बाद भी दुनिया में कैंसर से मरने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्राप्त आकड़ों के अनुसार सन 2007 में कैंसर से विश्व भर में 79 लाख लोग मौत के शिकार हुए थे। इस दर में वर्ष 2030 तक 45 प्रतिशत बढ़ोतरी हो कर लगभग एक करोड़ 15 लाख हो जाने का अनुमान है, वहीं इस दौरान कैंसर के नए मामले वर्ष 2007 तक एक करोड़ तेरह लाख सामने आए थे, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़ कर एक करोड़ पचपन लाख हो जाने का अनुमान है।
 
कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के अधिकाधिक विस्तार के पीछे मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली और खान-पान की बुरी लत का विशेष योगदान है। आधुनिक जीवन शैली का आदमी पूरी तरह से आराम पसंद है, व्यायाम उसकी दिनचर्या से लगभग बाहर हो चुका है। वह किसी न किसी मादक पदार्थ के सेवन का आदि है। जो व्यक्ति किसी प्रकार का धूम्रपान नहीं करता, वह कम से कम चाय या काफी या दोनों के सेवन का आदि जरूर है। एक कप काफी या चाय में लगभग चार हजार से अधिक घातक तत्व पाए जाते हैं। 
 
तंबाकू, शराब और सिगरेट सरीखे मादक पदार्थों के सेवन से कैंसर नामक इस महामारी का तेजी से विस्तार होता है। इसके अलावा मोटापा को चलते भी इस बीमारी का तेजी से विस्तार हो रहा है। वैसे तो मोटापे को सारी बीमारियों की जड़ कहा जाता है, आकड़ों पर गौर करें तो कैंसर से होने वाली मौतों में 22 प्रतिशत मौत के मामले तंबाकू के सेवन के कारण हो रहे हैं जबकि शराब के सेवन के कारण 33 लाख लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। वहीं मोटापे के चलते 2 लाख 74 हजार लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। इसके अलावा खराब खान पान के चलते इसके चपेट में आने वालों का प्रतिशत 30 हैं।
 
ये सभी आकड़े वर्ष 2012 के आधार पर संकलित किए गए हैं। वर्ष 2016 के आधार पर इसका विश्लेषण किया जाएगा, तो संभव है यह स्थिति और भयावह हो। इसके अलावा इस बीमारी के बढ़ने के कारणों में केमिकल युक्त और मिलावटी खाद्य पदार्थों की कम घातक भूमिका नहीं है। खान-पान की वस्तुओं में रासायनिक तत्वों का उपयोग आज एक वृहद समस्या का रूप ले चुका है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 42 प्रतिशत पुरुष और 18 प्रतिशत महिलाएं, तंबाकू के सेवन के कारण कैंसर का शिकार होकर अपनी जान गवा चुके हैं। 
 
वहीं पूर्व के आकड़ों पर ध्यान दिया जाए, तो वर्ष 1990 के मुकाबले वर्तमान में प्रोस्टेड कैंसर के मामले में 22 प्रतिशत और महिलाओं में सरवाईकल कैंसर के मामले में 2 प्रतिशत और वेस्ट कैंसर के मामले में 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
 
ऐसा नहीं है कि इस बीमारी से बचा नहीं जा सके। आधुनिक जीवन शैली और खान-पान में मामूली सुधार कर, आसानी से इसकी चपेट में आने से बचा जा सकता है। बीमारी का शुरु में पता चल जाए और समय रहते लोग इसका उपचार शुरु करा दें, तो आसानी से बचाव संभव है।
कैंसर : जानलेवा बीमारी, कारण और निदान
 
डॉ सौरभ मालवीय
 
आधुनिक जीवन शैली और दोषपूर्ण खान-पान के चलते विश्वभर में हर साल लाखों लोग कैंसर जैसी बीमारी की चपेट में आ रहे हैं और असमय ही काल कवलित हो जाते है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में कैंसर रोग से प्रभावितों की दर कम होने के बावजूद यहां 15 प्रतिशत लोग कैंसर के शिकार होकर अपनी जान गवा देते हैं।
 
डब्लूएचओ की ताजा सूची के मुताबिक 172 देशों की सूची में भारत का स्थान 155वां हैं। सूची के मुताबिक भारत उन देशों में शामिल है जहां कैंसर से होने वाली मौत की दरें सर्वाधिक कम है। फिलहाल भारत में यह प्रतिलाख 70.23 व्यक्ति है। डेन्मार्क जैसे यूरोपीय देशों में यह संख्या दुनिया में सर्वाधिक है। यहां कैंसर प्रभावितों की दर प्रतिलाख 338.1 व्यक्ति है। भारत में हर साल कैंसर के 11 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं। वर्तमान में कुल 24 लाख लोग इस बीमारी के शिकार है। राष्ट्रीय कैंसर संस्थान के एक प्रतिवेदन के अनुसार देश में हर साल इस बीमारी से 70 हजार लोगों की मृत्यु हो जाती है। इनमें से 80 प्रतिशत लोगों के मौत का कारण बीमारी के प्रति उदासीन रवैया है। उन्हें इलाज के लिए डॉक्टर के पास तब ले जाते हैं जब स्थिति लगभग नियंत्रण से बेकाबू हो जाती है। कैंसर संस्थान की इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल सामने आरहे साढ़े बारह लाख नए रोगियों में से लगभग सात लाख महिलाएं होती है।
 
