टीवी देखना किसे पसंद नहीं होता। मनोरंजन और समय बिताने का सबसे सरल और ज्यादातर लोगों का पसंदीदा तरीका ही होता है। लेकिन टीवी देखना जितना मजेदार है उतना ही खतरनाक भी हो सकता है। क्योंकि टीवी देखने से होती हैं बीमारियां।
जी हां, भले ही आपको जानकर हैरानी हो, लेकिन यह बिल्कुल सच है। दरअसल टीवी देखने से होने वाली बीमारियों का संबंध इस बात से है कि आप टीवी पर क्या देख रहे हैं। यदि आप टीवी पर हास्य या कॉमेटी सामग्री देखते हैं, तब तो ठीक है, लेकिन आपराधिक सामग्री, हॉरर या फिर डेली सोप यानि सीरियल्स देखने का शौक रखते हैं, तब तो यह आपके लिए बेहद हानिकारक है।
यह बात तो आप अच्छी तरह से जानते हैं कि जैसी परिस्थितियां होती हैं, आपका रवैया उसके अनुरूप होता है.... और आपका दिमाग भी उसी दिशा में काम करता है। जब भी आप बेहद खुश होते हैं, तो आप बेहतर और उर्जावान महसूस करते हैं। लेकिन यदि आप दुखी और उदास होते हैं, तो आपकी उर्जा कम हो जाती है। साथ ही आपको सिरदर्द तनाव जैसी समस्याएं घेर लेती है, जिससे आपके स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ता है।
इस तरह की चीजें टीवी पर देखना आपके दिमाग और अवचेतन मन पर सीधा असर डालती हैं और आपको तनाव एवं अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का रोगी बना सकती है। जी हां, भले ही आपको यह बात थोड़ी अजीब लगे, लेकिन बात बिल्कुल सच है।
अच्छी और बुरी परिस्थितियां, सुख और दुख के रूप में हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालतीं है, अगर सोच कर देखें कि यह स्थिति निर्मित कैसे होती है, तो उत्तर में हम पाएंगे कि हमारे आसपास के माहौल के साथ हमारा दिमाग भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है, और उसके अनुसार ही प्रतिक्रिया देता है।
उदाहरण के लिए यदि हमारे आसपास सभी लोग खुश हैं, और प्रसन्नता से भरा वातावरण है, तो हम भी प्रसन्न होते हैं, और यदि आसपास दुख का माहौल है, तो हम दुखी हो जाते हैं। इन दोनों ही मनोस्थिति का हमारे मन और शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
इसी तरह हमारी रोज की दिनचर्या में शामिल टीवी सीरियल्स और उनके किरदार हमारे स्वाथ्य पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। जी हां, हम टीवी सीरियल के किरदारों से मानसिक और भावनात्मक रूप से इस कदर जुड़े होते हैं, कि उनकी खुशी में खुश हो जाते हैं, और उनके दुख के वक्त खुद को दुखी कर देते हैं। हम अप्रत्यक्ष तौर पर खुद को उनकी जगह रखकर देखते हैं, और खुद को मानसिक रूप से क्षति पहुंचाते हैं।
यह जानते हुए भी कि, वे किरदार वास्तविक नहीं है, और उनकी भावनाएं अभिनय मात्र हैं, हम उन किरदारों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। लेकिन इस जुड़ाव का असर हमारे मन-मस्तिष्क और स्वास्थ्य पर सकारात्मक व नकारात्मक रूप से असर डालता है।जब हम कोई फिल्म देखने जाते हैं तब भी यही होता है। कई लोग इमोश्नल सीन के आने पर रोने लगते हैं।