प्रतिवर्ष लगभग इनमें से आधी, लगभग साढ़े तीन लाख महिलाओं की, यानि आधी की मौत हो जाती है जो आधी आबादी के हिसाब से काफी चिंता जनक है। इनमें से भी 90 प्रतिशत की मृत्यु का कारण, रोग के प्रति बरते जाने वाली लापरवाह है। ये महिलाएं डॉक्टर के पास तभी जाती हैं, जब बीमारी अनियंत्रण की स्थिति में पहुंच जाती है या बेहद गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है। ऐसी स्थिति में यह बीमारी लगभग लाइलाज हो चुकी होती है।
 
भारतवासियों के लिए यह बात सकून देने वाली हो सकती है कि जागरूकता के अभाव के बावजूद भारत में यूरोपीय देशों के मुकाबले कैंसर नामक इस बीमारी के विस्तार की दर धीमी है। देश और दुनिया में नित्य-प्रतिदिन, तकनीकी के विकास के बाद भी दुनिया में कैंसर से मरने वालों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है।
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन से प्राप्त आकड़ों के अनुसार सन 2007 में कैंसर से विश्व भर में 79 लाख लोग मौत के शिकार हुए थे। इस दर में वर्ष 2030 तक 45 प्रतिशत बढ़ोतरी हो कर लगभग एक करोड़ 15 लाख हो जाने का अनुमान है, वहीं इस दौरान कैंसर के नए मामले वर्ष 2007 तक एक करोड़ तेरह लाख सामने आए थे, जिसके वर्ष 2030 तक बढ़ कर एक करोड़ पचपन लाख हो जाने का अनुमान है।
 
कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के अधिकाधिक विस्तार के पीछे मनुष्य की आधुनिक जीवन शैली और खान-पान की बुरी लत का विशेष योगदान है। आधुनिक जीवन शैली का आदमी पूरी तरह से आराम पसंद है, व्यायाम उसकी दिनचर्या से लगभग बाहर हो चुका है। वह किसी न किसी मादक पदार्थ के सेवन का आदि है। जो व्यक्ति किसी प्रकार का धूम्रपान नहीं करता, वह कम से कम चाय या काफी या दोनों के सेवन का आदि जरूर है। एक कप काफी या चाय में लगभग चार हजार से अधिक घातक तत्व पाए जाते हैं। 
 
तंबाकू, शराब और सिगरेट सरीखे मादक पदार्थों के सेवन से कैंसर नामक इस महामारी का तेजी से विस्तार होता है। इसके अलावा मोटापा को चलते भी इस बीमारी का तेजी से विस्तार हो रहा है। वैसे तो मोटापे को सारी बीमारियों की जड़ कहा जाता है, आकड़ों पर गौर करें तो कैंसर से होने वाली मौतों में 22 प्रतिशत मौत के मामले तंबाकू के सेवन के कारण हो रहे हैं जबकि शराब के सेवन के कारण 33 लाख लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। वहीं मोटापे के चलते 2 लाख 74 हजार लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं। इसके अलावा खराब खान पान के चलते इसके चपेट में आने वालों का प्रतिशत 30 हैं।
 
ये सभी आकड़े वर्ष 2012 के आधार पर संकलित किए गए हैं। वर्ष 2016 के आधार पर इसका विश्लेषण किया जाएगा, तो संभव है यह स्थिति और भयावह हो। इसके अलावा इस बीमारी के बढ़ने के कारणों में केमिकल युक्त और मिलावटी खाद्य पदार्थों की कम घातक भूमिका नहीं है। खान-पान की वस्तुओं में रासायनिक तत्वों का उपयोग आज एक वृहद समस्या का रूप ले चुका है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 42 प्रतिशत पुरुष और 18 प्रतिशत महिलाएं, तंबाकू के सेवन के कारण कैंसर का शिकार होकर अपनी जान गवा चुके हैं। 
 
वहीं पूर्व के आकड़ों पर ध्यान दिया जाए, तो वर्ष 1990 के मुकाबले वर्तमान में प्रोस्टेड कैंसर के मामले में 22 प्रतिशत और महिलाओं में सरवाईकल कैंसर के मामले में 2 प्रतिशत और वेस्ट कैंसर के मामले में 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
 
ऐसा नहीं है कि इस बीमारी से बचा नहीं जा सके। आधुनिक जीवन शैली और खान-पान में मामूली सुधार कर, आसानी से इसकी चपेट में आने से बचा जा सकता है। बीमारी का शुरु में पता चल जाए और समय रहते लोग इसका उपचार शुरु करा दें, तो आसानी से बचाव संभव है।

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